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यह कहानी  दो ऐसे पक्के दोस्तो की है , जो एक दुसरे से अलग नहीं रह सकते , बदले मे उन्हे अपने पिता के खिलाफ ही कयो न जाना पङे ।

नमस्कार दोस्तो आज की कहानी महान लेखक विलियम शेक्सपीयर की रचना As you like it  है । तो कहानी को शुरू करते है ।

एक राजा था। एक वजीर था। वजीर ने राजा का राज्य छीनकर उसे जंगलों में भगा दिया था और उसकी जगह खुद राजा बन बैठा था। पहले राजा की एक लड़की थी, जिसका नाम था रोजा। वजीर की भी एक बेटी थी, जिसका नाम था शीलिया। रोजा तथा शीलिया में सगी बहनों से भी अधिक प्रेम था। वे बचपन से ही एक साथ रहतीं, एक साथ उठतीं और एक साथ बैठती थीं। जिस वक्त इन दोनों के पिताओं में गहरी शत्रुता ठन गई तथा पहला राजा अपने संगी-साथियों को लेकर जंगल की तरफ भाग निकलने की तैयारी कर रहा था, उस वक्त भी वे दोनों सहेलियां एक-
-दूसरे के गले लगकर प्रेम के आंसू बहा रही थीं।
  
   शीलिया कह रही थी—"तो रोजा आज तू मुझे छोड़कर हमेशा के लिए मुझसे दूर चली जाएगी ।
   रोजा कह रही थी—"हां सखी! मैं आखिरी बार तुमसे विदा मांगने आई हूं।
   
शीलिया"इतनी बेदर्द हो तुम रोजा! मुझे पता न था। बचपन का वह स्नेह, प्रेम की वेबातें और गुड्डे-गुड़ियों के वेब्याह- -क्या यह सब कुछ पल-भर में भूल गईं?
   रोजा-"मेरी प्यारी शीलिया! विदा के वक्त इतने कठोर व्यंग्य मुझ पर न कसो। तुम्हारा वियोग ही क्या मेरे प्रति कम दुखदायी है, जो तुम ऐसे वचन कहकर मेरी आत्मा को दुखा रही हो। भला तुम जैसी सहेली को छोड़कर जाने को किसका जी करता है? मगर जाऊं नहीं तो क्या करूं?

   शीलिया- "तुम हमेशा मेरे साथ रहो। मैं तुम्हें अपने प्राणों में छिपाकर रखूगी, जहां कोई तुम्हें देख भी नहीं सके।
   रोजा शीलिया का एक चुंबन लेती हुई बोली- "इस जुदाई के वक्त, शीलिया! कितनी प्यारी लग रही हो। जी तो यही चाहता है कि तुम्हारे गले लिपटकर पूरे जीवन आंसू बहाती रहूं, तुम्हें छोड़कर न जाऊं, मगर किस्मत का लिखा कौन मिटा सकता है? अब तो मुझे जाना ही पड़ेगा।
   
विदाई का नाम सुनकर शीलिया की आंखों में आंसू भर आए और उसने भर्राए हुए कंठ से सिर्फ इतना कहा-
'रोजा ! मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी।
   और सचमुच शीलिया ने उसे जाने भी न दिया। राजा भी दोनों सखियों के स्नेह को भली-भांति जानता था, इसलिए उसने भी रोजा को साथ ले जाने की हठ न की तथा अपने संगी-साथियों को लेकर जंगलों की तरफ चला गया। दोनों सखियां इस प्यार से रहने लगीं जैसे कि उनके पिताओं में शत्रुता की कोई घटना ही न घटी हो।
   
एक दिन राजधानी में अधकचरी उम्र का एक बांका नौजवान आया तथा उसने दरबार के नामी पहलवानों को दंगल के लिए अखाड़े में ललकारा। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें, भोला-भाला चेहरा तथा कमल से कोमल शरीर को देखकर किसी को यह गुमान भी न होता था कि उसने कभी तलवार की मूठ भी पकड़कर देखी होगी। फिर भी वह खूखार पहलवानों के समक्ष मुस्कराता हुआ खड़ा था।दो पल बाद ही उन निर्दयी पहलवानों की तलवारों तले उसकी क्या गति होगी, इसकी कल्पना करके ही सब लोग मन ही मन लड़के की जवानी पर तरस खा रहे थे। रोजा के जी में रह-रहकर आने लगा कि वह लपककर लड़के के हाथ से तलवार छीन ले और उससे कहे कि उसका यह यौवन कौड़ियों के मोल लुटाने के लिए नहीं। वह अब भी दंगल खेलने से बाज आ जाए, मगर लोक-लाज के कारण वह ऐसा न कर सकी।
   
उसने पास बैठी शीलिया के कान में कहा- "शीलिया ! ईश्वर के लिए इसे मना करो कि यह दंगल न खेले। उसे हाथ में तलवार पकड़े देखकर न जाने मेरा मन क्यों  घबराने लगा है!
   
शीलिया समझ गई कि उसकी भोली-भाली रोजा अनजाने में ही उस परदेसी को अपना दिल दे बैठी है। सखी के निमित्त अब तो उस लड़के के प्राण बचाने ही होंगे। यह सोचकर शीलिया ने बड़ी सहानुभूति के साथ लड़के की मर्दानगी की प्रशंसा की और उससे अनुरोध किया कि वह दंगल खेलने का हठ छोड़ दे।
  
  इसके जवाब में युवक ने एक गहरी सांस भरकर कहा-"राजकुमारी! इन प्राणों से मोह करके मैं क्या करूंगा? इस संसार में अब न कोई मेरा अपना है, न ही पराया। फिर मैं इस दुनिया में किसके लिए जीवित रहूं?
   
रोजा के हृदय ने कहा- -'मेरे लिए।' मगर उसके हृदय की यह आवाज उसके कानों तक न पहुंच सकी। उधर दंगल की तैयारियां आरंभ हो चुकी थीं। म्यानों से तलवारें निकलकर आसमान में चमकने लगी थीं। उनकी झनझनाहट से सारा अखाड़ा गूंज उठा था और विरोधियों की तनिक-सी कामयाबी पर वह सिकुड़ जाता। सहसा अखाड़े में एक बिजली-सी चमकी तथा युवक की तलवार ने लपककर विरोधी के दो टुकड़े कर दिए। उसके मुलायम हाथों की यह करामात देखकर देखने वाले दंग रह गए तथा वे युवक की जय-जयकार के नारे लगाने लगे। खुद मंत्री ने युवक की पीठ थपथपाकर पूछा-
'वीर! तुम कौन हो तथा कहां के रहने वाले हो? वह कौन भाग्यशाली पिता है, जिसने तुम्हारे जैसे बहादुर को जन्म दिया है?
     सच पूछो तो रोजा के दिल की बात मंत्री ने पूछ डाली। लड़के की विजय से सारी जनता में यदि सबसे अधिक कोई खुश था, तो वह थी रोजा। युवक का परिचय जानने के लिए उसका मन व्याकुल हो रहा था इसलिए वह युवक के एक-एक शब्द को बड़े ध्यान से सुनने लगी।

    लड़का कह रहा था- "महाराज! मेरा नाम औरलैंडो है तथा मेरे पिता रोलैंड किसी वक्त इसी राज्य के प्रतिष्ठित दरबारी थे।
   मंत्री ने चौंककर पूछा- "क्या वही रोलैंड, जो पहले राजा का घनिष्ठ मित्र था?
   औरलैंडो ने सिर हिलाकर कहा- 'हां महाराज!
   इस एक 'हां' को सुनकर मंत्री के मन पर मानो एक साथ सैकड़ों बिजलियां टूट पड़ी हों। उसने लड़के को घूरते हुए कहा-
"बस औरलैंडो! इससे ज्यादा तुम्हारा परिचय पाने की मुझे आवश्यकता नहीं। अपने दुश्मन के पुत्र को एक क्षण भी मैं जीता नहीं देख सकता, मगर तुम्हारी वीरता और जवानी पर तरस खाकर मैं तुम्हें इजाजत देता हूं कि तुम इसी क्षण मेरे राज्य की हद से बाहर हो जाओ।
   
लड़के की वीरता को देखकर रोजा जितनी प्रसन्न हुई थी, मंत्री के गुस्से को देखकर उतनी ही दुखी हुई। यह जानकर कि वह युवक उसी के पिता के एक गहरे दोस्त और  पुराने दरबारी का पुत्र है, रोजा के दिल को बड़ा सहारा मिला था। वह उसे अपना समझ बैठी थी और एकांत में उससे मिलकर अपने मन की हजारों बातें कहना तथा उस से हजारों बातें पूछना चाहती थी, मगर जिस मंत्री ने रोजा से उसके पिता को छीना था, अब उसी ने उस लड़के को भी उससे छीन लिया।

   सखी की इस निराशा ने शीलिया को भी निराश कर दिया। वह उसी समय उस  लड़के को क्षमादान देने की प्रार्थना करने अपने पिता के पास गई तो मंत्री ने एक ऐसी  बात उसे कह दी, जिसे सुनने के लिए शीलिया कभी तैयार न थी।

   मंत्री ने कहा-
'बेटी ! मैंने सिर्फ तुम्हारी हठ के कारण अपने दुश्मन की बेटी को भी अब तक अपने राजमहल में रहने दिया, मगर अब वह एक क्षण भी यहां न रहने पाएगी। उसे कह दो कि आज सांझ को सूरज डूबने से पहले-पहले मेरे राज्य की हद से बाहर हो जाए।
   शीलिया ने धीमे लहजे में कहा- "और यदि मैं ही उसे न जाने दूं तो...।"
   मंत्री कड़ककर बोला- " तो तुम भी उसी के साथ मेरे राज्य से बाहर निकल  जाओ।"

   मंत्री ने आवेश में आकर यह इजाजत दे तो दी किंतु शायद उसे यह पता न था कि उसकी लड़की उसे, उसके राज्य और सारे सुखों को लात मार सकती है, मगर रोजा को कभी नहीं छोड़ सकती। पिता की इजाजत सुनकर शीलिया को अब कुछ और  सोचने की आवश्यकता न थी। उधर सांझ के वक्त आकाश का सूर्य इस भूमि को विदा दे रहा था। इधर ये दोनों सखियां राजमहल तथा राजधानी को विदा दे रही थीं।

 
राजकुमारियों के वेश में उनका बीहड़ रास्तों से गुजरना खतरे से खाली न था। अतः रोजा ने लंबी होने की वजह से पुरुष का वेश धारण किया और शीलिया ने ग्वालिन का। दोनों भाई तथा बहन बनकर राजधानी से दूर जंगल की तरफ चल पड़ीं। रोजा ने अपना नाम गैनीमीड तथा शीलिया ने एलिना रखा। जिन्होंने कभी महलों से बाहर पैर तक रखकर नहीं देखा था, वही राजकुमारियां आज दर-दर की खाक छानती हुई, भूख-प्यास के दुखों को झेलती हुई जंगल की ओर बढ़ने लगीं। न उन्हें पता था कि वे कहां से आ रही हैं तथा न उन्हें पता था कि वे किधर जाना चाहती हैं। उन्होंने केवल इतना सुन रखा था कि पहले वाले राजा अर्थात् रोजा के पिता ऑर्डन नामक जंगल में किसी स्थान पर अपने संगी-साथियों के साथ रहते हैं और शिकारियों का-सा जीवन बिताते हैं, मगर जंगल का वह कोना कहां है, इसका उन्हें कुछ पता न था।

   अंत में भटकते-भटकते एक दिन वे दोनों नगर से दूर वन की हद  के पास जा पहुंची। वहां उन्होंने क्या देखा कि एक गडरिया जंगल में भेड़ें चराकर सांझ के वक्त घर की ओर लौट रहा है। ये दोनों थकी-मांदी तथा भूखी-प्यासी तो थी ही, गैनीमीड ने  आगे बढ़कर उस गडरिये से कहा- "क्यों भाई, यहां कहीं रात बिताने को स्थान मिल जाएगा?"

   गडरिये ने उन्हें काफी दूर के गांव का बटोही समझकर उनका आदर-सत्कार किया  तथा रात को रहने का स्थान दिया। महलों में रहते हुए शायद छाछ व बाजरे की रोटी का नाम सुनते ही कोमल राजकुमारियों के पेट में शूल उठने लगते, मगर राह की थकान और भूख-प्यास के कारण आज यह खाना भी उन्हें अमृत से मधुर और मक्खन से भी मुलायम लग रहा था। रात को उन दोनों ने सोचा कि साथियों की खोज करते हुए पता नहीं उन्हें किन ठनाइयों का सामना करना पड़े इसलिए सही यही है कि कुछ  दिन इसी गडरिये की कुटिया में रहकर गांव की बोली, गांव की चाल-ढाल तथा वहां के रीति-रिवाज सीख लिए जाएं ताकि इस वेश में उन्हें कोई पहचान न सके। ये भी हो सकता है कि यहां रहते-रहते राजा के निवास स्थान का भी कुछ पता चल सके। यह सोचकर उन्होंने गडरिये को काफी इनाम दिया और उसी के मेहमान बनकर उसके घर में रहने लगीं।

    वहां रोजा को यह देखकर बड़ी हैरत हुई कि जगह-जगह जंगल के पेड़ों पर उसका  नाम कुरेदा हुआ है तथा चट्टानों पर किसी ने उसका नाम ले-लेकर विरह के गाने लिखे हुए हैं। उसे शक हुआ कि हो न हो औरलैंडो ने ही ये लिखे हैं और वह भी यहीं-कहीं इस जंगल में होगा।

एक दिन उन्हीं चट्टानों के आस-पास पागलों की भांति रोजा-रोजा' पुकारता हुआ औरलैंडो उसे दिखाई दे गया। अपने प्यार में उसकी यह दशा देखकर गैनीमीड के जी में आया कि वह अभी जाकर उसे कह दे कि जिसके प्यार में पागल हुए तुम इस प्रकार  जंगलों में भटक रहे हो, वह तुम्हारे ही सामने खड़ी है, मगर अपने आपको प्रकट करने का अभी उचित समय न आया था इसलिए वह बड़ी मुश्किल से अपने दिल की  व्याकुलता को रोक सकी और पुरुष वेश में ही उसके सामने जाकर कहा- "इस घने जंगल में किसे सुनाकर तुम रोजा-रोजा' चिल्ला रहे हो? कहां है वह रोजा?

औरलैंडो ने सिर से पैर तक गैनीमीड को देखा और मन ही मन सोचने लगा कि जैसे इस मनुष्य को पहले भी मैंने कहीं देखा है, मगर वह यह कल्पना भी न कर सका कि वह उसी की प्रेयसी रोजा है। उसने अपने दिल पर हाथ रखकर कहा- "रोजा मेरे दिल में विद्यमान है।
   
गैनीमीड ने सिर झुकाकर कहा- "तो तुम ही हो, जो वृक्षों और चट्टानों पर रोजा के विरह में गीत तथा गजलें कुरेदा करते हो? अगर तुम चाहो तो रोजा से मिलने का मैं तुम्हें एक उपाय बता सकता हूं?

   औरलैंडो-"जल्दी बताओ ! मैं अपनी रोजा को कैसे देख सकता हूं?"

  गैनीमीड ने कहा- 'तुम हर दिन इसी कुटिया में मेरे पास आया करो। हम दोनों प्रेमी तथा प्रेमिका का खेल खेला करेंगे। तुम तो राजकुमार औरलैंडो ही हो, मैं तुम्हार रोजा बन जाया करूंगा। तुम मुझे रोजा समझकर उसी तरह मुझसे प्यार की बातें कहा करना जैसे तुम रोजा को कहना चाहते हो। मैं भी अपने आपको रोजा मानकर उसी की
भांति मीठी-मीठी बातें करके तुम्हारा दिल बहलाया करूंगा। हो सकता है कि कभी असली रोजा भी तुम्हें मिल जाए

   उस वक्त तो औरलैंडो को इस बात का कोई खास मतलब समझ में नहीं आया, मगर उसे ऐसा लगा कि जैसे अब वह गैनीमीड के बिना रह ही नहीं सकता। वह हर  दिन उससे मिलने उसी कुटिया में आने लगा तथा उसे मेरी रोजा' कहकर अपना जी  बहलाने लगा। उसे क्या पता था कि उसके मन की रानी सचमुच उसी की आंखों के आगे बैठी रहती है, मगर वह उसे पहचान नहीं पाता।

   एक दिन जब वह रोजा से मिलने के लिए आ रहा था तो दूर से उसे दिखाई दिया कि कोई व्यक्ति पेड़ की छाया में गाढ़ी नींद में सोया है तथा एक शेरनी झाड़ी में से  निकलकर बिल्ली की तरह दबे पैर उसकी ओर चली जा रही है। औरलैंडो ने ध्यान से देखा तो उसे पता चला कि यह उसी का सगा भाई ओलिवर था, जिसने उसे जीते जी घर में जलाकर पिता की सारी संपत्ति पर अधिकार करने का षड्यंत्र रचा था। जब  वह इससे भी बच निकला तो इसी भाई ने उसे खूखार पहलवानों से दंगल लड़ने का मशविरा देकर यह सोचा कि उनके हाथों यह जरूर मारा जाएगा और उसे अपनी मनमानी करने का अवसर मिल जाएगा। भाई के ये सब अत्याचार एक बार औरलैंडो की आंखों के समक्ष घूम गए किंतु अधिक सोचने-विचारने का वक्त नहीं था।

   औरलैंडो तलवार निकालकर शेरनी पर झपट पड़ा तथा आन की आन में उसके शरीर के दो टुकड़े कर दिए। मरती हुई शेरनी एक बार पूरे जोर से दहाड़ी तथा ओलिवर के पास जाकर धड़ाम से गिर पड़ी। वह हड़बड़ाकर नींद से जागा तथा अपने सामने जो दृश्य देखा तो उसकी आंखें डबडबा आईं। वह अपने अपराध की माफी मांगने के लिए औरलैंडो के चरणों में गिर पड़ा। औरलैंडो का शरीर काफी घायल हो चुका था,  इसलिए वह अब गैनीमीड से मिलने के लिए उसकी कुटिया तक नहीं जा सका। उसने अपने भाई ओलिवर के हाथ खबर भेजकर गैनीमीड को अपने पास बुला भेजा। उस वक्त गैनीमीड और एलिना औरलैंडों की प्रतीक्षा में बैठे थे। एलिना के रूप सौंदर्य को
देखकर ओलिवर उस पर फिदा हो गया और बदले में एलिना की आंखों में भी उसने प्रेम की झलक पाई।
   
गैनीमीड को साथ लेकर वह शीघ्र ही औरलैंडो के पास पहुंचा तथा उसे एलिना से अपने प्रेम की सारी घटना कह सुनाई। यह सुनकर औरलैंडो बड़ा प्रसन्न हुआ और कहने लगा- 'अच्छा ही होता, अगर किसी दिन मेरी रोजा भी इस तरह मुझे अचानक मिल जाती।'

  अब गैनीमीड से चुप नहीं रहा गया। उसने चुटकी लेते हुए कहा-"तो मैं तुम्हारी रोजा नहीं हूं क्या?"
 
 औरलैंडो मुस्कराते हुए बोला- 'मेरी रोजा ! काश कि मैं तुम्हारे में अपनी असली रोजा के दर्शन कर सकता।' 

  गैनीमीड के मन में आया कि अभी प्रकट होकर कह दूं कि मैं ही तुम्हारी असली रोजा हूं, मगर कुछ सोचकर उसने ऐसा न किया और मन का भाव छिपाकर बोला- 'अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी असली रोजा भी बन सकता हूं।

   औरलैंडो ने हैरान होकर पूछा—'कैसे?"

   गैनीमीड ने उसी वक्त पुरुष वेश उतारकर कहा-"ऐसे!'
   
इस तरह अचानक ही अपनी रोजा को सामने खड़ा देखकर पहले तो औरलैंडो को 
यकीन न आया कि वह सत्य है या सपना।

   उधर ओलिवर के मुंह से शीलिया ने जब ये सुना कि महाराज का ठिकाना भी यहां से थोड़ी ही दूरी पर है तो वह उसके साथ शीघ्रता से गई और महाराज को लेकर उस जगह पर पहुंची, जहां रोजा तथा औरलैंडो खड़े थे। महाराज की दाढ़ी बढ़ आई थी तथा उन्होंने सिर पर लंबे-लंबे बाल रखे हुए थे। इस रूप में भी रोजा ने उन्हें पहचान लिया  उनके साथियों के सामने शुरू से लेकर आखिर तक अपनी राम कहानी कह सुनाई और औरलैंडो की तरफ संकेत करके कहा-"पिताजी ! ये आपके मित्र और पुराने दरबारी रोलैंड के वीर बेटे हैं और अब...।
   शीलिया बोत पूरी करते हुए बोली- 'और अब आपके बेटे बनना चाहते हैं।"

   जब राजा ने यह सुना कि यह लड़का उनके पुराने मित्र रोलैंड का पुत्र है तो उसे देखकर वे बहुत खुश हुए और रोजा का हाथ पकड़कर उसके हाथ में देते हुए "बेटी ! आज की यह बेला कितनी धन्य है कि न सिर्फ मैं अपनी बिछुड़ी बेटी को अपने सामने देख रहा हूं बल्कि उसे एक लायक वर के हाथों में सौंप रहा हूं।" उसी सांझ को प्रकृति के उस सुंदर आंगन में रोजा का औरलैंडो के साथ तथा शीलिया का ओलिवर के साथ विवाह संपन्न हुआ।अभी नए वर-वधू एक-दूसरे के लिए अमिट प्यार की शपथ ही उठा रहे थे कि राजधानी से एक दूत आया तथा राजा
 को प्रणाम करके उसने उनके हाथ में एक खत दे दिया। खत में लिखा था-
   

'मेरे वीर शिरोमणि धर्मस्वरूप महाराजाधिराज!

    आपको यह जानकर खुशी होगी कि जिस मोह में आकर मैंने आप सरीके
 देवतुल्य महाराज को प्रजा से बिछोह दिया था, वह मोह अब मेरे मन से दूर हो गया
है। मैं एक दिन आपकी ही हत्या करने के उद्देश्य से ऑर्डन के जंगलों में जा रहा
 था कि अचानक रास्ते में एक साधु से मेरी भेंट हो गई। उस साधु के दर्शनमात्र से
 मेरा मन बदल गया और उसके ज्ञान-भरे उपदेशों ने मेरी आंखें खोल दीं। महाराज!
 अब न तो मुझे राज्य चाहिए और न महल। मैं अपने पाप का प्रायश्चित करने के
लिए अपना शेष जीवन उसी साधु के चरणों में बिता देना चाहता हूं, मगर ऐसा 
करने से पहले मैं चाहता हूं कि एक बार आपके चरणों पर गिरकर आपसे अपने
 अपराध के लिए क्षमा मांग सकू तथा राज्य की प्रजा को उनका सच्चा राजा दिला
 सकू।
    संक्षेप में आपसे यही प्रार्थना है कि खत पढ़ते ही आप शीघ्र राजधानी में लौटने
 की मेहरबानी करें।

                                                                                                  आपका क्षमाप्रार्थी,
                                                                                                   वजीर।

इस समाचार ने विवाह के शुभ अवसर को और भी सुखमय बना दिया। वाकई यह घड़ी. कितनी सौभाग्यशालिनी थी, जिसमें बिछुड़े पिता पुत्रियों से, बिछुड़े प्रेमी प्रेमिकाओं से तथा बिछुड़े दोस्त दोस्तों से मिले।

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