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 shakespeare story in hindi - the comedy of errors

shakespeare story in hindi - the comedy of errors


नमस्कार दोस्तो आज की कहानी महान लेखक विलियम शेक्सपीयर की रचना भूल-चूक माफ (the comedy of errors)  है । 


अगर आपने इससे पहले की कहानी नहीं पड़े है तो जरूर पड़े -
विलियम शेक्सपीयर की रचना -  राजा लियर(king lear) हिंंन्दी मै । 

तो कहानी को शुरू करते है ।


 प्राचीन काल में साइरेकस तथा एफेसस नाम के दो पड़ोसी देश थे। किसी वजह से वहां के लोगों में परस्पर गहरी 

शत्रुता थी। 


अगर साइरेकस का कोई नागरिक एफेसस की सीमा में घूमता हुआ देख लिया जाता तो इस अपराध के लिए उसे

 एक हजार रुपए जुर्माना देना पड़ता और अगर वह न दे सकता तो उसे मौत के मुंह में उतार दिया जाता।

एक समय की बात है, साइरेकस का एजियन नामक एक सौदागर एफेसस में टहलता हुआ पकड़ लिया गया। 

जुर्माना देने को उसके पास एक पैसा भी न था। अतः उसे राजा के सामने उपस्थित किया गया। राजा ने उसे

संबोधित करके कहा-"ओ परदेसी! हमारे देश के नियम के मुताबिक अब तू मृत्युदंड का भागी है, मगर तुझे यह

दंड देने से पहले मैं तेरी राम कहानी सुनना चाहता हूं।"

एजियन एक लंबी सांस भरकर बोला- "मुझ दुखिया की कथा सुनकर आपको क्या मिलेगा महाराज! उल्टा इससे 

मेरे मन का दुख ताजा हो जाएगा इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि मुझे शीघ्र मौत की सजा दी जाए।"

इससे राजा की उत्सुकता और बढ़ी और उसने अपनी आप बीती सुनाने का एजियन से बड़ा आग्रह किया। सब 

राजदरबारी भी उसकी कहानी सुनने के लिए कान लगाए बैठे थे।

एजियन ने आंसुओं से भीगी पलकें उठाईं तथा यूं कहना आरंभ किया--"मैं साइरेकस का एक अभागा सौदागर हूं 

तथा मेरा नाम एजियन है। 

पिता की मौत के उपरांत मुझ पर विदेश यात्रा की धुन सवार हुई तथा मैं बहुत-सा माल जहाज में भरकर

अपनी पत्नी के साथ अपिडैमनम नामक एक नगर में जा उतरा। 

वहां मेरा व्यापार इतना चमका कि मैंने मजबूत इरादे से वहीं रहने का फैसला कर लिया।

कुछ समय बाद वहीं मेरे दो जुड़वां पुत्र हुए। रंग-रूप, डील-डौल तथा चाल-ढाल में वे एक-दूसरे से इतना मिलते थे 

कि उनमें भेद करना मुश्किल हो जाता था। 

उन दिनों हमारे पड़ोस में एक गरीब भटियारिन रहती थी। जिस दिन, जिस वक्त और जिस क्षण मेरे पुत्र हुए,

उसी दिन, उसी क्षण भटियारिन के भी दो जुड़वां बेटे उत्पन्न हुए। वे भी शक्ल-सूरत में बिल्कुल एक समान थे। 

भटियारिन इतनी गरीब थी कि वह दो बालकों का पालन-पोषण न कर सकती थी। अत: उसने उन बच्चों का भार 

भी  मुझे अपने ऊपर ले लेने को कहा। पत्नी की सलाह से मैंने उन्हें भी गोद ले लिया तथा अपने पुत्रों के साथ

ही उनका भी पालन-पोषण करने लगा। 

मैंने अपने दोनों बच्चों के एक समान होने के कारण दोनों का एक ही नाम रखा- -एंटिफोलस तथा भटियारिन के 

पुत्रों का भी एक ही नाम रखा-ड्रोमियो।


बाल-बच्चों के साथ मेरे दिन बड़े सुख से व्यतीत हो रहे थे कि एक बार मुझे किसी कार्यवश कुछ दिनों के लिए 

एकदूर के टापू मे जाना पड़ा। अपने चारों बच्चों से मुझे इतना स्नेह था कि एक क्षण के लिए भी मैं उन्हें अपनी आंखों 

से दूर न कर सकता था, इसलिए मैंने उन्हें और अपनी पत्नी को भी साथ ले लिया। 

अभी हमारा जहाज तट से कुछ दूर हो गया होगा कि समुद्र में बहुत जोर का तूफान उठा। मल्लाह अपनी जान

बचाकर छोटी नावों में कूद पड़े तथा जहाज पर हम अकेले रह गए। तूफान के थपेड़ों से जहाज समुद्र में डूबना ही 

चाहता था कि मैंने फुर्ती के साथ जहाज के चार तख्ते तथा उन्हें जोड़-तोड़कर उनकी दो नौकाएं-सी बनाई। 

एक पर मैं खुद बैठ गया और मैंने अपने साथ छोटे एंटिफोलस तथा छोटे ड्रोमियो को बैठा लिया। दूसरी नाव पर 

मेरी पत्नी, बड़ा एंटिफोलस तथा बड़ा ड्रोमियो सवार हुए। 

मैं उन्हें साहस करके नाव खेने को कहा। कुछ देर तक दोनों नावें साथ-साथ रहीं, मगर शीघ्र ही लहरों के कारण 

हम एक-दूसरे से अलग हो गए। जब मैंने अंतिम बार अपनी पत्नी की नाव की ओर देखा तो कुछ मल्लाह उन्हें 

पकड़कर अपनी नाव में बैठा रहे थे। 

यह देखकर मैंने चैन की सांस ली और अपनी नाव को किनारे लगाने का कोई उपाय सोचने लगा। संयोगवश

उधर से एक जहाज आता हुआ दिखाई पड़ा, जिसके कप्तान ने मुझे तथा मेरे दोनों लड़कों को अपने जहाज पर 

बैठा लिया। बातों ही बातों में उससे मेरा पुराना परिचय निकल आया और उसने हमें बहुत आराम से किनारे पर 

पहुंचा दिया। 

उस दिन से लेकर आज तक पूरे बीस बरस बीत चुके हैं, मगर पत्नी और पुत्रों का मुझे कुछ पता नहीं चल सका।

खैर, मैंने उन्हें भुला देने का यत्न किया तथा अपने साथ के दोनों बालकों के पालन-पोषण में लग गया था। जब छोटा 

एंटिफोलस कुछ स्याना हुआ तो वह अपनी मां के विषय में बार-बार मुझसे पूछता था। 

उसकी बात सुनकर समुद्र की दुर्घटना का सारा नजारा मेरी आंखों के सामने घूम जाता। मैंने सिसकते हुए वह 

सारी घटना छोटे एंटिफोलस को सुना दी। एंटिफोलस उसी क्षण से अपनी मां और बड़े भाई को खोज

निकालने की चिंता में रहने लगा। 

अंत में एक दिन उसने बड़ी हठ की तथा अपने साथी छोटे ड्रोमियो को लेकर घर से निकल पड़ा। मैं उसे पलभर 

भी अपने से अलग नहीं करना चाहता था, मगर न जाने उस दिन क्यों मैं उसे रोकने का साहस न कर सका। मूल

के लालच में मैंने ब्याज को ही गंवा दिया। उसे गए भी आज पूरे आठ बरस बीत चुके हैं, मगर अब तक वह भी 

लौटकर नहीं आया। बालकों के बिना घर में मुझे भूतों का डेरा लगने लगा। उनकी खोज में में निकल पड़ा तथा देश-

देशांतर घूमते हुए आज आपकी नगरी में पहुंचा ही था कि आपके सिपाहियों ने मुझे पकड़ लिया। बस महाराज!

यही मेरी जिंदगी की कहानी है।"

यह करुणा भरी कहानी सुनकर राजा का मन भी पिघल गया और उसने एजियन को जुर्माने का रुपया चुकाने की 

एक दिन की और अवधि दी। 

यह अवधि पाकर एजियन तनिक भी खुश न हुआ क्योंकि उस अनजाने देश में  जानने वाला कौन था और जानने 

वाला होता भी तो क्या! अब उसके दिल में जीने की इच्छा ही शेषन रह गई थी। 

उसने सोचा-'चलो आखिरी बार अपने पुत्रों की तलाश कर देखू' यह सोचकर वह बाजार की तरफ चल पड़ा।

उधर मल्लाहों ने एजियन के दोनों लड़कों को लाकर एफेसस के एक रईस के हाथ बेच दिया। अमीर ने उन्हें 

होनहार देखकर पढ़ाया-लिखाया तथा सेना में एक ऊंचे पद पर नियुक्त करवा दिया। 

तब से बड़ा एंटिफोलस तथा छोटा ड्रोमियो उसी नगरी में रहते , एंटिफोलस ने वहीं की एक कुलीन लड़की से 

विवाह भी कर लिया था तथा वह वहां बड़े आनंद से जीवन बिताता था। अपने पिता और दूसरे भाई से बिछुड़े उसे 

एक जमाना बीत चुका था। अत: वह तो उन्हें बिल्कुल भूल चुका था।

संयोगवश जिस दिन एजियन उस शहर में पहुंचा, उसी दिन छोटा एंटिफोलस भी अपने साथी ड्रोमियो सहित उसी 

नगरी के बंदरगाह पर उतरा। शहर में प्रवेश करते ही उसने सुना कि साइरेकस का एक सौदागर आज इस शहर 

में प्रवेश करने के अपराध में पकड़ा गया है तथा मृत्युदंड दिया जाने वाला है। उसे सपने में भी यह विचार न आया

कि साइरेकस का वह अभागा सौदागर उसी का बिछुड़ा हुआ पिता है। 

जहाज से उतरकर वह सीधा एक सराय में गया तथा वहां एक कमरा किराए पर लेकर ठहरा।

सराय के मालिक के पूछने पर उसने अपने आपको एफेसिस का ही नागरिक बताया था। उसने अपने साथी छोटे 

ड्रोमियो को बाजार से कुछ आवश्यक चीजें खरीदने के भेज दिया और खुद इस नई नगरी का परिचय पाने के लिए 

सराय के सामने टहलने लगा। 

उसे यह देखकर बड़ा क्रोध आया कि जाने के दो पल बाद ही ड्रोमियो लौट आया और जरूरी वस्तुओं में से एक भी 

खरीदकर न लाया। 

छोटा एंटिफोलस उसे डांटना ही चाहता था कि ड्रोमियो ने बड़ी नम्रता से कहा- "कप्तान साहब! चलिए आपकी 

पत्नी  आपको भोजन के लिए बुला रही हैं।"

मुसाफिर एंटिफोलस ने चकित होकर कहा- "ड्रोमियो ! तुम्हारा दिमाग तो नहीं " फिर गया कहीं? क्या यह हंसी-

मजाक करने का वक्त है?'

ड्रोमियो-"मजाक नहीं कर रहा हूं मैं आपसे। घर में भोजन तैयार है तथा आपकी पत्नी आपको याद कर रही है।"

मुसाफिर एंटिफोलस ने चिढ़कर कहा- "जाओ-जाओ! मेरी पली-वत्नी कोई नहीं। जो कार्य तुमसे कहा है, वह करो।"

सच में यह मुसाफिर ड्रोमियो नहीं था, जिस छोटे मुसाफिर एंटिफोलस ने चीजें खरीदने बाजार भेजा था,वह बड़ा 

ड्रोमियो था तथा कप्तानएंटिफोलस को ढूंढते-ढूंढ़ते वहां आ पहुंचा था। शक्ल तो दोनों की एक जैसी ही थी, इसलिए 

बड़े ड्रोमियों ने उसे ही कप्तान एंटिफोलस समझा तथा बाजार से वस्तुएं न लाने और पत्नी बुला रही है,

पत्नी बुला रही है' कहकर चिढ़ाने के लिए खूब डांटा।

बड़े ड्रोमियो की समझ में यह बात बिल्कुल न आई थी। उसने समझा कि कप्तान साहब शायद अपने घर से 

लड़कर आए हैं, इसलिए बार-बार घर चलने के लिए उनसे प्रार्थना करने लगा। मुसाफिर एंटिफोलस यह सुनकर 

बड़ा चिल्लाया तथा यह कहकर बड़े ड्रोमियो के साथ चल दिया- "पत्नी-पत्नी की रट लगाकर कान खा गया। चल!

पहले तेरे साथ चलकर वहीं देखता हूं कि किसे तू मेरी पत्नी बनाए बैठा है?"

यह कहकर वह बड़े ड्रोमियो के साथ चल दिया। भीड़-भाड़ में बड़े ड्रोमियो का तो कहीं साथ छूट गया तथा उसे 

अपना साथी मुसाफिर ड्रोमियो सामने से आते हुए दिख पड़ा। वह उसी को बड़ा ड्रोमियो समझकर बोला- "मुझे 

छोड़कर भीड़ में कहां चला गया था तू?"

मुसाफिर ड्रोमियो बोला- -"मैं भला आपको भीड़ में कहां छोड़ आया हूं? मैं तो आपको सराय में छोड़कर अपने 

लिए  सामान खरीदने बाजार आया हूं।"

इतना सुनकर एंटिफोलस के गुस्से का ठिकाना न रहा। वह बोला- "इस प्रकार का मजाक करने की समझ आज 

तुम्हें किसने दी? सराय से तो तुम मुझे यही कहकर साथ लाए कि तुम्हारी पत्नी बुला रही है तथा अब इतनी जल्दी 

बदल गए।"

इधर बाजार में ये दोनों एक-दूसरे से उलझ रहे थे तथा उधर जब कप्तान एंटिफोलस की पत्नी ने देखा कि बड़ा 

ड्रोमियो लौटा है और बिना कप्तान एंटिफोलस तो वह खुद उनकी खोज में बाहर निकल आई। 

बाजार में आते ही उसकी दृष्टि मुसाफिर ड्रोमियो तथा मुसाफिर एंटिफोलस पर पड़ी। मुसाफिर एंटिफोलस को ही 

कप्तान समझकर पत्नी बोली-"पतिदेव! रूठ गए हो क्या मुझसे, जो अब तक घर नहीं लौटे?"

मुसाफिर एंटिफोलस को यह बात काफी बुरी लगी कि एक स्त्री, जिसे वह पहचानता तक नहीं, उसे इस तरह की 

बात कहे। 

उसने क्रोध से झल्लाकर कहा-"मेरी पत्नी-वत्नी कोई नहीं, तुम कौन डायन की भांति मेरे पीछे पड़ गई हो?"

पत्नी ने कहा- "चाहे आप मुझे चुडैल कहें अथवा डायन, पर मेरे तो आप ही पति हैं। मैं आपको साथ लिए बगैर घर 

न जाऊंगी।"

परदेस में यह सब मामला मुसाफिर एंटिफोलस के दिमाग में बिल्कुल नहीं आया। जो होगा देखा जाएगा, यह 

सोचकर वह चुपचाप उस पत्नी के साथ-साथ चल पड़ा तथा उसके पीछे-पीछे मुसाफिर ड्रोमियो भी। 

पत्नी ने घर जाकर एंटिफोलस को बड़े आग्रह से भोजन खिलाया तथा ड्रोमियो को कहा कि जाओ नौकरानी से रोटी 

मांगकर खा लो।

वह नौकरानी के पास गया तो वह उसे पति-पति' कहकर पुकारने लगी। उस बेचारी को क्या पता था कि यह 

उसका पति ड्रोमियो नहीं अपितु मुसाफिर ड्रोमियो है।

उधर मुसाफिर ड्रोमियो ने भी जाना कि मैं अजब आफत में आ फंसा तथा कोई उपाय न देखकर वह नौकरानी के 

हाथ से रोटी खाने बैठ गया।

इतने में बाहर से कप्तान एंटिफोलस तथा बड़ा ड्रोमियो दोनों अपने घर भोजन करने के लिए लौट आए। वे अपना 

नाम ले-लेकर बार-बार द्वार खटखटाते कि दरवाजाखोलो, मगर भीतर से यही उत्तर मिलता- 'यह धोखा किसी और 

को दो। हमारे पति तो हमारे घर बैठे हैं।'

अंत में हारकर कप्तान ने यही समझा कि आज श्रीमती जी काफी नाराज हैं। चलो, उन्हें खुश करने के लिए तब 

तक  बाजार से कोई कीमती तोहफे ही ले आते हैं।सोचकर कप्तान तथा उसका साथी ड्रोमियो दोनों बाजार की 

ओर चले गए। 

यह इधर मुसाफिर एंटिफोलस तथा उसका साथी ड्रोमियो जब भोजन कर चुके तो वे किसी तरह उन बनावटी 

पत्नियों की आंख बचाकर घर से भाग खड़े हुए। 

अभी मुसाफिर एंटिफोलस कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि अचानक एक सुनार ने सोने का एक जड़ाऊ हार 

उसके  हाथ में देते हुए कहा-"लो कप्तान साहब! आपका यह हार तैयार है। 

घंटे-दो घंटे तक इसके दाम भिजवा देना।'' इतना कहकर सुनार आगे बढ़ गया था। मुसाफिर एंटिफोलस हैरान था 

कि मैं तो इस सुनार को जानता भी नहीं और न मैंने इसे यह हार बनाने को कहा था। फिर यह अजनबी ठग तो 

नहीं  तथा चकमा देकर कहीं यह मुझे पकड़वाना तो नहीं चाहता? 

अभी वह इतना सोच ही रहा था कि एक वृद्धा आई और सलाम करके बोली- "कप्तान साहब! ईश्वर तुम्हें लंबी आयु

दो पिछले साल तुमने मेरे बेटे को जेल जाने से छुड़वाया था। मैं आपके इस उपकार को जीवन-भर न भूलूंगी।'

अभी वह वृद्धा गई भी न थी कि एक और नौजवान उधर से गुजरा तथा मुसाफिर एंटिफोलस को देखकर इस 

तपाक  से मिला कि मानो वह उसे काफी पहले से जानता हो। 

वास्तव में कप्तान एंटिफोलस इस नगर में पंद्रह-बीस वर्षों  से रह रहा था और विरला ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, 

जो उसे न जानता हो। 

दोनों भाइयों की आकृति बिल्कुल एक जैसी होने की वजह से सब लोग मुसाफिर को कप्तान एंटिफोलस ही समझ 

रहे थे। 

इसी भूल से एक आया तो उसे अपने लड़के के विवाह का निमंत्रण दे गया। दूसरा आया तो रुपयों की थैली देते हुए 

बोला- "अच्छा हुआ कि आप रास्ते में ही मिल गए वरना परसों जो रुपए मैं आपसे उधार ले गया था, वे वापस करने 

में आपके घर ही जा रहा था।' 

आखिर में एक दर्जी आया और उसे आदर से दुकान पर बैठाकर उसके कपड़ों का नाप लेने लगा तथा माफी 

मांगने लगा कि आपका पुराना नाप लड़के की लापरवाही से कहीं खो गया है। 

बेचारा मुसाफिर एंटिफोलस चकित था कि यह सब झमेला क्या है? मैं कहीं किसी जादू की नगरी में तो नहीं पहुंच 

गया? 

अभी वह यह सोच ही रहा था कि अचानक एक लड़की आई और उसे बांह से पकड़कर बोली-"लाओ भैया, मेरा 

सोने का हार, जो तुमने रक्षाबंधन वाले दिन मुझे देने की प्रतिज्ञा की थी।"

मुसाफिर एंटिफोलस ने चीखकर कहा - "जाओ-जाओ यहां से कल ही तो मैं इस शहर में आया हूं। एक रात में ही 

कहां तुम मेरी बहन बन गई, कहां राखी का त्योहार बीत गया तथा कहां मैंने तम्हें सोने का हार देने का वायदा कर 

दिया? तुम सब मिलकर कहीं मुझे पागल तो नहीं बनाना चाहते?"

यह कहकर मुसाफिर एंटिफोलस बड़बड़ाता हुआ इतनी तेजी से भागा कि उस लड़की को भ्रम हुआ कि वह पागल 

हो गया है इसीलिए ऐसी ऊटपटांग बातें कर रहा है तथा मुझे, अपनी बहन तक को नहीं पहचानता। 

वह लड़की भागती हुई कप्तान एंटिफोलस के घर पहुंची तथा उसकी स्त्री से जाकर बोली- "भाभी ! भैया तो पागलों 

की भांति बाजार में घूम रहे हैं। तुम उन्हें संभालती क्यों नहीं हो?"

कप्तान की पत्नी बौखलाकर बोली-"अभी तो वे यहां बैठे खाना खा रहे थे, कहां चले गए? मुझे उनके पागल होने का 

तभी संदेह हो गया था जब वे बहकी-बहकी बातें कर रहे थे तथा मुझे कहते थे कि तू मेरी पत्नी नहीं, मैंने किसी से 

विवाह नहीं किया और इस नगर में मैं कल ही पहली बार आया हूं। हाय बहन ! मैं तो बर्बाद हो गई। जल्दी बता,

तूने उन्हें देखा कहां है?" चिल्लाती हुई कप्तान की पत्नी अपने पति को ढूंढ़ने के लिए बाजार की तरफ भागी।

उधर कप्तान जब अपने घर के द्वार बंद देखकर अपनी पत्नी के लिए कोई उपहार लेने सुनार की दुकान पर पहुंचा 

तो सुनार बोला-"कप्तान साहब! पहले पिछला उधार तो चुका दो।"

कप्तान ने हैरान होकर कहा- "पिछला उधार कैसा। तुमने मुझे कौन-सी वस्तु उधार दी है?"

सुनार-"आज सुबह ही तो आपको सोने का जड़ाऊं हार देकर आया हूं मैं।"

कप्तान के कहा- "झूठ, बिल्कुल झूठ! न तुम सुबह मुझे मिले हो और न तुमने मुझे हार दिया है।"

इस तरह वे दोनों झगड़ते हुए पुलिस थाने पर पहुंचे। थानेदार ने उन दोनों को हथकड़ियां लगाकर कोठरी में बंद 

कर दिया। 

उधर अपने पति को ढूंढ़ती-ढूंढ़ती कप्तान की लड़की थाने में पहुंची। उसने थानेदार की जेब गर्म करके उससे कहा कि इस झगड़े में उसके पिता का जरा भी दोष नहीं। उसका तो दिमाग ही खराब हो गया है इसलिए अंट-संट बातें 

करता हुआ घर से भाग गया है। 

थानेदार ने भी कप्तान को पागल समझकर छोड़ दिया। कप्तान की लड़की उसे साथ लेकर अपने घर आई तथा 

उसने नौकरों को आज्ञा दी कि उन्हें रस्सियों तथा सांकलों से बांधकर कमरे में बंद कर दो।

तब तक मैं पागलखाने के डॉक्टरों को बुलाती हूं। 

बेचारा कप्तान चिल्लाता ही रह गया कि मैं पागल नहीं हूं, मुझे क्यों बांध रहे हो, मगर नौकरों ने उसकी एक न सुनी 

और उसके हाथ-पांव बांधकर उसे एक तरफ डाल दिया। 

कप्तान की पत्नी पागलखाने के डॉक्टर को भी साथ लेकर अभी रास्ते में ही आ रही थी कि एक व्यक्ति भागता हुआ

आया और बोला- "आप कहती हैं कि मैंने अपने पति को कमरे में बंद किया है, मगर मैंने तो उन्हें बाजार में टहलते 

देखा है। शायद वे बंधन तुड़ाकर भाग गए हैं।"

वास्तव में उस व्यक्ति ने मुसाफिर एंटिफोलस को बाजार में देखा था और उसे ही कप्तान एंटिफोलस मानकर वह 

उसकी खबर कप्तान की पत्नी को देने आया था।

डॉक्टर को वहीं छोड़कर कप्तान की पत्नी अपने पति को पकड़ने के लिए उस व्यक्ति के साथ-साथ चली।चलते 

चलते उसने दूर से एक स्थान पर मुसाफिर एंटिफोलस को खड़े देखा तथा उसे ही अपना पति समझकर चिल्लाई-

"वो है मेरा पति! वह रहा मेरा पति! पकड़ो पकड़ो वह भागने न पाए।'

मुसाफिर एंटिफोलस ने देखा कि यह वही डायन है, जो जबरदस्ती उसे अपना पति बता रही थी तथा जिसकी आंख 

बचाकर वह अभी भागकर आया है। उसे अपने पीछे आते देखकर वह भी पूरा जोर लगाकर भागा तथा पास ही के 

एक मंदिर में जा घुसा।


मंदिर में एक रहमदिल पुजारिन रहती थी। मुसाफिर एंटिफोलस ने उसे जबरदस्ती अपनी पूरी रामकहानी कह 

सुनाई कि किस प्रकार से वह स्त्री उसे जबरदस्ती अपना पति बना रही है तथा वह मंदिर की शरण में आया है 

और उस लड़की से छुटकारा पाना चाहता है।

न जाने क्यों इस एंटिफोलस को देखकर पुजारिन के मन में स्नेह का स्रोत उमड़ पड़ा तथा वह अनजाने ही उसके 

सिर पर हाथ फेरकर बोली- "बेटे! चिंता मत करो। मैं सब प्रकार से तुम्हारी सहायता करूंगी। तुम अंदर चलकर 

मंदिर में बैठो।"

तब तक अपने पति के भ्रम से मुसाफिर एंटिफोलस का पीछा करती हुई कप्तान की पत्नी भी वहां पहुंची थी। 

पुजारिन ने उसे धैर्य से समझाना चाहा, मगर वह तो यही रट लगाए थी-"मेरा पति मुझे लौटा दो। वह पागल है। 

उसका दिमाग ठिकाने नहीं है। मैं उसे वापस लेकर ही छोडूंगी।"

इधर इस तरह दो भाइयों की आकृति के कारण नगर में हुड़दंग मचा हुआ था। उधर बेचारे एजियन को मिली एक 

दिन की अवधि खत्म होने को थी। दिन डूब चला था और राजा उसे फांसी का आदेश सुनाने ही वाला था। 

संयोगवश  फांसीघर मंदिर के पीछे ही था और एजियन की फांसी के सिलसिले में राजा और हजारों की संख्या में 

लोग उपस्थित थे। 

जब राजा ने मंदिर के समक्ष इतनी भीड़ देखी तो उसका कारण जानने के लिए वह वहां आया। हथकड़ियों में बंधा 

एजियन भी उसके साथ लाया गया था। तब तक कप्तान एंटिफोलस भी किसी तरह अपनी रस्सियां तुड़वाकर घर से 

भागा और मंदिर के सामने भीड़ इकट्ठी देखकर उसका तमाशा देखने के लिए ठहर गया। 

कप्तान को देखकर उसकी पत्नी उसके गले से लिपट गई तथा बोली-"मिल गया मेरा पति, मिल गया।

पुजारिन की समझ में कुछ न आया था। वह हैरान थी कि इसी शक्ल के एक मनुष्य को मैं अभी ईश्वर के मंदिर में 

बैठाकर आई हूं। फिर वैसा ही दूसरा व्यक्ति कहाँ से आ गया। वह झटपट अंदर गई और मुसाफिर एंटिफोलस को 

बुलाकर बाहर ले आई। 

अब कप्तान की पत्नी को काटो तो खन नहीं। वह एक निगाह कसान एंटिफोलस की ओर डालती और दूसरी 

मुसाफिर एंटिफोलस की तरफ। एक जैसे दो व्यक्तियों को सामने  खड़ा देखकर उसका दिमाग चकरा गया इसी 

वक्त एजियन को साथ लिए हुए राजा वहां पहुंचा। अपने दोनों लड़कों को सामने खड़े देखकर एजियन ने झट उन्हें 

पहचान लिया तथा उसकी आंखों से टप टप प्रेम के आंसू झरने लगे। मुसाफिर युवक ने भी अपने पिता को पहचान 

लिया किंंंतु  कप्तान  न पहचान सका था क्योंकि वह बचपन में ही समुद्री दुर्घटना के वक्त उससे बिछुड़ गया था।

एजियन के मुख से राजा ने उसकी रामकहानी प्रात:काल ही सुनी थी तथा उसे पता चल चुका था कि उसके दोनों 

लड़कों की शक्ल-सूरत, डील-डौल और चाल-ढाल बिल्कुल एक-सी है तथा नाम भी एक है। 

अत: इस सारे मामले को समझते उसे जरा भी देर न लगी। उसने कप्तान एंटिफोलस को करीब बुलाकर उसे 

एजियन की सारी कहानी कह सुनाई तथा बिछुड़े पिता के इतने बरसों के बाद मिल जाने पर उसे बधाई दी।

पास ही खड़ी पुजारिन यह सब नजारा देखती हुई कहानी सुन रही थी। उसकी आंखों से भी टप-टप आंसू बहने 

लगे तथा उसने आगे बढ़कर एजियन से कहा- तुम्हारी वह बदकिस्मत पत्नी हूं, जो समुद्री दुर्घटना में तुमसे बिछुड़ 

गई थी। 

मुझे और मेरे साथ के दोनों लड़कों को पकड़कर वे मल्लाह अपने घर ले आए। वहां आकर उन्होंने रुपयों के 

लालच में मेरे दोनों लड़कों को एक रईस के हाथ बेच दिया। 

पुत्रों को सदा के लिए बिछुड़े देखकर मेरे मन को बड़ी चोट लगी और मैं संन्यासिनी बनकर देश-विदेश घूमने लगी। 
कई वर्षों तक तीर्थों में भ्रमण करने के बाद अंत में मैं इस मंदिर में आकर रहने लगी। 

ये दोनों एंटिफोलस हमारे ही पुत्र हैं और उनकी समान आकृति की वजह से ही यह हुड़दंग मचा है।

इस तरह अनायास ही बरसों के बिछुड़े अपने माता और पिता को देखकर दोनों एंटिफोलस उनके पैरों से लिपट 

गए। अब कप्तान की पत्नी की समझ में भी सभी बातें आ गईं तथा एफेसिस के निवासियों, सुनार, दर्जी आदि को 

जो  भ्रम हुआ था, उसका कारण भी उनकी समझ में आ गया। कप्तान ने उसी वक्त अपने पिता को छुड़ाने के लिए

एक हजार रुपए देने चाहे, मगर राजा ने उससे एक पैसा भी लिए बिना एजियन को छोड़ दिया। न जाने कब के 

बिछुड़े फिर से एक साथ सुख से रहने लगे।


जरूर पङे 1.  विलियम शेक्सपीयर की रचना हिन्दी मे  - कर्कशा का सुधार (The Taming of the Shrew).

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