Headlines
Loading...




य़ह कहानी दो जुड़वां भाई बहन की है । जो समुद्र में एक भयानक तूफान में अलग हो गए थे। तो वह दोनो एक-दूसरे की खोज कैसे करते है ।

नमस्कार दोस्तो आज की कहानी महान लेखक विलियम शेक्सपीयर की रचना Twelfth night का एक भाग  है । 

तो कहानी को शुरू करते है ।

ईश्वर की माया भी बड़ी विचित्र है। कभी-कभी वह ऐसे चमत्कार कर दिखाता है,
जिन्हें देखकर व्यक्ति की बुद्धि दंग रह जाती है। एक बार इल्यूशियम शहर में किसी
स्त्री के दो जुड़वां शिशु उत्पन्न हुए।दोनों की शक्लो-सूरत, रूप-रंग और डील-डौल बिल्कुल 
एक जैसा था। भेद सिर्फ इतना था कि उनमें एक लड़की थी और एक लड़का। मां ने लड़के का नाम सैबेस्टियन और लड़की का नाम व्यूला रखा। 

विचित्र बात तो यह थी कि बहन-भाई की तकदीर भी एक जैसी थी। एक बार जब वे दोनों कुछ बड़े हुए तो एक जहाज पर सवार होकर विदेश के सफर को चले। अभी वे अपने नगर से कुछ दूर ही गए होंगे कि समुद्र में एक भयानक तूफान उठ खड़ा हुआ और उनका जहाज बेकाबू होकर एक समुद्री चट्टान से जा टकराया।

बीसियों व्यक्ति डूब गए और बीसियों घायल होकर लहरों में समा गए, मगर इन दोनों बहन-भाई के जीवन के कुछ दिन शेष थे इसलिए दोनों इतनी बड़ी दुर्घटना में भी बच निकले थे। 

सैबेस्टियन ने जहाज से कूदकर एक बड़ा-सा तख्ता हथिया लिया तथा उससे चिपटकर लहरों पर डूबता-उतरता हुआ वह समुद्र में तैरने लगा। उसे व्यूला की बहुत फिक्र थी, मगर जब उसने देखा कि जहाज के मल्लाहों ने उसे भी अपने साथ नाव पर बैठा लिया है तो उसके मन को बड़ा संतोष हुआ। भगवान ने जिंदगी दी तो बहन-भाई फिर से मिल जाएंगे, यही सोचकर सैबेस्टियन उस तख्ते को बड़ी तत्परता
से किनारे की तरफ ले जाने लगा।

शायद व्यूला ने भी उसे दूर से ही तैरते हुए देख लिया था इसलिए उसने भाई से फिर से मिलने की उम्मीद मन से न छोड़ी। किनारे पर पहुंचकर उसने जहाज के कप्तान से कहा- -"कप्तान साहब! यह तो आप जानते ही हैं कि भाई ही मेरा एक सहारा था तथा इस दुर्घटना से उसके बच निकलने की आशा ही दिल में शेष रह गई है। पता नहीं उस पर क्या बीत रही होगी। उससे मेरी इस जिंदगी में भेंट होगी या नहीं और होगी भी तो पता नहीं कब! इसलिए मैं आपसे सलाह मांगती हूं कि अपने मुश्किलों के दिन
किसके पास रहकर बिताऊं?"

कप्तान ने, जो कि अधेड़ आयु का एक अनुभवी व्यक्ति था, स्नेह-भरे शब्दों में कहा- "यूं तो बिटिया, मुझे भी तुमको अपने घर में रखने में कोई आपत्ति नहीं, मगर मैं ठहरा जहाज का कप्तान। आज यहां, कल वहां किसी एक जगह तो हमारा ठिकाना है नहीं, इसलिए मैं तो तुम्हें यही मशविरा दूंगा कि तुम पास वाले द्वीप पर चली जाओ। वहां ओर्सिनो नाम का एक काफी धर्मात्मा राजकुमार रहता है। वह ब्याह योग्य उम्र
होने पर भी अभी कुंवारा ही है।"

व्यूला ने उसके अभी तक कुंवारे रहने की वजह पूछी तो कप्तान ने कहा- "सच में वह राजकुमार एक रईस की बेटी प्यार करता है, जिसका नाम ओलीविया है।

किसी वक्त ओलीविया भी उससे प्यार करती थी, मगर लगभग छह महीने बीते कि उसका एकमात्र भाई दुनिया से चल बसा। भाई की मृत्यु से ओलीविया को इतना गहरा आघात पहुंचा कि वह उसकी याद को मन से कभी न भुला सकी तथा दुनिया के सब ऐशो-आराम से किनारा करके तब से एक बंद कमरे में रहती है। न तो वह किसी से मिलती-जुलती है और न ही व्यक्ति की छाया तक अपने पर पड़ने देती है। यही वजह है कि राजकुमार भी उससे मिल नहीं पाता तथा उसकी याद में दिन-रात कुढ़ता रहता है।

व्यूला ने ठंडी गहरी सांस भरकर कप्तान से कहा- "बहनों को भाई कितने प्रिय होते हैं, यह बहनों का दिल ही जानता है। न जाने मेरा भैया भी कभी मुझे मिलेगा अथवा नहीं। कप्तान साहब, जिस ओलीविया का वर्णन आप कर रहे हैं, वह तो अपने भाई के शोक में मग्न है तथा मैं भी! इसलिए मुझे विश्वास है कि जो अपने भाई को हमेशा के लिए खो चुकी है, वह मेरे दिल की पीड़ा को जरूर पहचानेगी और मुझे आशा है
कि मेरे भाई को खोज लाने में वह हर संभव सहायता मुझे देगी। 

अगर कप्तान तुम मुझे किसी तरह ओलीविया तक पहुंचा दो तो मैं जन्म-जन्म तक तुम्हारा उपकार मानूंगी।" 

बूढ़े कप्तान ने कहा- "बिटिया, मुझे संदेह है कि बिना पूर्व परिचय के ओलीविया मुझसे भेंट करना भी स्वीकार नहीं करे इसलिए मेरी तो यही सलाह है कि तू राजा की शरण में ही जा। वह जरूर तेरी सहायता करेगा।'

व्यूला ने कप्तान की बात मान ली तथा एक पहाड़ी नौकर का वेश धारण करके राजकुमार के यहां नौकरी करने लगी। उसने राजकुमार को अपना नाम सिसेरियो बताया तथा तन-मन लगाकर उसी सेवा करने लगी। पुरुष वेश में वह अपने भाई जैसी लगती थी। उसके भाई का कोई मित्र व्यूला को इस वेश में देखकर उसे सैबेस्टियन समझने की भूल कर सकता था। 

अपने भाई की भांति वह काम करने में भी बड़ी कुशल थी। कुछ ही दिनों में वह राजकुमार की गहरी विश्वासपात्र बन गई। 

यहां तक कि राजकुमार ने उसे ओलीविया के साथ अपने प्यार की बात भी बता दी और इस
काम में उसकी मदद मांगी। बेचारी व्यूला इस काम में राजकुमार की क्या सहायता करती? वह तो राजकुमार के प्यार में खुद फंस जाने से स्वयं अपनी मदद भी न कर सकी। 

वह जब राजकुमार की सौम्य आकृति को देखती तो मन ही मन सोचती किन जाने ओलीविया का मन किस फौलाद का बना हुआ है, जो राजकुमार जैसे प्रेमी की प्रार्थना पर भी नहीं पसीजता है। मैं तो ऐसे राजकुमार की एक 'हां' के प्रति हजार बार कुर्बान होने को तैयार हूं।

जब एक बार राजकुमार ओलीविया की निष्ठुरता को याद कर-करके आंसू बहा रहा था
 तो सिसेरिया ने मौका देखकर कहा-
'मालिक! मुझसे आपकी यह हालत अब और अधिक नहीं देखी जाती। आपकी रातें  ओलीविया के विरह में आंसू बहाते और दिन उसी के गुण गाते हुए बीत जाते हैं। न तो  खाने की सुध है, न पीने की। बस आठों पहर ओलीविया के नाम की ही रट लगाए रहते हैं।  मैं पूछता हूं कि क्या ओलीविया ने एक बार भी आपकी इन तपस्याओं का ख्याल किया?"

राजकुमार ठंडी आह भरकर बोला-“सिसेरियो ! नारी का मन भगवान ने बनाया ही कलोर है। उसका हृदय लहू-गोश्त का नहीं, अपितु पत्थर का बना होता है। पसोजना तो उसे आता ही नहीं। यह व्यक्ति ही है, जो अपनी प्रेयसी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करके भी अपने-आपको ऋणी मानता है।"

नारी का तिरस्कार सुनकर व्यूला के मन को मानो ठेस पहुंची। उसका वेश भले ही मर्द का था, मगर हृदय तो नारी का ही था। उसने दिल ही दिल में कहा- काश! राजकुमार मेरे हृदय में झांककर देख सकता कि नारी का मन किन कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत है।

व्यूला के मन की यह बात होंठ भी न रोक सके तथा सहसा उसके मुंह से निकल गया—"राजकुमार! काश ! मैं नारी होता तथा तुम्हें बता सकता कि नारी की तुलना में पुरुष का प्रेम कुछ नहीं। नारी के प्रेम का मुझे गहरा अनुभव है। उसे तिरस्कार के नजरिए से मत देखो।"

राजकुमार ने कहा- इसका प्रमाण?
सिसेरियो बोला- 'वक्त आने पर मैं इसका प्रमाण भी आपको दिखा दूंगा।"
राजकुमार ने खिलकर कहा- 'मेरे लिए प्रत्यक्ष प्रमाण तो ओलीविया ही है। अगर तुम अपना प्रमाण दिला सको तो प्रिय सिसेरियो ! मैं कई जन्मों तक तुम्हारा उपकार न भुला सकूँगा। मैंने आज तक अपने प्रेम का रहस्य अन्य किसी को नहीं बताया। आज सिर्फ तुम्हें बता रहा हूं और वह भी इसी आशा पर कि तुममें ओलीविया को मोहने की अद्भुत शक्ति है। मुझे यकीन है कि यदि तुम उसके पास जाकर उसे दर्द-भरे शब्दों में मेरे प्रेम का अफसाना सुनाओ तो निश्चय ही उसका कठोर हृदय भी पिघल जाएगा
तथा तुम्हारी हठ के सामने वह 'ना' नहीं कर सकेगी।"

व्यूला जिसे खुद चाहती थी, भला उसी के प्रेम का संदेश लेकर किसी दूसरी लड़की के पास कैसे जा सकती थी? वह कैसे अपने मन के प्रेमी को अपने ही हाथों से किसी दूसरी को सौंप सकती थी? फिर भी वह अपने मन पर पत्थर रखकर राजकुमार की खातिर ओलीविया के पास गई तथा उसने ऐसे दर्दभरे अल्फाजों में राजकुमार के विरह का वर्णन किया कि ओलीविया का मन उमड़ आया, लेकिन राजकुमार के प्रति नहीं
बल्कि सिसेरियो केही प्रति। उसकी नजरों में सिसेरियो पुरुष था, सुंदर था तथा उसकी वाणी में जादू था। बस इन्हीं गुणों पर वह सिसेरियो पर रीझ गई तथा उसे अपने भाई के  वियोग का स्मरण न रहा।

सिसेरियो ने लाख कोशिश की कि किसी प्रकार वह ओलीविया का दिल राजकुमार की  ओर खींच सके किंतु इससे उसके मन पर कुछ असर नहीं हुआ और उसने नम्रता-भरे शब्दों में कहा- "मेरी तरफसे अपने मालिक से जाकर माफी मांग लेना कि मैं उनके लायक नहीं। वे मुझ दुखिया को क्यों इतना मान देना चाहते हैं। वे ऐसा न किया करें।"

इस तरफ से पूरी तरह निराश होकर सिसेरियो उसके पास से जाने लगा तो ओलीविया को ऐसा लगा जैसे कि कोई उसके पहलू से हृदय निकालकर लिए जा रहा हो। 

जब वह रात को सोई तो सपने में भी उसे सिसेरियो की ही आकृति दिखाई दी थी। उस जादू-भरे मुस्कराते मुखड़े को वह फिर कैसे देख सके, इसी फिक्र में शेष रात कट गई। सुबह हुई तो उसे एक बहाना सूझा। उसने कांपते हाथों से भोज पत्र का एक टुकड़ा उठाया तथा उस पर लिखने लगी-
'मेरे अनजाने बंधु सिसेरियो!
तुम राजकुमार की खबर लेकर मेरे पास आए ही क्यों थे? मैं अपनी ही धुन में
मस्त होकर किसी तरह से सुख-दुख के दिन काट रही थी, मगर तुमने आकर
सहसा मेरे हृदय में उथल-पुथल मचा दी तथा जाते समय मेरे मन की सारी शांति
बटोरकर अपने साथ लेते गए। यह तुम्हारी निष्ठुरता नहीं तो और क्या है? दो पल
के तुम्हारे सहवास ने मुझे पराया बना दिया। अगर इस तुच्छ ओलीविया के प्रति
तुम्हारे मन में जरा भी सहानुभूति शेष हो तो एक बार अवश्य दर्शन देना। मैं तुम्हारी
बाट जोहती रहूंगी।
तुम्हारे मिलन की उम्मीद में,
तुम्हारी ही,
ओलीविया।'
खत लिखकर उसने अपने एक विश्वासपात्र नौकर के हाथ सिसेरियो के पास भेज दिया। खत को पढ़कर सिसेरियो ने जोर का एक ठहाका लगाया तथा ओलीविया के भोलेपन पर उसे रहम आने लगा। कहां तो वह पुरुष की छाया से भी दूर भागती थी तथा कहां अब पुरुष के छल में, एक स्त्री पर ही अपना प्यार लुटाने को तैयार हो गई थी। वह अगले दिन फिर राजकुमार के संदेश के बहाने से ओलीविया के पास गई और अपनी ओर से मन हटा लेने का उससे बड़ा आग्रह किया, मगर ओलीविया ने एक न मानी।

हारकर वह उसे वहीं छोड़कर चली आई।

ज्यों ही सिसेरियो दरवाजे से बाहर निकला, त्यों ही न जाने कहां से एक शराबी व्यक्ति निकल आया और उसकी तरफ घूमकर बोला- "तो तुम्हीं मेरे वह शत्रु हो, जो राजकुमार की चिट्ठियां और संदेश ले-लेकर इस घर में आया करते हो। जानते नहीं, वह मेरे मन की मलिका है और उस पर मैं किसी की नजर तक पड़ते देखना नहीं चाहता। बदमाश! तुम उसे मुझसे छीनकर राजकुमार के हाथों सौंपना चाहते हो तो लो,
मैं पहले तुम्हारा ही काम तमाम करता हूं, फिर तुम्हारे राजकुमार की भी खबर लूंगा।"

यह कहकर वह व्यक्ति शराबियों की तरह झल्लाकर व्यूला पर झपटा। बेचारी व्यूला ने वेश तो पुरुषों का ही बना रखा था, मगर उन जैसा साहस कहां से लाती? बेचारी अपनी सारी मर्दानगी भूलकर डर से चिल्लाना ही चाहती थी कि गली के दूसरे मोड़ से एक मुसाफिर इसी तरफ आता हुआ दिखाई दिया। 

व्यूला को मुश्किल में फंसा देखकर, मुसाफिर ने अपनी चाल तेज कर दी तथा उसकी ओर आते हुए
बोला- "सैबेस्टियन, डरो नहीं! मैं अभी इस दुष्ट की अक्ल ठिकाने लगाता हूं।"

कई साल बाद आज अपने भाई का नाम सुनकर व्यूला चौंकी और वह पैनी निगाह से उस मुसाफिर को पहचानने का यत्न करने लगी। तब तक मुसाफिर उस शराबी के पास पहुंच चुका था तथा उसकी तलवार छीनकर वह उसे दो-चार चूंसे भी मार चुका था। 

पलक झपकते ही न जाने कहां से दो सिपाही टपक पड़े। उन्होंने आते ही उस मुसाफिर के दाएं-बाएं हथकड़ी लगा दी तथा उसे थाने ले गए किंतु शराबी आदमी से उन्होंने बात तक न पूछी। 

बेचारा मुसाफिर इस सबका कुछ भी अर्थ न समझ सका और व्यूला की ओर देखकर बोला- "अरे सैबेस्टियन! मुझे सिपाही पकड़कर ले जा रहे हैं और तू खड़ा देख रहा है। बेशर्म कहीं के ! मैंने समुद्र में उस वक्त तेरे प्राणों की रक्षा की जब भगवान भी तुझ पर दया करना भूल गया था। अब तो तू मुझे इन यमदूतों से भी नहीं छुड़ा सकता।"

इतना सुनकर व्यूला मानो किसी गहरे सपने से जागी। अब उसे कुछ-कुछ समझ में आने लगा कि यह क्या मामला है। मुसाफिर की बातों से इतना जरूर इशारा मिल गया कि उसका भाई सैबेस्टियन समुद्र में डूबा नहीं तथा अब भी जीवित है। उसी के भ्रम से मुसाफिर ने सैबेस्टियन समझकर उसकी हिफाजत की थी।

जब तक व्यूला इस स्वप्न से जागी तब तक निर्दयी सिपाही उस मुसाफिर को घसीटकर ले जा चुके थे। व्यूला ने दाएं-बाएं देखा तो वह शराबी कहीं दिखाई नहीं दिया। कहीं वह यमदूत फिर न आ धमके, इस डर से वह बेचारी झटपट वहां से महल की तरफ भागी। अभी उसके मुड़ने की देर ही थी कि दूसरी गली से एक और लड़का उस चौक में आकर खड़ा हो गया, जिसकी आकृति व्यूला से बिल्कुल मिलती-जुलती थी। 

यही व्यूला का बिछुड़ा भाई असली सैबेस्टियन था। तब तक वह शराबी भी एक-दो गुंडे सहयोगियों को लेकर फिर उसी चौक पर आ गया। सैबेस्टियन को व्यूला समझकर शराबी ने धमकाकर कहा- "क्यों बे नकारा! तूने मुझे घूसे क्यों मरवाए थे?" यह कहकर जैसे ही शराबी ने तलवार से उस पर वार करना चाहा वैसे ही सैबेस्टियन ने भी तलवार निकाल ली और एक-एक की अच्छी प्रकार मरम्मत की।

चौक में मारपीट की आवाज सुनकर ओलीविया भागी आई और सैबेस्टियन को सिसेरियो समझकर उसने उसकी बहादुरी की बड़ी तारीफ की और बड़े आग्रह से अपने घर ले गई। 

सैबेस्टियन हैरान था कि वह इस शहर में किसी को जानता तक नहीं, फिर क्यों एक शराबी उसे शत्रु समझकर मारने के लिए आया और क्यों यह रईसजादी उसके साथ इस सलीके से पेश आ रही है? आखिर में उसने यही निष्कर्ष निकाला कि हो न हो, यह रईसजादी ओलीविया पहली मुलाकात में ही मुझसे प्रेम करने लगी है तो इससे बढ़कर मेरा सौभाग्य हो ही क्या सकता है? 

यह सोचकर वह ओलीविया के साथ उसी प्रेम और मोहब्बत के साथ पेश आया जैसे कि ओलीविया उससे पेश आ रही थी। वह भी इसे ईश्वर का चमत्कार ही समझने लगी थी कि अभी तो सिसेरियो मुझसे सीधे मुंह बात भी न करता था और अभी वह मुझे सिर-आंखों पर बैठाने को तैयार हो रहा है।

उधर मुसाफिर ने पुलिस स्टेशन में जाकर अपना बयान देते हुए कहा- "मेरा नाम एंटोनियो है तथा मैं एक जहाज का कप्तान हूं। महीनों पहले, मैंने एक मनुष्य को समुद्र डूबते हुए देखा। मैंने रहम करके उसे अपने जहाज पर बैठा लिया और जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ न हो गया, तब तक मैंने दिन-रात एक करके उसकी सेवा-सुश्रूषा की तथा उसके लिए पानी की तरह रुपया बहाया। यह वही व्यक्ति है, जिसे आज फिर एक शराबी से बचाने के लिए मैंने बीच-बचाव किया तथा जिसकी वजह से आपके सामने मुझे अपराधी बनकर आना पड़ा है। उसका नाम सैबेस्टियन है तथा मैं उसे अपना गाढ़ा मित्र समझता था, मगर आप मेरे गवाह हैं कि जब आज मुझ पर मुसीबत पड़ी तो वह काठ के उल्लू की भांति खड़ा मेरे मुंह की ओर ताकता रहा। आप लोग मुझे पकड़कर ले आए हैं। तरस खाकर मैंने उसे मरने से बचाया है। अब यह आपकी मर्जी है कि आप मुझे पुरस्कार दें या कारागार।"

पुलिस वालों ने कुछ डरा-धमकाकर उसे छोड़ दिया था। 

सैबेस्टियन की  कृतघ्नता को याद करके उसके मन में आग-सी धधक रही थी। उसने फैसला कर लिया था कि चाहे उसे फांसी पर ही क्यों न लटकना पड़े, मगर वह ऐसे बेवफा मित्र को सबक सिखाकर ही छोड़ेगा। यही सोचकर वह सीधे उसी चौक में गया, जहां सिसेरियो को सैबेस्टियन मानकर वह उसे शराबी के चंगुल से छुड़ाकर छोड़ गया था। भला उन दोनों में अब उसे कौन दिखाई देता। बेचारा सिसेरियो तो अपने सिर से आफत टली देखकर उसी वक्त वहां से दुम दबाकर ऐसे भागा कि उसने पीछे की तरफ घूमकर भी न देखा और सैबेस्टियन, जिसे एंटोनियो सचमुच ढूंढ़ना चाहता था, वह तो अब रईसजादी ओलीविया का प्रेमपात्र बन चुका था तथा हजारों दास-दासियां उसकी खुशामद करने में लगी हुई थीं। 

भला अब वह उसे कहां दिखाई देता? बेचारा बेकार ही चौक के आसपास चक्कर काटने लगा।

उधर जब काफी देर तक सिसेरियो महल में न पहुंचा तो राजकुमार को फिक्र हुई। वह स्वयं उसकी खबर लेने के लिए ओलीविया के घर की तरफ चल दिया। वहां  पहुंचकर उसने क्या देखा कि सिसेरियो के शक्ल का एक व्यक्ति शाल दुशाले से सजे  एक पलंग पर सोया हुआ है और खुद रईसजादी ओलीविया उसे पंखा झल रही है। 

यह नजारा देखकर उसके तन में दोहरी आग लग गई। उसने आव देखा न ताव और उस व्यक्ति को सिसेरियो ही समझकर लगा कोसने।

‘कृतघ्न कहीं के ! मैंने तुझ पर यकीन करके अपना संदेश देकर तुझे यहां भेजा और तू उल्टा मेरी ही ओलीविया को मुझसे छीन बैठा। तुम अपने वह दिन भूल गए जब तुम  एक-एक पैसे के लिए तरसते मेरे पास आए थे और मैंने तुम पर दया करके अपने यहां नौकर रख लिया था। दुष्ट सिसेरियो ! क्या मेरे रहम का तुमने यही बदला दिया। कमीना! दुष्ट ! नीच!"

राजकुमार की त्यौरियां देखकर सैबेस्टियन भी लपककर खड़ा हो गया तथा क्रोध में होंठ चबाते हुए बोला--"कौन है रे तू बकवादी, जिसे बोलने तक की तमीज नहीं? कौन कमीना तेरे पास भीख मांगने आया था तथा किसे तूने नौकर रखा था? झूठी बात कहते क्या तुझे शर्म भी नहीं आती। 

तेरे जैसे एक शराबी से पहले भी मेरा वास्ता पड़ चुका है। लगता है तूने भी हद से ज्यादा ही शराब पी रखी है इसलिए मुझे 'सिसेरियो! सिसेरियो!' कहकर पुकार रहा है। मैं सिसेरियो नहीं। मेरा नाम सैबेस्टियन है तथा मैं अपने एक दोस्त के साथ आज ही पहली बार इस नगर में आया यह झगड़ा सुनकर चौक में चक्कर काटते हुआ एंटोनियो भी वहीं आ पहुंचा।

सैबेस्टियन को समक्ष खड़ा देखकर उसने राजकुमार से कहा- "आप सही कहते हैं महाराज! यह व्यक्ति बड़ा ही कृतघ्न तथा झूठा है। आज इसने मुझे भी धोखा देकर हवालात में भिजवा दिया था। मेरी तकदीर अच्छी थी, जो छूटकर आ गया, नहीं तो इसने अपनी दुश्मनी निकालने में कोई कसर न छोड़ी थी। 

मैंने इसे एक बार समुद्र में डूबने से बचाया था। जब यह मेरा अपना नहीं बना तो भला आपका कैसे बन सकता है? यह झूठा है, कृतघ्न है, गद्दार है। इसकी चमड़ी कुत्तों से नुचवा देनी चाहिए। इसकी
बोटी-बोटी काटकर, इसे तड़पा-तड़पाकर मारना चाहिए।"

यह कहकर एंटोनियो तथा राजकुमार बेचारे सैबेस्टियन को पकड़कर घसीटने ही चले थे कि अचानक बाहर से उन्हें उसी शक्ल का एक और आदमी आता हुआ दिखाई दिया। उसे देखकर दोनों हैरान रह गए कि एक ही व्यक्ति अंदर भी और बाहर भी दोनों ही जगह कैसे दिखाई दे सकता है? 

बेचारी ओलीविया दुविधा में पड़ गई कि वह घर के अंदर खड़े पुरुष को पति स्वीकार करे या बाहर से आने वाले को? शक्लो-सूरत, चाल-ढाल, कद-उम्र सभी में दोनों बिल्कुल समान थे। किसी में तिल-भर का भी फर्क न था।

हकीकत में बाहर से आने वाला पुरुष व्यूला थी और राजकुमार तथा एंटोनियो आदि से घिरा हुआ, घर में खड़ा व्यक्ति व्यूला का बिछुड़ा हुआ भाई सैबेस्टियन ही था। बहन-भाई की आकृति बिल्कुल समान थी तथा व्यूला ने भी सिसेरियो के नाम से पुरुष का वेश धारण कर रखा था इसलिए देखने वालों को दोनों में कोई भेद न जान पड़ा,मगर बहन-भाई तो इस रहस्य को जानते थे तथा चिरकाल से वे एक-दूसरे की
खोज में ही दर-दर भटक रहे थे। 

जैसे ही उनकी आंखें चार हुईं , वे एक-दूसरे को पहचान गए तथा गले लिपटकर हर्ष के आंसू बहाने लगे।
व्यूला ने हर्ष विभोर होकर कहा- "भैया ! आज तुम मुझे मिल गए तो मुझे सारा जहान मिल गया है।"
सैबेस्टियन ने कहा- 'बहन ! मैंने तुम्हें देख लिया तो मानो मुझे जीवन की अमूल्य निधि मिल गई।

सैबेस्टियन के मुंह से बहन' संबोधन सुनकर राजकुमार ने चौंककर पूछा- "तो क्या सिसेरियो स्त्री है?"

सैबेस्टियन ने कहा- 'हां राजकुमार! यह मेरी छोटी बहन व्यूला है। एक बार जहाज दुर्घटना में हम दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए थे। मुझे एक दयालु कप्तान ने अपने जहाज पर बैठाकर मेरे प्राण बचाए थे। मैं और वह आज ही इस शहर में पहुंचे हैं। 

हम दोनों अलग-अलग दिशाओं से चलकर नगर में इसी बहन की खोज करने के लिए निकले थे, मगर तब से उस कप्तान का कुछ पता ही नहीं।"

पास खड़ा एंटोनियो ये सब बातें सुन रहा था। अब अच्छी तरह उसकी समझ में आ रहा था कि अपने दोस्त सैबेस्टियन को कृतघ्न समझने का भ्रम उसे क्यों हुआ? उसने आगे बढ़कर कहा-
'वह अभागा एंटोनियो मैं ही तो हूं।'
उनकी सारी गुत्थी सुलझी देखकर व्यूला ने आदि से लेकर अंत तक सारी कहानी कह सुनाई। उसने राजकुमार को साफ कह दिया कि वह उससे प्रेम करती थी, इसलिए नौकर बनकर भी उसकी खिदमत में रहना उसने स्वीकार किया।

0 Comments: