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 shakespeare story in hindi - The Taming of the Shrew

shakespeare story in hindi - The Taming of the Shrew




नमस्कार दोस्तो आज की कहानी महान लेखक विलियम शेक्सपीयर की रचना  The taming of the shrew  है, तो कहानी को शुरू करते है ।

कैथेरीना अमीर घराने की लड़की थी। उसकी आयु उन्नीसवें साल को पार कर चुकी थी किंतु अभी वह कुंवारी ही थी। 
उसके साथ की लड़कियों के गौने भी कभी के हो चुके थे किंतु उसकी अभी सगाई भी न हुई थी।
 कोई भी लड़का उससे ब्याह करने का साहस न करता था। यह बात नहीं थी कि वह सुंदर नहीं थी। 
उसकी हिरणी-सी बड़ी-बड़ी काली आंखें, फूलों से गुलाबी दो होंठ, चांद-सा उसका गोल चेहरा तथा
उस पर लटकते हुए धुंघराले बालों को देखकर उसे कुरूप नहीं कहा जा सकता था।

फिर भी आज तक किसी लड़के ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव न रखा था। इसका एक खास 
 कारण था उसके रूप की आड़ में छिपी हुई उसकी चुभीली वाणी उतनी ही कड़वी थी, जितना सुंदर उसका रूप। मानो गुलाब की कलियों में छिपकर विषैला सांप बैठा हो। 

उसके इस दोष के आगे उसका रूप, उसका सौंदर्य तथा उसके पिता की अतुल संपत्ति, सब फीके जान पड़ते थे। उसकी जीभ छुरी से भी तेज और करेले से भी कड़वी थी।

मोहल्ले की लड़कियां कहतीं कि देवताओं का प्रकोप है। सहेलियां कहतीं कि नहीं, उसे अपने रूप 
पर घमंड है इसलिए लड़के उससे कतराते थे, बूढ़े उस पर बड़बड़ाते थे तथा मोहल्ले वाले उसे मुंह न लगाते थे। 

उसका पिता, बेपतिस्ता यह सब देखता तो अपना माथा पीटकर रह जाता। लोग उसकी हालत पर तरस खाते किंतु इस विषय में कोई मदद न कर पाते। वास्तव में कैथरीना से सब ही डरते थे। अगर वह अविवाहित रह गई थी तो बेपतिस को इसका रत्ती भर भी अरमान नहीं था। 

उसे चिंता थी तो अपनी छोटी लड़की के ब्याह की। घर में बड़ी बहन के अविवाहित रहते भला छोटी बहन से विवाह करने को कौन राजी होगा? 
यही सोच-समझकर बेचारा बेपतिस्ता अपने दुर्भाग्य को कोसता था। 
वह रोज सवेरे जागता तो ईश्वर से प्रार्थना करता—'हे भगवान! या तो तू मुझे संतान देता ही नहीं और 
अगर दी थी तो ऐसे मीठी वाणी भी देता। तेरे घर में किसी चीज का घाटा नहीं। कोई ऐसा चमत्कार कर दे कि कैथेरीना की वाणी सुधर जाए तथा मैं किसी भले पुरुष के साथ उसका विवाह रचा सकू।'

ईश्वर के कानों तक बेपतिस्ता की यह प्रार्थना पहुंची या नहीं, मगर एक चमत्कार अवश्य हो गया। 
एक दिन एक मनचला लड़का बेपतिस्ता के पास आया और
बोला—मैं आपकी लड़की से विवाह करना चाहता हूं और जानना चाहता हूं कि दहेज में आप मुझे कितना रुपया देंगे?" 

पहले सवाल में ही इतनी स्पष्ट और निश्चय की-सी बात सुनकर बेपतिस्ता को कुछ भ्रम हुआ कि कहीं वह युवक भूल से तो उसके घर नहीं आ गया क्योंकि उसे यकीन ही नहीं आता था कि कोई भला मानुष उसकी लड़की से विवाह करने का कभी नाम भी ले सकता है इसलिए बात को और साफ करने के विचार से उसने पूछा-"लड़के!तुम कौन हो, कहां से आए और क्या पहले भी मेरी लड़की के विषय में कुछ जानते हो?"

लड़के ने बड़ी तत्परता से सिर हिलाकर कहा- हां! मैं उनके विषय में बहुतअच्छी तरह जानता हूं। कैथेरीना हैं और मैं उन्हें अपने  दिल की रानी बनाना चाहता हूं। उनके रूप और सौंदर्य की तारीफ मैंने बहुतेरों के मुंह से सुनी है। उन्हीं गुणों से खिंचकर मैं सैकड़ों मील की दूरी से यहां आया हूं।"

बेपतिस्ता को अब भी शक था कि शायद युवक भूलकर ऐसी बातें कह रहा है। उसने एक बार लड़के को सिर से पांव तक देखा और पूछा- "बेटा! तुम्हारा क्या नाम

लड़के ने एक ही सांस में कह डाला- "ओहो ! मैं अपना परिचय देना तो भूल ही गया। माफ कीजिए! मेरा नाम पेटरूशियो है और मैं अपने पिता का इकलौता पुत्र हूं। उनके पीछे उनकी सारी संपत्ति का मैं ही उत्तराधिकारी हूं तथा चाहता हूं कि किसी सुशील लड़की को अपनी जीवन संगिनी बनाऊं। इसी उद्देश्य से ही मैं आपके चरणों
में उपस्थित हुआ हूं। अगर आप मुझे अपनी पुत्री के योग्य समझें तो अपनी स्वीकृति
देकर अनुग्रहीत करें।"

बपतिस्ता ने कहा- "पेटरूशियो! मैं कैथेरीना को बुलाकर उससे तुम्हारा परिचय करवा देता हूं। तुम खुद उससे बात करके देख लो और फिर मुझे बताओ कि ब्याह के संबंध में तुम दोनों का क्या विचार है? अगर तुम दोनों एक-दूसरे से संतुष्ट हो सको तो इससे बढ़कर मेरा सौभाग्य क्या हो सकता है?"

जैसे कोई सफल शिकारी शिकार करने से पहले दिल-ही-दिल में कई बार सोच लेता है कि कब वार करेगा तथा कब कैसा बचाव, उसी तरह पेटरूशियो ने भी कैथेरीना के आने से पहले दिल में बैठा लिया कि वह कैसे उसका स्वागत करेगा, कब कौन-सी बात करेगा और कब कौन-सा प्रश्न करेगा? 

कैथेरीना के कमरे में प्रवेश करते ही वह इस तरह हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ जैसे कोई भक्त स्वर्ण की देवी को
सहसा समक्ष खड़े देखकर हड़बड़ा उठता है तथा बड़ी नम्रता से बोला—"आओ, मेरे मन की रानी। मैं कब से तुम्हारी राह में पलकें बिछाएं बैठा हूं।"

कैथेरीना ने शेरनी की भांति गरजकर कहा- "बंद करो बकवास! बताओ, मुझे तुमने किसलिए यहां बुलाया है?"

पेटरूशियो ने ऐसा बहाना किया कि जैसे वह मीठे शरबत के घुट भर रहा हो तथा आनंदविभोर होते हुए उसने कहा- " सुभाषिनी! तुम्हारी अमृत के समान मधुर इस वाणी को सुनकर मुझे संसार से ईर्ष्या होने लगी है। मैं चाहता हूं कि तुम्हारे एक-एक अल्फाज को कानों से पी जाऊो रानी! धीरे-धीरे बोलो। कहीं तुम्हारे कोमल होंठों में दर्द न होने लगे।"

यह सुनकर कैथेरीना ने गुस्से से माथे पर त्यौरियां चढ़ा लीं और घूर घूरकर उस बकवादी की तरफ देखने लगी। 

पेटरूशियो ने इसका भी स्वाद लेते हुए 'इतना रूप! इतना सौंदर्य! लोग तभी तुम्हारे रूप की तारीफ किया करते 
है।"  खुशामद की सीमा हो चुकी। 

इन अंतिम वचनों को सुनते ही कैथेरीना खिलखिलाकर हंस पड़ी। यह उसकी पहली हार थी। दूर खड़े बेपतिस्ता ने देखा कि पहली बार ही उसकी कैथेरीना किसी युवक के सामने मुस्कराई है तथा उससे घुल-मिलकर बात कर रही है। 

यह देखकर उसके आनंद की सीमा न रही और कहीं यह दृश्य सपना न हो जाए, यह सोचकर  उसने उसी वक्त बाजे और शहनाइयां बुलाकर पेटरूशियो के साथ कैथेरीना के ब्याह की घोषणा कर दी। यह पेटरूशियो की पहली जीत थी।

यह सब अनायास ही नहीं हो गया। इसके लिए पेटरूशियो को बहुत तपस्या करनी पड़ी थी। वह दूर देश का एक परदेसी था तथा अपने व्यंग्यों तथा खुशमिजाजी के लिए प्रांत-भर में मशहूर था। 

उसने कैथेरीना के चिड़चिड़ेपन और कैंची-सी जुबान के विषय में बहुतों की जुबान से सुना था। वह यह सहन न कर सकता था कि इतने सौंदर्य की स्वामिनी युवती इतनी बदमिजाज हो। तभी उसने प्रतिज्ञा की कि अगर वह विवाह करेगा तो कैथेरीना से ही और ब्याह भी तब, जबकि वह स्वयं उसके लिए आंसू बहाकर उसे याद करेगी। 

इसके लिए उसने अपनी सारी कला, अपनी सारी खुशमिजाजी तथा अपनी सारी हाजिरजवाबी को लगा देने की ठान ली थी। वह कैथरीना के प्यार को जीतने के लिए घर से निकल पड़ा। उसकी एक-एक बात, एक-एक
मुस्कान तथा आंख की एक-एक झपक के पीछे एक गहरी योजना थी। उसी के परिणामस्वरूप वह आज कैथेरीना के मन में अपनी जीत का बिगुल बजा सका था और बेपतिस्ता के आंगन में ब्याह की शहनाइयां बज सकी थीं। 

यह उसकी योजना का पहला अंश था। अभी कैथेरीना की कड़वी जुबान से अमृत की वर्षा करवाना तो शेष ही था।
अतः उसकी असली योजना तो अब शुरू हुई।

उसने बेपतिस्ता के पास जाकर कहा- 'आप जानते ही हैं कि मैं कैथेरीना को कितना ज्यादा प्यार करता हूं। मैं उसे घर की रानी और मन की मलिका बनाना चाहता हूं। 

जीवन में शादी बार-बार नहीं हुआ करती इसलिए मैं इस शुभ अवसर को बड़ी धूमधाम से मनाना चाहता हूं। आप थोड़ी देर इंतजार करें, मैं अपनी कैथेरीना को गहनों से ऐसे लाद दूंगा जैसे बसंत में अनार के वृक्ष फूलों से ढक जाते हैं। 

मैं उसे मखमल के दुशालों में ऐसे जाकर रखूगा जैसे बरसात में वीरबहूटी। आप थोड़ी देर तक इंतजार करें, मैं अभी सब सामान लेकर उपस्थित होता हूं।"

वह कहने को तो कह गया कि अभी आता हूं, मगर कई घंटे बीत जाने पर भी न तो उसका अभी' आया और न ही वह खुद। विवाह का मुहूर्त भी आ पहुंचा, घर-बार भी सज गया, पादरी भी बुला लिए गए तथा बाजों की ध्वनि से सारा आंगन भी गूंज उठा, मगर पेटरूशियो लौटता दिखाई न दिया। 

अब कैथरीना को भी फिक्र हुई। वह रह-रहकर सोचने लगी कि कहीं वह मुझसे झूठावायदा करके तो नहीं चला गया। अगर वह लौटकर न आया तो मैं क्या करूंगी। सब लोग मेरी तरफउंगली उठा-उठाकर कहेंगे कि यही वह युवती है, जिसे उसका मंगेतर विवाह के वक्त छोड़कर चला गया। 

मोहल्ले की स्त्रियां कानाफूसी करके मेरे विषय में बातें करेंगी। यह सोचकर वह बार-बार उसी तरफ देखने लगी, जिस तरफ से युवक ने आने को कहा था। देखते-देखते उसकी आंखें थक गईं। फिर भी जब वह न आया तो कैथेरीना ने निराश होकर अपना सिर एक सहेली के कंधे पर टिका दिया तथा फूट-फूटकर रोने लगी।

ठीक उसी वक्त पेटरूशियो ने आंगन में प्रवेश किया मानो वह वहीं कहीं छिपकर कैथरीना के आंसू ढुलकने की प्रतीक्षा कर रहा था और अपने प्रति कैथेरीना की उत्कंठा को जगाने के लिए उसने जान-बूझकर देरी की हो। 

कुछ भी हो, इतनी देर तक राह देखने के पश्चात अब पेटरूशियो उसे एक अनमोल चीज के समान दिखाई देने लगा और वह समझने लगी कि पेटरूशियो को उसकी इतनी जरूरत नहीं, जितनी कि उसे पेटरूशियो की है इसीलिए वह विवाह के वचनों को भी मुंह संभालकर बोल रही थी कि कहीं उसके मुंह से कोई कर्कश स्वर नहीं निकल जाए। उससे अप्रसन्न होकर वह कहीं फिर उसे छोड़कर न चला जाए। 

यह सब पेटरूशियो की बनाई हुई योजना का फल था। इसका कैथरीना की चाल-ढाल तथा बोल-चाल पर क्या असर पड़ता है, इसे वह उसी होशियारी के साथ देख रहा था, जैसे बिल्ली चूहे की एक-एक हरकत को देखती है तथा उसके अनुसार अपना दांव लगाती जाती है।

आखिर विवाह खत्म हुआ और पेटरूशियो क्षणभर भी इंतजार किए बिना वहां से जाने को तैयार हो गया। लोगों ने बड़ा समझाया कि विवाह के बाद इतनी जल्दी वर-वधू को विदा करने का रिवाज नहीं इसलिए अगर दो दिन नहीं तो केवल दोपहर या दो घड़ी ही रुक जाओ, मगर पेटरूशियो ने कहा- "नहीं, मैं तो अभी जाऊंगा तथा कैथेरीना को भी इसी क्षण मेरे साथ जाना होगा।"

बेचारे बेपतिस्ता को इतनी परेशानी के पश्चात एक ही तो दामाद मिला था। उसकी नजाकतों को वह कैसे न मानता, मगर अब तो कैथेरीना के मुंह पर भी ताले पड़ गए थे। वह डर रही थी कि उसने पति की इच्छा के विरुद्ध जरा-भी आवाज उठाई तो वह उसे छोड़कर चला जाएगा इसलिए वह ऐसे ही चुपचाप मुंह लटकाए उसके पीछे-पीछे
चल दी जैसे कसाई के पीछे बलि की भेड़ चलती है। 

यह बदलाव देखकर सब लोग दांतों तले उंगली दबा रहे थे तथा स्वयं बपतिस्ता हैरान हो रहा था कि उसकी जो पुत्री
अपने सामने बोलने वाले का मुंह नोचकर रख देती थी, उसकी आदत में अचानक यह बदलाव कैसे आ गया।

लोगों की हैरानगी देख-देखकर पेटरूशियो ने दिल ही दिल में कहा- इन्होंने मेरा चमत्कार देखा ही कहां है। मैं इसे अपने संकेत पर पुतली की भांति नचाकर न बताऊं तो मेरा नाम पेटरूशियो नहीं।"

फिर क्या था, वह अपनी नई बहू को साथ लेकर अपने घर की तरफ चल दिया। रास्ता दूर था तथा पथरीला इसलिए उसने दो बढ़िया घोड़े मंगवाए। घोड़े वाकई चुने हुए और अव्वल नंबर के थे, मगर पेटरूशियो ने यह कहकर घोड़े वापस लौटा दिए कि ये चलते वक्त दुम क्यों हिलाते हैं। 

कैथेरीना उन घोड़ों को तरसती आंखों से देखती रही और जब उसने देखा कि आए हुए घोड़े वाकई लौटाए जा रहे हैं तो थकी आवाज में बोली- 'तो पैदल ही चलना होगा?"

पेटरूशियो ने इसके जवाब में ऐसी शक्ल बना ली जैसे कि उसे कैथेरीना पर बड़ा तरस आ रहा हो तथा प्यार-भरे स्वर में बोला- भला मैं फूलों-सी नाजुक अपनी रानी को ऐसे गंवार घोड़ों पर कैसे सवारी करने देता, जिन्हें सही तरह पूंछ हिलाना भी न आता हो।"

अब और चारा ही क्या था। जिस बेचारी कैथेरीना ने महलों से बाहर पैर तक न रखकर देखा था, उसी ने वह सारा लंबा पथरीला रास्ता पैदल तय किया। उसके पांव में छाले पड़ गए, टांगें दुखने लगीं, मगर एक बार उसने जुबान हिलाकर उफ' तक नहीं की। 

उसकी बेबसी को देककर पेटरूशियो को भी दया आ रही थी, मगर वह यही सोचकर चुप था कि इसका और इलाज ही क्या है।

थकी-मांदी, भूखी-प्यासी, गिरती-पड़ती कैथरीना जब ससुराल पहुंची तो अपनी नई मालकिन की प्रसन्नता में सब नौकर-चाकर इकट्ठे हो गए। 

श्री पेटरूशियो ने बहुत अकड़ के साथ उनकी तरफ देखते हुए कहा- -“अरे भाई, खड़े देखते क्या हो? मालकिन के लिए गुलाब का शरबत लाओ, नमकीन समोसे लाओ, चटपटी चटनी लाओ, ताजे फल, पकवान तथा मिठाइयों से बाजार भरा पड़ा है,ले क्यों नहीं आते हो? जानते नहीं, मालकिन थककर आई हैं तथा उन्हें भूख लगी है।"

मुंह से बात निकालने की देर थी कि नौकरों में भगदड़ मच गई। कोई बाजार की ओर भागा, कोई रसोईघर में लपका और कोई अन्य कामों में लग गया। सारे महल में भगदड़ मच गई। बात की बात में सब चीजें हाजिर हो गईं। 
अगरबत्तियों की भीनी-भीनी गंध, मिठाइयों की खस्ता खुशबू तथा समोसों की महक से आंगन भर गया। इधर मिठाइयों की यह खुशबू तथा उधर कैथेरीना के पेट में चमकती हुई भूख। मिठाइयों को देख-देखकर उसके मुंह में पानी भर रहा था तथा वह सोच रही थी कि अभी पेटरूशियो की आंख का इशारा होगा तथा ये मिठाई मेरे सामने परोस दी जाएगी। फिर मैं तीन दिन की सारी भूख की कसर निकालूंगी। 

सबसे पहले तो शरबत पिऊंगी क्योंकि मुझे बहुत प्यास लगी है, फिर समोसे खाऊंगी।समोसों से जी भर गया तो दूसरी मिठाइयां खाऊंगी। चटपटी चटनी मुंह करारा करने के लिए सबसे अंत में खाऊंगी।

कैथेरीना ने जैसा सोचा था बिल्कुल वैसा ही हुआ। एक-एक करके सब मिठाइयां उसके समक्ष परोस दी गईं। कैथरीना ने लालच-भरी निगाहों से एक बार सब तश्तरियों को देख डाला। सब तरफ घूमकर उसकी निगाह बर्फ से भी उजले, रूई से भी नरम तथा शहद से भी मीठे केकों पर अटक गई। खाने के लिए मुंह खोल ही रही थी कि
उसे थाल के गिरने की झन्न-सी आवाज सुनाई दी। 

उसने चौंककर देखा तो शरबत का मर्तबान फर्श पर लुढ़का पड़ा था तथा पेटरूशियो आंखलाल करके एक नौकर को कह रहा था--"इससे अच्छा है कि जोहड़ का जल लाकर गिलास में भर दो।"

कैथेरीना के देखते-देखते ही नौकर शरबत का मर्तबान उठाकर ले गए। वह तो बेचारी सूखे होंठों को जीभ से चाटकर रह गई तथा कुछ कह न सकी। 'केक-पेस्ट्री की चासनी पतली है।"
"केक-पेस्ट्री में चांदी के वर्क नहीं लगाए गए।"
"मिठाई के टुकड़े एक-से नहीं कटे।"
"चटनी का रंग बिल्कुल हरा क्यों नहीं।"
"पकवान कच्चे रह गए हैं।"
कैथेरीना के देखते-देखते मिठाइयों की प्लेटें कुत्तों के समक्ष फिंकवा दी गईं। उनकी महक ने उसकी भूख को और भी भड़का दिया था। उसका बस चलता तो कुत्तों के मुंह से छीनकर समोसे भी खा जाती। मिट्टी से सने केक उठाकर चबा जाती, लेकिन शर्म के मारे बेचारी कुछ न कर सकी।

रात को जब सोने का वक्त आया तो पेटरूशियो ने यह कहकर चादर फिंकवा दी कि इसमें नील कम लगा है और यह कहकर चारपाई हटवा दी कि यह चूं-धूं करती है। बेचारी कैथेरीना ने सारी रात जमीन पर बैठकर ऊंघते हुए बिता दी। बेचारी को खाने को न मिला, न पीने को तथा न सोने को और उल्टा पेटरूशियो का आभार भी उसी पर।
'
फूलों-सी नाजुक वह हर बात में दोष निकालकर अपने नौकरों को डांटता- तुम्हारी मालकिन क्या ऐसी घटिया चीजें खा सकती है? उसके पेट में पीड़ा होने लगेगी। उसका गला बिगड़ जाएगा। ले जाओ इन वस्तुओं को और शाही खाने तैयार करके लाओ।"

नौकर बढ़िया से बढ़िया वस्तु लाते, लेकिन पेटरूशियो को कोई भी चीज कैथेरीना के लायक न दिखाई पड़ती। इस प्रकार करते-करते तीन दिन गुजर गए। कैथेरीना मन ही मन सोचती कि मेरे बाप के घर में इतनी जूठन बचती थी कि भिखारियों की झोलियां भर जाती थीं, मगर यहां एक-एक बूंट और एक-एक ग्रास के लिए मुझे तरसना पड़
रहा है।

भूखे, प्यासे तथा जागते रहकर कैथेरीना की अकड़ बहुत कुछ कम हुई। चौथे दिन पेटरूशियो ने अपने नौकरों को अकेले में बुलाकर समझाया कि-
आज जो दाल बनाओ, उसमें नमक बिल्कुल नहीं डालो।"
आज जो सब्जी बनाओ, उसे जान-बूझकर कच्चा छोड़ दो।"
'आज जो रोटी बनाओ, उसे भी जान-बूझकर जला दो।"
चौथे दिन जब थालियां परोसी गई तो पेटरूशियो नौकरों की तारीफ किए न थकता था। वह जिस वस्तु को हाथ लगाता, उसी की तारीफों के पुल बांध देता।

'वाह-वाह, आज तो साग बना है। जी चाहता है कि उंगलियां भी काटकर खा जाऊं।'
'दाल में नमक-मिर्च इतना बेहतरीन है कि पुडिंग से स्वादिष्ट बन गई है।"
"चपातियां तो जैसे आग पर पकाई हुई दिखती ही नहीं। मानो चांद की चांदनी में पकाई हों तथा तारों के अंगारों पर सिकी हों। सिकने का चिन्ह तक नहीं है।"
यह कहकर वह एक-एक चीज बड़े आदर के साथ कैथरीना के समक्ष रखता जाता और ऐसी बातें करता जाता कि मानो ऐसी सौगात उसने संसार में आज तक कभी नहीं देखी।

नखरे वाली कैथेरीना के लिए भी आज ये चीजें किसी सौगात से कम न थीं। जब पेटरूशियो ने साग तथा भाजी का वह थाल उसकी तरफ बढ़ाया तो कैथेरीना ने उसे भगवान का प्रसाद समझकर ले लिया। वह जानती थी कि रोटियां जली हुई हैं, वह देख रही थी कि सब्जी भी कच्ची है, फिर भी उसने सौभाग्य समझकर उन्हें ले लिया। वह जानती थी कि उसने किसी वस्तु में तनिक भी दोष निकाला तो पेटरूशियो खाने को कुत्तों के समक्ष फिंकवा देगा। 

जो कैथेरीना मां-बाप के घर में भली-चंगी चीजों में भी दोष निकालकर हजारों नखरे करती थी, वही अब सौ-सौ दोषों से भरे खाने को सौगात समझकर खा रही थी। अब वह पेटरूशियो की बात में जरा भी नहीं' न करती।
उसे पता था कि नहीं करने का मतलब है भूखों मरना, प्यासे तरसना, बिना सोए रातें काटना। वह उसके संकतों पर नाचने वाली पुतली बन गई।

अंत में, एक दिन कैथेरीना के घर से एक न्यौता आया। उसकी छोटी दो बहनों का विवाह था। पेटरूशियो ने झटपट स्वीकार कर लिया तथा कैथेरीना को तैयार होने को कहा। 

पेटरूशियो को अब भी शक था, कहीं मां-बाप के घर जाकर वह फिर न बिगड़ जाए, यह सोचकर उसने कैथेरीना के लिए बढ़िया से बढ़िया गहने और कीमती से कीमती सूट सिलवाने का आदेश दे दिया। जब दर्जी कपड़े सीकर लाया तो उन्हें देखकर कैथेरीना की आंखें प्रसन्नता से चमकने लगीं, लेकिन पेटरूशियो को एक भी वस्त्र
पसंद न आया। वह हरेक में दोष निकालकर कहने लगा-
'ब्लाउज का रंग बहुत तेज है। इससे कैथेरीना की सुंदरता छिप जाती है।"
"स्कर्ट का किनारा हल्का है। यह कैथेरीना के सुंदर मुख के समक्ष ऐसा लगता है, जैसे सोने में तांबा जड़ दिया हो।"

इस प्रकार हरेक वस्त्र में कुछ न कुछ दोष निकालकर पेटरूशियो ने उन्हें कूड़े में फिंकवा दिया। बेचारी कैथरीना डर रही थी कि कहीं वह हीरे-जवाहरात के जड़ाऊ जेवर भी न फिंकवा दे। यह सोचकर वह गहनों से लिपट गई।

पेटरूशियो भी तो यही चाहता था। अब उसे यकीन हो गया कि वह उसके कहने से बाहर कभी न जाएगी। तब वह ससुराल की तरफ चला। वहां कैथेरीना की छोटी बहनों की शादियां बड़ी धूमधाम से हुईं। ये दोनों भी बड़े ठाठ से वहां अतिथि बनकर रहे।

एक दिन जब दोनों नए दूल्हे तथा पेटरूशियो भी इकट्ठे ही बैठे थे तो पत्नियों की बातें चल पड़ीं। नए दूल्हे में से एक ने बड़े घमंड से कहा- "मेरी पत्नी तो बहुत आज्ञाकारिणी है। मैं कह दूं तो वह आग में भी कूदने को तैयार हो जाए।"

दूसरे नए दूल्हे ने कहा- भाई ! तुम्हारी पत्नी तो सिर्फ आज्ञाकारिणी होगी। मेरी बहू तो बिल्कुल सती-सावित्री है। मैं एक संकेत कर दूं तो अपने प्राण देने को तैयार हो जाए।"

सबकी बातें सुनकर पेटरूशियो से रहा नहीं गया। वह भी बोला- "भाई ! मेरी कैथरीना कितनी तीखी आदत की स्त्री है।"

उन्होंने पेटरूशियो को चिढ़ाने के लिए कहा- "तो चलो, आज ही आजमाइश हो जाए, जिसकी पत्नी सबसे ज्यादा आज्ञाकारिणी निकले, वह जीता समझो।" एक दूल्हे 'हजार-हजार रुपए की शर्त लगी।"

शर्त लग गई तथा तीनों ने अपनी-अपनी पत्नियों को उसी समय आने के लिए बुलवा भेजा। 

पहले दूल्हे की पत्नी सिरदर्द का बहाना बनाकर न आई। 

दूसरे दूल्हे की पत्नी ने कहला भेजा कि मैं अभी नहाकर आती हूं, बिखरे बालों से देवर-जेठों के समक्ष कैसे आऊं? 

लेकिन जब पेटरूशियो का संदेश कैथेरीना को मिला तो वह नंगे पैर ही भागी आई।

भला अब भी वह न आती तो पेटरूशियो की सारी मेहनत किस काम आती? पेटरूशियो दो हजार रुपए की शर्त जीत गया था। कैथेरीना के स्वभाव में आकाश-पाताल का यह फर्क देखकर ससुराल के सब लोग हैरान थे।

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