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एक पिता जो अपनी बेटी को इस दुनीया से  बचाने के लिये उसके साथ  सात समुंदर पार एक बड़ा ही सुंदर टापू पर अपनी बेटी के साथ अकेला रहता था । एक दिन वहा से एक जहाज गुजरी तो पङे की कैसे उसने अपनी बेटी को बचाया ।


नमस्कार दोस्तो आज की कहानी महान लेखक विलियम शेक्सपीयर की रचना  The Tempest  है । 
तो कहानी को शुरू करते है ।

किसी जमाने में सातों द्वीपों से दूर, सात समुंदर पार एक बड़ा ही सुंदर टापू था। उस पूरे टापू में मनुष्य नाम का एक ही प्राणी था- 'प्रास्परो।' वह नदी के किनारे चट्टानों की एक गुफा में रहता और अपनी इकलौती पुत्री, मिरांडा के साथ जीवन बिताया करता था। मिरांडा लगभग चौदह साल की एक भोली-भाली लड़की थी। सारा दिन जंगल के हिरण और खरगोशों के पीछे भागते-कूदते, चिड़ियों-चकोरों के साथ खेलते-खिलखिलाते और नदी के किनारे कंकर और सीपियां चुनते हुए उसका दिन गुजर जाता था। यहां रहते-रहते उसे तेरह बरस बीत चुके थे, मगर अब तक उसने अपने बूढ़े बापू के अतिरिक्त किसी पुरुष अथवा स्त्री को नहीं देखा था। बापू ही सब कुछ था और टापू ही उसकी पूरी दुनिया। इससे अधिक वह कुछ न जानती थी।

प्रास्परो का अधिकतर वक्त इसी बालिका के साथ हंसते-खेलते और गाते-गुनगुनाते हुए बीत जाता था। शेष समय वह काफी बड़ी-बड़ी पुरानी पोथियों पर झुका कुछ पढ़ता रहता था, शायद जादू की बातें। कभी-कभी पढ़ते-पढ़ते वह एकदम उठ खड़ा होता तथा आंखों का काला गोल चश्मा ऊपर चढ़ाकर खाली आकाश में किसी से घंटों बातें ही करता रहता था। जी आता तो पास पड़ी काली-सी एक छड़ी को जोर-जोर से अपने सिर के बालों पर रगड़ना शुरू कर देता। इससे एकदम वायु में उथल-पुथल मच जाती, तूफान गरजने लगते और समुद्र की लहरें उमड़ती हुई उसके पैरों को छू जाती थीं।

उसके एक ही इशारे पर बिजलियां कड़कने लगतीं तथा पृथ्वी मलेरिया के बीमार की भांति थर-थर कांपने लगती थी। क्या आंधी, क्या तूफान, क्या शेर, क्या इंसान, सब उसकी उंगली के संकेत पर नाचते थे। यहां तक कि लोक-परलोक की आत्माएं भी उसके वश में थीं। आवश्यकता पड़ने पर वह मुंह से एक अजीब-सी सीटी बजाता तो अन्य शक्लें दाएं-बाएं से प्रकट हो जाती और प्रास्परो के समक्ष हाथ बांधे उसकी आज्ञा की प्रतीक्षा में खड़ी रहतीं और फिर उसकी इजाजत पाते ही न जाने क्षण-भर में कहां गायब हो जातीं। इन्हें वह अपने प्रेतों की सेना कहकर पुकारता था। उसके सबसे प्रिय और लाड़ले प्रेत का नाम एरियल था। दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं था, एरियल न कर सकता हो इसलिए प्रास्परो के सभी कार्य वही कर दिया करता था तथा प्रास्परो सब ओर से निश्चित होकर पोथियों में मग्न रहता था।

एक दिन प्रास्परो अपनी गुफा के समक्ष हरी घास पर गहरी नींद में सोया हुआ था और पास बैठी मिरांडा फूलों पर मंडराती हुई रंग-बिरंगी तितलियों को पकड़ने कीकोशिश कर रही थी कि प्रास्परो हड़बड़ाकर उठ बैठा। शायद उसने कोई डरावना स्वप्न देखा था। 'बदला लो-बदला लो" कहता हुआ वह तनकर बैठ गया तथा दूर समुद्र की ओर अपनी लाल लाल आंखें गाड़कर गुस्से से देखने लगा। आज उसे यह भी ध्यान न रहा कि मिरांडा भी पास में बैठी है। नहीं तो उसके डर जाने के डर से मिरांडा के रहते हुए वह कोई भी जादूगरी का काम नहीं करता था। उसके घूरते ही समुद्र की शांति भंग हो गई और उसकी लहरों पर एक भयानक तूफान उठता हुआ दिखाई दिया। तूफान के बीचोंबीच एक चमकीला जहाज लहरों के थपेड़ों से डगमगाता हुआ इसी टापू की तरफ बढ़ने लगा। प्रास्परो की आंखें उसी जहाज पर गड़ी थीं और खुद उसका शरीर कांप रहा था मानो आज तक उसने जादू के जितने मंत्र सिद्ध किए हैं, उन सबका जोर लगा देना चाहता हो। तूफान का वेग पल-पल बढ़ता ही गया और वह चमकीला जहाज उसी में कहीं गुम हो गया।

यह देखकर प्रास्परो ने चैन की एक सांस ली। मानो बरसों की कोई खोई हुई चीज उसे मिल गई हो। वह लहरों को पुचकारते हुए खुद गुनगुनाने लगा-

'सागर की ओर लहर,
अब ठहर-ठहर कर लहराना।
तूफानों के क्रूर उफानो,
इसे बचाना, इसे बचाना।
दूढ़ता,
बैठा इस निर्जन वन में,
वही खड़ा है आज सामने...।'

आखिरी पंक्ति समाप्त करते ही उसे किसी के कोमल स्पर्श का अनुभव हुआ। उसने पलटकर देखा तो उसकी लाड़ली मिरांडा डर से थर-थर कांपती हुई उसकी गोद में छिपने का यत्ल कर रही थी। प्रास्परो पुचकाकर बोला- "बिटिया!"
मिरांडा धीमे लहजे में बोली- "बापू! तुम यह क्या गा रहे हो?" 
प्रास्परो ने उसे गोद में बैठाते हुए कहा- "लहरों का गाना।"
मिरांडा-"बापू! तुम ऐसा गाना क्यों गा रहे हो?"
इसके उत्तर में प्रास्परो ने समुद्र की तरफ उंगली उठाकर कहा- "उधर देखो बिटिया ! मेरी उंगली की सीध में तूफानों के मध्य क्या तुम्हें कोई चमकती हुई चीज दिखाई देती है?"
 मिरांडा-''हां बापू! वह चांदी-सी चमकीली-सी कोई वस्तु लहरों में कभी डूबती और कभी उभरती हुई मुझे साफ दिखाई दे रही है।"
 प्रास्परो-"इसे जहाज कहते हैं। इसमें हमारे-तुम्हारे जैसे अन्य व्यक्ति सवार हैं। मैंने अपने जादू के प्रभाव से इन्हें दूर से ही देख लिया था। इन्हें इस टापू की तरफ लाने के लिए ही मैंने यह तूफान उठाया है।
मिरांडा- "ईश्वर के लिए बापू! इन तूफानों को बंद करो। वह देखो, जहाज 
कितनी बुरी तरह से डगमगा रहा है और वे व्यक्ति जोर-जोर सेचाख-पुकार कर रहे उन पर रहम नहीं आता ?
प्रास्परो -"बिटिया अगर तुम जानती होती किवेलोग कौन हैं तो कभी तुम मुझे उन पर रहम करने के लिए न कहतीं।
मिरांडा--"तो ये लोग कौन हैं? क्या तुम इन्हें पहले से जानते हो बापू?   
प्रास्परी-"बेटी मन आज तक इन लोगों की कहानी तुझसे छिपाकर रखी,मगर आजमैं तुझसे न छिपाऊंगा। तुझे दिखाने के लिए ही इन्हें तरे पास खींचकर ला रहा हूं।
सुन - 
     "यहां से सात समुंदर पार 'मिलन' नाम का एक काफी सुंदर टापू है। किसी वक्त मैं वहां का राजा और तृ वहां की राजकुमारी कहलाती थी। जिन दिनों की यह बात है तव तो तू बारह-चौदह महीने की नन्ही-सी बालिका थी और नौकर-नौकरानियां तुझे हर वक्त फूलों की तरह संभालकर पालते-पोसते थे। अभी तू सिर्फ तीन महीने की थी कितरी माता तुझे छोड़कर इस दुनिया से चल बसी। उसकी एकमात्र निशानी समझकर मैं अधिकतर वक्त तेरे ही पालन-पोषण में विताया करता था। मुझे शुरू से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था, इसलिए तेरी देखभाल से जो समय वचता, उसे मैं इन्हीं पुरानी पोथियों के पढ़ने में बिता देता, जिन्हें तुम आज भी मेरी अलमारी में पड़ी हुई देखती हो। ये काले जादू की पोथियां मुझे इतनी प्यारी थीं कि इनके पीछे मैं राज- कान के कामों की तरफ जरा भी ध्यान न दे सकता था। मेरा एक छोटा भाई भी था, जिसका नाम था एंटोनियो। उस पर मुझे पूरा यकीन था और वही राज्य के सारे कार्यों की देखभाल किया करता था। धीर-धीर उसके दिल में लोभ उत्पन्न हो गया और वह मुझे हटाकर खुद राजा बनने की इच्छा करने लगा।

एक बार उसने समुद्र की सैर का बहाना बनाया तथा मुझे और तुझे लेकर एक जहाज पर सवार हो गया। जहाज के मल्लाहों को उसने पहले ही सिखा दिया था इसलिए जैसे ही हमारा जहाज किनारे से दूर एक गहरे स्थान पर पहुंचा, वैसे ही मल्लाहों ने मुझे तथा तुझे जहाज से धकेलकर एक छोटी-सी डोंगी में बैठने को मजबूर किया और अपने आप जहाज लेकर उस टापूकी ओर लौट गए। एंटोनियो का ख्याल था कि हम दोनों की लहरों में डूब जाएंगे या भूख-प्यास से तड़पकर प्राण दे देंगे, मगर भगवान को ऐसा मंजूर न था। 

जहाज के मल्लाहों में से एक मल्लाह मुझे अपनी जान से भी अधिक प्यार करता था और किसी तरह एक दिन पहले ही उसे एंटोनियो के इस बुरे ख्याल का पता चल वहीं गया था इसलिए उसने मेरी डोंगी में पहले से ही खाने-पीने की इतनी सामग्री छिपाकर रख दी कि हमें पूरे महीने तक पर्याप्त हो सके। साथ ही वह उन जादू की पोथियों को भी डोंगी में रखना न भूला, जो मुझे प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थीं। भगवान उस मल्लाह का भला करे। उसकी मेहरवानी से हम समुद्र में भूखों मरने से बच गए। जहाजको आंखों से ओझल होता देखकर मुझे अपनी इतनी फिक्र न थी, जितनी कि तेरी। मैंने तुझे अपनी छाती से बांध लिया तथा दोनों हाथों का पूरा बल लगाकर उस डॉगी को खेने लगा।न तो मैं दिन को आराम करता और न ही रात को,न में नींद की परवाह करता, सही-सलामत किनारे तक पहुंचा सकू। आखिर एक दिन, जबकि मैं थककर चकनाचूर मुझे सामने हो चुका था और मुझे अपने बचने की कोई उम्मीद न रही थी, तभी हरे-हरे पेड़-पौधे तथा फूस की छत वाली एक झोंपड़ी दिखाई दी। उसे देखकर मेरी थकी बांहों में भी बल आ गया और मैंने डोंगी को खेने में सारे जिस्म का जोर लगा दिया। शाम होते-होते हमारी डोंगी एक किनारे पर लगी। वह इसी टापू का किनारा था, जिसमें कि हम आज भी रह रहे हैं। 

अस्तु, हमारी डोंगी किनारे पर तो लग गई, लेकिन मेरी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। ज्यों ही मैंने तुझे गोद में लिए हुए किनारे पर पैर रखा, त्यों ही एक बुढ़िया उस फूस के झोंपड़े से बाहर निकली तथा किनारे पर हम दोनों को खड़े देखकर बहुत प्रसन्न हुई। वह हमें अपनी झोंपड़ी में ले गई और हंस-हंसकर बड़ी फुसलाने वाली बातें करने लगी। पहले तो मैं उसके अभिप्राय को बिल्कुल न समझा, मगर जब रात हुई और वृद्धा रोटी के बहाने बाहर निकली तो उसकी पीठ के पीछे एक छोटा-सा कूबड़ दिखाई दिया था। यह वैसा ही कूबड़ था, जैसा कि मैंने जादू की पोथियों में पढ़ रखा था कि जादूगरनियों की पीठ पर होता है। साथ ही उस जादूगरनी के निकलते ही झोंपड़ी के आसपास के वृक्षों में से मुझे चीखने-पुकारने की अन्य आवाजें सुनाई देने लगीं।

 मैं डरता हुआ पेड़ों के पास पहुंचा। पूरे ध्यान से देखने पर भी मुझे पेड़ों पर एक भी व्यक्ति दिखाई न दिया किंतु पेड़ों की डाली-डाली और पात-पात से बचाओ-बचाओ, हाय मरा-हाय मरा' की चीखें सुनाई दे रही थीं। अब कुछ-कुछ बात मेरे दिमाग में आई। मैं थोड़ा-बहुत जादू तो जानता था ही। मैंने एक पेड़ की जड़ को हाथ में लेकर पूछा- 'सत्य बताओ! तुम कौन हो, यह वृद्धा कौन है और तुम इस प्रकार क्यों चिल्ला रहे हो?

   वृक्ष में से आवाज आई—'मुसाफिर! कभी हम भी तेरे जैसे जीते-जागते और आजाद व्यक्ति थे और तेरी तरह ही समुद्र में भटकते हुए इस टापू के किनारे पर आकर लगे थे। यह जो वृद्धा है, जिसे शायद तुम बड़ी भगतिन समझते होंगे, वास्तव में महाठगनी तथा बड़ी जादूगरनी है। इसने पहले-पहल तो हमारे साथ बड़ी फुसलाने वाली बातें कीं, मगर शीघ्र ही पता चला कि यह हमें अपना दास बनाना चाह रही है। इसने हमसे मांस भूनने, हुक्का भरने तथा सिर मलने जैसे ओछे काम कराने शुरू किए। मैंने इसका कहना मानने से साफ इनकार कर दिया। क्रोध में आकर इस बुढ़िया ने हममें से एक-एक की आत्मा को जिस्म से निकालकर उसे एक-एक वृक्ष पर पटक दिया और कहा- 'अब पूरा जीवन यही लटके रहो और अपनी-अपनी करनी का फल भोगो। बस! ऐ मुसाफिर! उस दिन से लेकर हमारी आत्माएं इन वृक्षों से बंधी उलटी लटक रही हैं। दिन में सूरज निकलने से हमें कुछ शांति मिलती है, मगर अंधेरा होते ही इस जादूगर की माया हमारे अंग-अंग को जलाने-सी लगती है। हमारे जिस्म कब से गल-सड़कर मिट्टी के ढेर बन चुके हैं, मगर हमारी आत्माएं आज भी नरक की आग में जल रही हैं। ऐ मुसाफिर ! अभी वक्त है। यदि तू इस वृद्धा के हाथों से बचकर कही भाग सके तो भाग जा, नहीं तो कल तेरी भी वही हालत होगी, जो हमारी है।

    यह कहकर वह फिर बहुत जोर-जोर से चिल्लाने लगा, मानो कोई काट खा रहा हो। उसकी यह करुण चीख-चिल्लाहट सुनकर मैंने फैसला कर लिया कि उन्हें इस प्रकार दुखी छोड़कर मैं वहां से भागने की कोशिश नहीं करूंगा। या तो अपने जादू के प्रभाव से इन आत्माओं को भी वृद्धा के बंधन से छुटकारा दिलाऊंगा अथवा जीता-जागता समुद्र में कूदकर प्राण दे दूंगा। बस बेटी ! उस समय मुझे अपनी बिल्कुल चिंता न थी। मुझे कोई फिक्र थी तो केवल तेरी। कुछ तेरे प्यार और कुछ उन आत्माओं की चीख-पुकार की वजह से मैंने बुढ़िया का दास बनना स्वीकार कर लिया। वह मुझे घृणित से घृणित, जो भी कार्य कहती, मैं उसे करने से कभी इनकार नहीं करता और छिपे-छिपे उस बुढ़िया का जादू जानने और अपने में जादू की ताकत बढ़ाने की कोशिश किया करता था। 

    आखिर जब मैंने अपने आपको पूरा समर्थ पाया तो वृद्धा को जादू-युद्ध के लिए ललकारा। काफी दिनों तक हमारा युद्ध चलता रहा। हमारी कई झड़पें हुईं, कई टक्करें हुईं, मगर अंत में मेरे जादू ने वृद्धा को पछाड़ दिया और उसे मारकर मैंने पेड़ों पर लटकी सब आत्माओं को भी आजाद कर दिया। इस उपकार के बदले आज भी वे आत्माएं मेरे उस वक्त को नहीं भूल पातीं और हर वक्त मेरे हुक्म की प्रतीक्षा में रहती हैं। ये तूफान, ये आंधियां तथा चमचमाते जहाज की डगमगाहट सब उन्हीं आत्माओं के कारनामे हैं। आज मैंने उन्हें तेरे लिए बहुत सुंदर खिलौना लाने के लिए कहा है। शायद वे लाते होंगे। बस बेटी तेरे बूढ़े बाप की यही कहानी है।

    यह कहानी सुनकर मिरांडा कोई बात पूछने के लिए अभी मुंह ही खोल रही थी कि आसमान की ओर से किसी ने पुकारा- "मालिक!" प्रास्परो को पहचानते देर न लगी। यह उनका प्रिय प्रेत एरियल ही है। कहीं उसे खाली आकाश में किसी अदृश्य वस्तु से बात करते देखकर भोली मिरांडा डर न जाए, यह सोचकर प्रास्परो ने पास ही पड़ी छड़ी से धीरे-से मिरांडा को छुआ, जिससे वह तत्काल गहरी नींद में सो गई। प्रास्परो ने आसमान की ओर देखा और कहा- "आ गए एरियल! सुनाओ, उस जहाज तथा उसके संचालकों का क्या बना?

   एरियल- "मालिक ! आपके कहे अनुसार मैंने किसी का बाल भी बांका नहीं होने दिया तथा वे सब सही-सलामत इस टापू के तट पर पहुंच गए हैं। मालिक ! जैसे बिल्ली चूहे को तथा बंदर सांप को जी-भर छकाता है, उसी तरह आज मैंने आपके इन भाई-बंधुओं को दिल भरके छकाया है। मैंने अंधड़ उठाकर, तूफान उठाकर, जहाज को लहरों पर ऐसे उछाला जैसे कि बल्ले पर गेंद उछला करती है। बेचारे मल्लाहों का  हृदय तो धक धक करता होगा, जिसे आप अपना भाई बताते थे तथा जिसकी बहादुरी की आप इतनी तारीफ करते थे, वह तो औरतों से भी बदतर निकलातूफान की पहली गरज से ही उसने जीने की उम्मीद छोड़ दी और मुझे बचाओ-मुझे बचाओ...' कहकर मल्लाहों के पैरों में पड़ने लगा। उसके गिड़गिड़ाने की यह सूरत मुझे इतनी पसंद आई " कि उसकी एक फोटो भी खींचकर आपको दिखाने के लिए लाया हूं। बाप जितना कायर है, उसका पुत्र फर्डिनेंड उतना ही बहादुर निकला।सबको डरते-कांपते देखा वह अकेला ही एक डोंगी में कूद गया और लहरों को चीरता हुआ किनारे की तरफ बढ़ने लगा। आपकी हिदायत के अनुसार मैंने राजकुमार फर्डिनेंड की रक्षा का खास ध्यान रखा। वह सकुशल किनारे पर पहुंच चुका है। मैंने अपने आपको हाजिर किए बिना ही उसके समक्ष ऐसा संगीत छेड़ दिया, जैसा कि कोई स्वर सुंदरी भी नहीं गा सकती हो। मेरे संगीत पर लटू होकर वह किसी सुंदरी का मधुर सपना देखता हुआ इधर ही आ रहा है। उधर एंटोनियो तथा शेष जहाजियों को मैंने जहाज से कूदकर अलग-अलग डोंगियों में बैठने के लिए मजबूर किया और उन्हें रोते-डुबोते हुए मैं इस तरीके से किनारे पर ले आया कि उनमें से हर आदमी यही सोचता रहा कि अपने सब साथियों में से वही अकेला बच रहा है। एक-दूसरे की खोज में भटकते हुए वे भी अलग-अलग जगहों से इधर ही आ रहे हैं।

  प्रास्परो- "शाबाश! मेरे वीर प्रेत, शाबाश ! तुम्हारी इस होशियारी के प्रति मैं आज ही तुम्हें अपनी सेवा से मुक्त कर दूंगा और तुम आजाद होकर अपने बिछुड़े संबंधियों में रह सकोगे। अभी जाओ, जिस तरीके से तुम्हें उन जहाजियों को खदेड़ने का कार्य सौंपा है, उसी ढंग से उन्हें खदेड़ आओ, मगर इस बात का ध्यान रखो कि उनमें से कोई भी निराश होकर आत्महत्या न करने पाए। विशेषकर एंटोनियो के प्राणों की हिफाजत तो करनी ही होगी।

    यह सुनकर एरियल जिस ओर से आया था, उधर ही चला गया। उसके मधुर संगीत के असर से राजकुमार फर्डिनेंड समुद्र की दुर्घटना तथा अपने साथियों के वियोग को बिल्कुल भूल चुका था और जिस तरफ से संगीत सुनाई दे रहा था, उसी तरफ चलता हुआ वह उस स्थान पर जा पहुंचा, जहां प्रास्परो और मिरांडा एक पेड़ की छाया में हरी घास पर बैठे थे। आज तक मिरांडा ने अपने दड़ियल बूढ़े पिता के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति को न देखा था इसलिए इस सुंदर राजकुमार को सामने से आते हुए देखकर वह बहुत खुश हुई और यह न समझ सकी कि उसका मन उसकी ओर क्यों खिंचा जा रहा हैं ?

  उधर इस बियाबान जंगल में मिरांडा जैसी सुंदरी को वृक्ष की छाया में बैठे देखकर फर्डिनेंड ने समझा कि शायद वह किसी दिव्य लोक में पहुंच गया है अथवा कोई स्वर्ग की अप्सरा ही देवलोक से उतरकर भूमि पर आ गई है। आंखों ही आंखों में उन दोनों को एक-दूसरे की तरफ इस तरह आकर्षित होते देखकर प्रास्परो का मनोरथ पूरा हुआ तथा वह जान-बूझकर कुछ पलों के लिए अदृश्य होकर छिपे-छिपे देखने लगा कि वे  एक-दूसरे को कितना चाहते हैं। समुद्र की दुर्घटना की वजह से फर्डिनेंड का चेहरा कुछ गया था, लेकिन उसकी सुंदरता अच्छी थी। उसे देखकर खुद प्रास्यरो रीझ गया और उसने मन ही मन कहा- 'मेरी बेटी ऐसे ही राजकुमार के योग्य है और सौभाग्य से पहली नजर में ही दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे हैं, मगर पहले मैं इनके प्यार की परीक्षा लूंगा।

   अभी तक प्रास्परो अदृश्य रूप धारण किए उन दोनों की बातें सुन रहा था। अब वह सहसा उनके सामने हाजिर होकर बोला-"ओ बदतमीज व्यक्ति! सच बता,तृ कौन है? कहां से आया है और किसकी इजाजत से तूने इस टापू में प्रवेश किया है? लगता है कितूकिसी का जासूस है और मेरा भेद लेने के लिए चुपके-चुपके मेरे राज्य में घुस आया और अपने किए का फल तुझे अभी मिल जाएगा। देख! कान खोलकर सुन ले, आज सेतूही मेरा दास है। तुझे सुबह और शाम चावलों के छिलकों की रोटी तथा मरी हुई चिड़ियों का कच्चा मांस खाना होगा और सारा दिन कुल्हाड़े से काट-काटकर इस कुटिया के चारों ओर का जंगल साफ करना होगा। अगर काम में मैंने तनिक भी ढील पाई तो तेरे लिए मुझसे बुरा कोई न होगा। यह ले कुल्हाड़ा और अभी इसी पल से पेड़ काटना आरंभ कर दे।

    यह सुनकर मारे गुस्से के फर्डिनेंड की आंखों से चिंगारियां निकलने लगीं। उसने अकड़ते हुए कहा-"अरे बुड्ढे ! शायद तुम्हें यह मालमू नहीं कि मैं महाराज एंटोनियो का राजकुमार तथा एक विशाल राज्य का एकमात्र उत्तराधिकारी हूं। जो शासन करने के लिए उत्पन्न हुए हैं, वे कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं किया करते।

प्रास्परो बोला- "कल के छोकरे ! तेरी ये मजाल! मैं तुझे तेरी उदंडता का अभी मजा चखाता हूं।
फर्डिनेंड-"और मैं कब तुमसे रहम दिखाने की प्रार्थना करता हूं। मेरे हाथ में तलवार रहते हुए तुम तो क्या, खुद यमराज भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
 यह कहते हुए फर्डिनेंड ने म्यान से तलवार खींच ली, मगर यह क्या, उसकी तलवार तथा उसकी मूठ में पड़ा हुआ हाथ, दोनों जहां उठे थे, वहीं के वहीं जड़ हो गए। एड़ी-चोटी की सारी ताकत लगाकर भी फर्डिनेंड उसे न हिला सका और पत्थर की मूर्ति की भांति निस्तब्ध खड़ा रहा।
    प्रास्परो- अब कहां गई वह शक्ति? देखा इस छड़ी का कमाल। तुम्हारी राजकुमारिता तथा वह तुम्हारी उत्तराधिकारिता कहां गई? इस छड़ी के एक कंपन से ही तुम्हारी सारी बहादुरी कहां गई? बोलो, अब भी तुम्हें मेरी दासता स्वीकार है अथवा नहीं?
   राजकुमार ने सिर्फ सिर हिलाकर अपनी अनुमति का संकेत दिया। प्रास्परो ने उसके हाथ में कुल्हाड़ा देते हुए आदेशात्मक लहजे में कहा-"यह लो कुल्हाड़ा और अब मैं जाता हूं। शाम को फिर इसी स्थान पर तुम्हें मिलूंगा। तब तक आसपास झाड़-झंखाड़ कटकर साफ होना चाहिए।

  पिता को जाते देखकर मिरांडा ने मिन्नत के लहजे से कहा- "बापू! यह सुंदर राजकुमार इस कार्य को कैसे कर सकेगा? इसके शरीर के अंग कुल्हाड़े की चोट को कैसे सह सकेंगे? बापू! आप इतने कठोर मत बनिए। इसे क्षमा कीजिए, मेरे लिए माफ कर दीजिए। 
    प्रास्परो तर्जनी उंगली दिखाकर बोला- "चुप! ढीठ लड़की ! तुझे इसका वकील किसने बनाया है? यह न समझ कि संसार में यही एक राजकुमार नहीं रह गया है। इससे भी सुंदर और इससे भी बांके अनेक राजकुमार संसार में हैं। मैं आज्ञा देता हूं कि इससे दिन- भर लकड़ियां काटने का काम लो और अगर यह तनिक भी ढील करे तो मुझे बताना। 
  
   यह बनावटी गुस्सा दिखाकर प्रास्परो बड़बड़ाता हुआ प्रकट रूप में वहां से चला गया, मगर वास्तव में अदृश्य होकर उन दोनों की बातें सुनने लगा।उनकी जो बातें उसने सुनी, उनसे उसे यकीन हो गया कि वे एक-दूसरे के सच्चे जीवनसाथी बनकर रह सकेंगे।

    फर्डिनेंड बोला- "मैं तुम्हें अपने दिल की रानी बनाकर रखूगा तथा अपने राज्य की मलिका
   मिरांडा कह रही थी—"मैं तुम्हें ही अपना राजा मानकर जिऊंगी तथा अपने प्राणों का स्वामी।
 
अब प्रास्परो अपने आपको रोक नहीं सका।वह प्रकट होकर बोला- "और मैं तुम्हारे इस प्रेम संबंध को पूर्ण करने के लिए मन से आशीर्वाद दूंगा।

    इसी वक्त प्रास्परो के कहे अनुसार एरियल भी एंटोनियो और उसके कई साथियों को लेकर वहां आ पहुंचा। एंटोनियो अब तक अपने लड़के को मरा हुआ समझ रहा था। अब अचानक उसे जिंदा देखकर तथा उसके पास एक सोलह साल की किशोरी को देखकर उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। बगल में ही बूढ़े प्रास्परो को देखकर उसने जाना कि यह कोई जादूगर है और वह लोग किसी जादूनगरी में पहुंच गए हैं।
 
    उसे अचरज में पड़ा देखकर प्रास्परो आगे बढ़कर बोला-"एंटोनियो ! इधर आओ! इस शुभ अवसर पर मेरे गले मिलो। हम दोनों अपनी कमजोरियों की वजह से एक-दूसरे से अलग हो गए थे, मगर हमारी संतानों ने आज हमें फिर मिला दिया। अब तुम ज्यादा हैरान मत हो। मैं वही तुम्हारा बिछुड़ा भाई प्रास्परो हूं।आओ, पहले गले मिलो तथा इस नए युगल को आशीर्वाद दो, फिर मैं तुम्हें आदि से लेकर अंत तक सुनाऊंगा कि मैं यहां कैसे पहुंचा, किस तरह यहां इतने दिनों से रह रहा हूं और किस तरह मैंने इस नए वर-वधू के मिलन का यह इंतजाम किया।
  
   बस, फिर क्या था। दोनों भाई एक-दूसरे से लिपट-लिपटकर गले मिले।वृक्षों की डाली-डाली नाचने लगी और पात-पात से मधुर संगीत सुनाई देने लगा। प्रास्परो की प्रेत सेना आसमान से फूलों की वर्षा करने लगी। ऐसे ही मधुर वक्त में मिरांडा का विवाह फर्डिनेंड के साथ हो गया और दोनों भाई अपने साथियों सहित राजधानी लौट गए। कहते हैं फर्डिनेंड तथा मिरांडा ने चिरकाल तक वहां राज किया तथा प्रास्परो तथा एंटोनियो ने अपनी शेष आयु साधु-महात्माओं की तरह और प्रजा की खिदमत में बिताई।

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