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" जुलाई का महीना था; दोपहर ढल रही थी। मैं नाइम्स से लौट रहा था। धूप से तपती हुई सड़क जहाँ तक दृष्टि जाती थी, जैतून के हरे-भरे बागों के बीच धूल की रेखा सी दिखाई पड़ती थी; और ऊपर नीले आकाश में सूरज की सुनहली किरणें बिखरी हुई थीं। छाया का कहीं नाम न था, हवा का साँस चलना जैसे बन्द हो गया हो। उष्ण वायुमंडल में लहरें नहीं उठ रही थीं। चारों ओर स्तब्धता थी; केवल टिड्डों की तीव्र चीख विस्तृत नीरवता को भंग कर रही थी। उनका यह तीव्र संगीत प्रकाशपूर्ण असीम लहरियों का प्रतिरूप-सा प्रतीत होता था।

दो घंटे से मैं इस निर्जन मरुभूमि में यात्रा कर रहा था कि सहसा सड़क की धूल से जैसे सफ़ेद मकानों का एक झुंड उभरकर उठ आया। इसका नाम सेंट पिन्सेट था; पाँच-छह किसानों के घर, लाल छत का लम्बा-चौड़ा खलिहान और छोटे-छोटे मकानों के इस झुरमुट के सिरे पर दो सराय सड़क के दोनों किनारों पर बनी हुई जैसे एक-दूसरे की ओर ईर्ष्या भरी दृष्टि से देख रही हों।

इन दो सरायों के इतना समीप होने में एक विचित्र बात-सी दिखाई देती थी। सड़क की एक ओर तो एक विशाल इमारत थी जिसमें जीवन छलक रहा था। सभी दरवाजे खुले थे, फाटक पर गाड़ियाँ खड़ी थीं, गाड़ियों से खुले हुए घोड़े आनन्द की साँस ले रहे थे; यात्री सराय की छोटी दीवारों के अपर्याप्त साये में बैठे शराब पी रहे थे।

हाते में खच्चर और गाड़ियों की भरमार थी, गाड़ीवाले सायबान में लेटे हुए संध्या की प्रतीक्षा कर रहे थे। भीतर चीख-पुकार, शपथ, मेज़ पर घूसों की आवाजें, गिलासों की खनखनाहट, बिलियर्ड खेल की गोलियों की झंकार, बोतलों के कार्क खुलने की आवाज़, और इन सभी प्रकार के शोरगुल के क्षुब्ध समुद्र से प्रसन्नता से भरी हुई, मधुर झंकार-पूर्ण संगीत की ध्वनि उठकर खिड़कियों से बाहर निकल-निकलकर उन निर्जीव खिड़कियों में भी स्पन्दन उत्पन्न कर रही थी।

ज्यों ही निद्रा को तज कर, ऊषा ने ली अंगड़ाई। त्यों ही सुन्दर मार्टन भी, चाँदी-घट पनघट लाई।

और उनके सामनेवाली सराय ठीक इसके विपरीत निर्जन तथा परित्यक्ता-सी प्रतीत हो रही थी। दरवाजे के पास घास उग आई थी, दरवाजे और खिड़कियाँ टूटने लगी थीं, दरवाजे पर की शाख झूल रही थी जिसमें जंग लग रही थी; सड़क के कंकड़-पत्थर निकल-निकलकर दरवाजे पर बिछ गए थे। यह सराय निर्धनता की मारी हुई इतनी दयनीय दिखाई पड़ रही थी कि मैंने सोचा कि इसमें बैठकर एक गिलास शराब पीना भी इसके ऊपर दया दिखाना होगा।

मैंने भीतर प्रवेश किया। एक बड़ा-सा कमरा था जो और भी परित्यक्त और उदास प्रतीत होता था। कमरे में तीन खिड़कियाँ हैं जिनमें पर्दे नहीं थे। बाहर का प्रकाश इनसे आकर कमरे में प्रवेश करके उसे और उदास-सा बना रहा था। थोड़े से मेज़ कमरे में रखे थे जिन पर टूटे-फूटे गिलास सजे थे। वर्षों की गर्द गिलासों पर जमकर उन्हें और भी अदर्शनीय बना रही थी।

बिलियर्ड खेलने की मेज़ टूट-फूट चुकी थी; उसके चारों कोनों की चारों जेबें जैसे आनेवालों से भीख माँग रही हों। एक पीली कोच, एक पुराना-सा डेस्क उस अस्वास्थ्यकर स्थान में जैसे गहरी नींद में पड़े थे।

और मक्खियाँ? जिधर देखो उधर मक्खियाँ ही मक्खियाँ थीं। इतनी मक्खियाँ मैंने कभी न देखी थीं। ऊपर की छत पर, खिड़कियों में चिपकी हुई और गिलासों में झुंड की झुंड मक्खियाँ बैठी हुई थीं। मैंने दरवाजा खोला तो भीतर भन-भन की आवाज़ हुई जैसे मैं किसी मधुमक्खी के छत्ते में प्रवेश कर रहा था।

कमरे के दूसरे सिरे पर एक खिड़की के सामने एक स्त्री खड़ी थी। बाहर की ओर निहारने में वह अत्यन्त व्यस्त थी।

मैंने उसे पुकारा, फिर पुकारा : "अरे, ओ, इधर, मालकिन।"

धीरे से मुड़कर एक किसान स्त्री ने अपना मुँह मेरी ओर कर दिया। झुर्रियाँ झूल रही थीं। रंग सूखकर मिट्टी का जैसा हो गया था। पुराना-सा गन्दा एक लैस बाँधे थी जैसा कि हमारे आस-पास की स्त्रियाँ बाँधती हैं। बहुत वृद्धा न होने पर भी सतत अश्रुप्रवाह में उसका यौवन जैसे बह कर उसे वृद्ध कर गया हो।

अपनी नम आँखों को पोंछते हुए उसने पूछा, “कहिए, क्या चाहिए?"

"एक गिलास शराब चाहता हूँ।'

आश्चर्य के साथ उसकी आँखें मेरे मुँह पर जम गईं; अपने स्थान पर वह जड़-सी हो गई जैसे उसे मेरी बात समझ में ही न आई हो।

"यह सराय नहीं है क्या?"

स्त्री के मुँह से एक निःश्वास निकल गई। "है तो पर यदि आप इसे समझें। परन्तु दूसरों की तरह आप भी सामनेवाली सराय में क्यों नहीं जाते? वह तो अधिक सुन्दर और सजीव है।"

"मेरे लिए वहाँ ज़रूरत से ज्यादा चहल-पहल है। मैं यहीं ठहरना चाहता हूँ।"

और बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किए मैं एक मेज पर बैठ गया।

जब उसे विश्वास हो गया कि मैं सचमुच में ही शराब पीने आया हूँ तो वह बहुत व्यस्त सी दरवाजे खोलती हुई, बोतलों को इधर-उधर करती, गिलासों को साफ़ करती और मक्खियों के आराम को भंग करती हुई इधर-उधर आती-जाती दिखाई देने लगी।

जान पड़ा था जैसे आए हुए ग्राहक की आज्ञाओं को पूरा करना उसके लिए एक महान कार्य हो। कभी-कभी बेचारी दुखिया रुककर अपने सिर को हाथों पर रख लेती जैसे कभी कोई काम वह पूरा नहीं कर पाती हो। तब मुझे पीछे कमरे में जाने की उसकी आहट मिली। फिर बड़ी-बड़ी चाबियों की तालों के साथ खनखनाहट! फिर प्लेटों को फूंक कर झाड़ने और फिर धोने की आवाज़ सुनाई दी। बीच-बीच में गहरी निःश्वास और सिसकना!

पन्द्रह मिनट की इस कार्य-व्यस्तता के बाद मेरे सामने एक प्लेट सूखी किशमिश, एक टुकड़ा रोटी पुरानी होने के कारण जो पत्थर सी कड़ी हो गई थी और एक बोतल खट्टी नई शराब लाकर रख दी गई।

"बस, आपको सब मिल गया।" उस स्त्री ने कहा और जाकर फिर खिड़की पर खड़ी हो गई।

मैं शराब पी रहा था तो मैंने उससे बातें करनी चाहीं।

"जान पड़ता है यहाँ अक्सर लोग नहीं आते।"

"नहीं, कभी नहीं, महाशय! जब हम अकेले यहाँ थे तब बात दूसरी थी! हम लोग शिकार के मौसम में शिकारी को खाना दे सकते थे, और साल भर हमारे यहाँ गाड़ियाँ मिल सकती थीं। लेकिन जब से हमारे पड़ोसी ने यह सराय शुरू की तब से हमारा सब कुछ नष्ट हो गया। लोग उसी के यहाँ जाना पसन्द करते हैं। यह स्थान उन्हें बहुत मनहूस-सा जान पड़ता है और सच भी है कि अब जगह उतनी आकर्षक नहीं है। मैं सुन्दर नहीं हुई। मुझे ज्वर भी रहता है। और मेरी दोनों लड़कियाँ मर गई हैं।

उसके विपरीत सामने वाली सराय में हमेशा हँसी का फव्वारा छूटता रहता है। उसकी मालकिन आर्लेस की एक स्त्री है, वह सुन्दर है और गले में सोने का तिनलड़ा कंठा पहनती है। उसका प्रेमी है और इसके अतिरिक्त कई सुन्दर नवयुवतियाँ उसके यहाँ नौकरानियों का काम करती हैं। इसलिए उसके यहाँ बहुत से ग्राहक आते हैं। बेन्जोसेस, रेडेसन और जानक्विरेस के सभी लोग उसी के यहाँ जाते हैं। गाड़ी वाले उसकी सराय के सामने से जाने के लिए अपना रास्ता छोड़ देते हैं। और मैं बिना एक भी ग्राहक के यहाँ बैठी हुई अपना हृदय मसोसती रहती हूँ।"

उसने दुख-विदीर्ण शब्दों में उदासीन भाव से यह सब कहा। अब भी वह अपना माथा शीशे पर टेके हुए थी। यह प्रत्यक्ष था कि कोई ऐसी बात सामने वाली सराय में अवश्य है जिससे वह इतनी आकर्षित है।

सहसा सड़क की दूसरी तरफ़ भीड़-भाड़ जान पड़ी। गाड़ी धूल में आगे बढ़ रही थी, मुझे चाबुक की सड़ाक-सड़ाक, चालक की सीटी, और दरवाजे पर खड़ी लड़कियों की आवाज़ जो 'विदा, विदा' चिल्ला रही थी, सुनाई पड़ी। और इस सब शोरगुल से ऊपर उठता हुआ संगीत मुझे सुनाई पड़ा।

लिए रजत घट अपना फिर वह, पहुँची तुरन्त कुएँ के पास; नहीं दीखते थे वे सैनिक; अभी वहाँ से आते पास!

संगीत की यह ध्वनि सुनकर वह स्त्री अंग-अंग में काँप गई। मेरी ओर देखकर बोली, “सुनते हैं न आप! यह मेरे पति हैं! अच्छा गाते हैं न?"

मैं अवाक्-सा उसे देखने लगा! "

क्या? आपके पति! तो क्या वे भी वहीं जाते हैं?"

इस पर टूटे हुए हृदय से पर बड़ी ही कोमलता के साथ उसने उत्तर दिया, "फिर और क्या आशा आप करते हैं, महाशय? पुरुष तो इसी प्रकार के बने होते हैं। वे किसी को रोते देखना नहीं पसन्द करते। और जब से मेरी लड़कियाँ मर गईं; मैं दिन-रात रोती रहती हूँ। और फिर यह बड़ी इमारत, यहाँ कोई आता नहीं इसलिए यह भी निर्जन बनी रहती है। इसलिए जब बेचारा जोसे बहुत ऊब गया तो वह भी वहाँ शराब पीने जाने लगा। आर्लेस की स्त्री उससे गीत गवाती है। ओह, फिर उसने शुरू किया।"

और वह वहाँ स्वप्न में डूबी-सी खड़ी रही, काँपती हुई। उसके हाथ आगे को फैले हुए थे। गालों पर आँसू की बूंदें ढुलक रही थीं जिनसे उसका चेहरा पहले से भी अधिक असुन्दर दिखाई पड़ रहा था। और उसका जोसे आर्लेस की स्त्री के लिए गा रहा था।

कहा प्रथम ने उसे देखकर 'नमस्कार ऐ, प्रिय सुन्दरि!"

अल्फांसो डाउडेट

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