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Hindi story - बर्फ का तूफान

Hindi story - बर्फ का तूफान


This is a Russian Love story , with a suspense this story is written by Alexander Pushkin.

सन् 1811 ई. में श्रीमान् गैब्रियल अपनी नेनाब्दोभा जमींदारी में रहते थे। वह जिले में अतिथि-सेवा और चरित्र की मधुरता के लिए प्रसिद्ध थे। मुहल्ले के लोग खाने-पीने के लिए और उनकी पत्नी प्रैसकोविया के साथ ताश खेलने के लिए अक्सर उनके घर आते थे। और कोई उनकी कन्या मारिया को देखने के लिए आते-जाते था। युवती की उम्र सत्रह साल की थी। वह लम्बी और पीले रंग की थी और वही अपने पिता की सारी ज़मींदारी की वारिस थी। इसीलिए अनेक जन अपने लिए या अपने पुत्रों के लिए उसे चाहते थे।

मारिया फ्रांसीसी उपन्यासों के आदर्श में पली हुई थी। उसका प्रेमी सेना-विभाग का एक नीचा ओहदेदार था। वह इस समय छुट्टी लेकर घर आया था। युवक भी मारिया से प्रेम करने लगा था। लेकिन प्रेमिका के माँ-बाप ने, दोनों में यह मोह देखकर, युवक को अपने मन में जगह देने को मना किया। उनके घर आने पर वे युवक का बिलकुल ही आदर नहीं करते थे।

प्रेमी-द्वय एक-दूसरे को पत्र लिखते और प्रतिदिन चीड़ के जंगल में या सड़क किनारे पुराने गिरजे के पास एक-दूसरे से मिलते थे। उन्होंने आजीवन एक-दूसरे से प्रेम करने की शपथ ली, परमात्मा का तिरस्कार किया और भाँति-भाँति के उपायों की आलोचना करने लगे।

अनेक पत्र-व्यवहार और बातचीत के बाद वे इस निश्चय पर पहुँचे- अगर हम लोग एक-दूसरे से अलग न रह सकें, अगर कठोर हृदय माँ-बाप हम लोगों के सुख का पथ बन्द कर दें, तो क्या हम लोग उनसे कोई मतलब न रखकर अलग नहीं रह सकते हैं? युवक के दिमाग़ में ही प्रथम यह बात आई थी, फिर मारिया की औपन्यासिक कल्पना में भी यह बात सुन्दर लगी थी।

जब मुलाकात न होती तब उन लोगों में पत्र-व्यवहार और भी तेजी से बढ़ने लगा। युवक ब्लाडिमीर अपनी हर एक चिट्ठी में मारिया से अनुनय करता कि वे गुप्त भाव से विवाह कर लें। कुछ समय तक छिपे रहकर, फिर माँ-बाप के चरणों पर अपने को गिरा देंगे। हमारा प्रेम देखकर अन्त में वे कहेंगे, "बच्चो! आओ, हमारे गले से लग जाओ।"

मारिया ने बहुत देर तक दबाव डाला, और दूसरे उपायों से भागने का प्रस्ताव उसने स्वीकार नहीं किया। लेकिन अन्त में वह ब्लाडिमीर के बातचीत से राजी हुई।

मारिया ने निश्चय किया कि भागने के निश्चित दिन, सिर-दर्द का बहाना करके रात को भोजन नहीं करेगी और अपने कमरे में चली जाएगी। फिर मारिया और उसकी नौकरानी (जो भीतरी बात जानती थी) पीछे की सीढ़ी से बाहर की फुलवारी में आएगी; फुलबारी से कुछ दूर पर 'स्लेज' (बिना पहिए की बर्फ पर चलने की बग्धी) तैयार रहेगी। उस बग्धी पर नेनाब्दोभा से पाँच मील दूर, जद्रीनों गाँव में जाएगी, वहाँ से सीधे गिरजाघर पहुँचेगी, उसका प्रेमी ब्लाडिमीर वहीं उसके लिए प्रतीक्षा करेगा।

उस रात मारिया को नींद नहीं आई। वह आवश्यक चीजें बाँधने लगी। इसके सिवाय उसने अपनी एक नाजुकख्याली सहेली को एक लम्बा पत्र लिखा और एक पत्र अपने माँ-बाप को लिखा। इस पत्र में बहुत ही हृदय-स्पर्श करने वाली भाषा में उन से विदा ली। वह जो यह काम कर रही है, उसका एकमात्र कारण है, प्रेम की अजेय शक्ति। और उसने यह लिखकर पत्र समाप्त किया कि अगर कभी उनके चरणों पर पड़ने की इजाजत मिल जाए, तो वह क्षण उसके जीवन का सबसे बड़े सुख का क्षण होगा!

उसने दोनों पत्रों पर लाख लगाकर मुहर छाप दी, उस मुहर पर दो जलते हृदय और उनकी उपयोगी बातें खोदी हुई थीं। इसके बाद ही वह अपने पलंग पर लेट गई। उसे झपकी आई। बीच-बीच में बुरा स्वप्न देखकर वह जग जाती। पहले लगा कि 'स्लेज'-बग्घी में बैठते ही उसके माँ-बाप ने उसे रोका और बग्घी खींच ले जाकर एक अँधेरे गड्ढ़े में फेंक दी। वह लड़खड़ाकर उसमें गिर पड़ी। जाने कैसे एक अकथनीय अवसाद से उसका हृदय पीड़ित हो गया। फिर वह ब्लाडिमीर को देख पाई; ब्लाडिमीर घास पर पड़ा था। उसका चेहरा पीला, सर्वांग से खून झर रहा था; अपनी अन्तिम साँस के साथ वह मानो शीघ्र विवाह करने के लिए उससे प्रार्थना कर रहा था...और भी कितने ही भयानक स्वप्न एक के बाद एक उसके सामने आने लगे। अन्त में जब वह जाग उठी तब उसका चेहरा और भी पीला पड़ गया था, उसका सिर बहुत दर्द कर रहा था।

माँ-बाप दोनों ने ही मारिया की यह अस्वस्था देखी। वे चिन्तित होकर बार-बार पूछने लगे, “तुम क्यों ऐसी दीख रही हो, बेटी? तुम क्या अस्वस्थ हो?"

उनके इस स्नेह-भरे प्रश्न से मारिया का हृदय फटा जा रहा था। मारिया उन लोगों को ढाढ़स देने लगी, चेहरे पर खुशी लाने की चेष्टा करने लगी; पर कर नहीं सकी ।

क्रमशः संध्या आई। माँ-बाप के घर में रहने का यह अन्तिम दिन सोच कर, उसका चित्त व्यथित होने लगा। उसने मन-ही-मन सबसे विदा ली, आस-पास की सारी चीज़ों से विदा ली। रात्रि के भोजन का इन्तज़ाम हुआ। तब काँपते स्वर से उसने कहा कि आज उसे भूख नहीं है, फिर 'गुड-नाइट' कहकर दोनों से विदा ली। उन्होंने उसे चुम्बन किया और दूसरे दिन की भाँति आशीर्वाद दिया। वह रोनी-सी हो गई।

अपने कमरे में जाकर मारिया आराम कुर्सी पर गिर पड़ी। उसकी आँखों से आँसू झरने लगे। नौकरानी ने उससे शान्त होने और हृदय में साहस लाने के लिए कहा। सब तैयार था। आधे घंटे में ही मारिया अपने माँ-बाप का मकान, अपना कमरा, अपना शान्तिमय जीवन, सब सदा के लिए छोड़कर चली जाएगी!

बाहर बर्फ गिर रहा था, बादल गरज रहे थे। खिड़कियाँ हिल रही थीं, उनसे 'खट-खट' शब्द हो रहा था। प्रत्येक बात से मानो अमंगल की सूचना और खतरे की आशंका प्रकट होने लगी।

शीघ्र ही सारा मकान निस्तब्ध और निद्रामग्न हुआ। मारिया ओवर-कोट पहनकर, ऊपर से एक दोशाला ओढ़कर, एक बॉक्स हाथ में लिए पीछे के जीने पर आ गई। नौकरानी दो गठरियाँ लिए पीछे-पीछे आ रही थी। वे दोनों फुलवारी में उतर आईं। बर्फ़ का तूफ़ान बड़े ही भयानक रूप से चल रहा था। एक प्रबल वायु का प्रवाह सामने से उन लोगों को ठेलने लगा, मानो किशोरी अपराधी को पाप-कर्म से रोकने के उद्देश्य से। बहुत कठिनाई से फुलवारी से चलकर वे सड़क पर आईं।

सड़क पर उसके लिए एक 'स्लेज़' बग्घी प्रतीक्षा कर रही थी। ठंड के मारे घोड़े स्थिर नहीं रहना चाहते थे। कोचवान घोड़े के सामने इधर-उधर घूम रहा था, और उन्हें शान्त करने की चेष्टा कर रहा था। कोचवान ने मारिया और नौकरानी को बग्धी पर बिठा दिया। फिर सामान बग्घी में लादकर रस्सी हाथ में ली, और घोड़े रात्रि के अन्धकार में दौड़ चले। किशोरी मारिया को परमात्मा के हाथों में और कोचवान टेरेस्का के हाथों में सौंपकर नौकरानी वापस चली आई।

ब्लाडिमीर सुबह जद्रीनों गाँव के पादरी से मिलने गया और बहुत कठिनाई से उसे विवाह कराने के लिए राजी किया। फिर गवाहों की तलाश में मुहल्ले के सज्जनों के पास गया। पहले वह घुड़सवार सेना के दर्विन नाम के एक अफ़सर से जाकर मिला। उसकी उम्र चालीस के करीब थी। वह उसी क्षण राजी हो गया। उसने ब्लाडिमीर को अपने साथ भोजन करने के लिए ठहर जाने का अनुरोध किया और उसे आश्वासन दिया, कि और दो गवाह अनायास ही मिल जाएँगे। भोजन के बाद की कानूनगो स्मिथ और मजिस्ट्रेट का किशोर पुत्र, जिसकी उम्र सोलह साल की थी, आए। उन्होंने केवल ब्लाडिमीर का प्रस्ताव ही स्वीकार नहीं किया, उन्होंने यह शपथ भी खाई कि उसके लिए वे अपना जीवन तक देने के लिए तैयार हैं।ब्लाडिमीर ने आनन्द से उन लोगों का आलिंगन किया और सब कुछ तैयार है या नहीं, यह देखने के लिए वह बग्घी पर सवार होकर चल दिया।

बहुत पहले संध्या बीत चुकी थी। ब्लाडिमीर ने दो घोड़ों की स्लेज़' बग्घी के साथ अपने विश्वासी कोचवान टेरेस्का को नेनाब्दोभा भेज दिया और जो बातें कहनी थीं, वे सब समझा कर कह दीं। और अपने लिए एक घोड़ा वाली 'स्लेज़' बग्घी जोतने का हुक्म दिया और कोचवान जद्रीनों गाँव के लिए चल पड़ा। वहाँ दो घंटे के भीतर मारिया के पहुँचने की बात थी। ब्लाडिमीर को रास्ता मालूम था। उसने सोचा, वहाँ पहुँचने में सिर्फ बीस मिनट लगेंगे।

पर ब्लाडिमीर के चहारदीवारी से पार होकर खुले मैदान में आते ही हवा तेज हो गई, और थोड़ी देर के बाद ऐसी तेजी से बर्फ का तूफ़ान चला कि वह कुछ भी नहीं देख पा रहा था। क्षण-भर में रास्ता बर्फ से ढंक गया। गहरे अँधेरे में जमीन के सब चिह्न लुप्त हो गए। आसमान और पृथ्वी मिलकर एक हो गए। घोड़ा अपनी मर्जी से चल रहा था और प्रति क्षण या तो गहरे बर्फ के भीतर, नहीं तो एक गड्ढे में आकर रुक रहा था। बार-बार उसकी बग्घी उलटी जा रही थी। ब्लाडिमीर भरसक चेष्टा कर रहा था कि दिशा-भ्रम न हो जाए, लेकिन उसे लगा कि आधे घंटे से अधिक समय बीत गया, फिर भी वह जद्रीनों के जंगल में नहीं पहुँच सका है। और दस मिनट बीत गए, पर वह जंगल नज़र में नहीं आया।

गहरी नाली और खड्डों से भरे मैदानों पर से घोड़ा बढ़ाने लगा। बर्फ के तूफ़ानों के वेग में कुछ भी कमी नहीं हुई, आसमान भी साफ नहीं हुआ। घोड़ा थक गया, बर्फ़ के भीतर उसके पैर घुस जाने पर भी, उसके बदन से पसीना टपक रहा था।

अन्त में ब्लाडिमीर ने देखा कि वह ग़लत दिशा को जा रहा है। उसने घोड़ा रोक लिया। मन-ही-मन वह सोचने लगा, क्या करेगा? अन्त में उसे लगा कि दाहिनी ओर जाना चाहिए था। वह दाहिनी ओर जाने लगा। घोड़ा और नहीं चल पा रहा था। वह एक घंटा चला। जद्रीनों और अधिक दूर नहीं होगा। वह घोड़ा बढ़ाता गया; लेकिन किसी तरह भी मैदान पार नहीं कर पा रहा था। अभी भी उसी तरह नालियाँ और खड्डे मिल रहे थे। प्रति क्षण बग्घी उलटी जा रही थी और प्रति क्षण ब्लाडिमीर को उसे खींच कर सीधा करना पड़ रहा था।

समय बीतता चला जा रहा था, ब्लाडिमीर बहुत चिन्तित हो उठा। अन्त में बहुत दूर पर एक काली लकीर दीख पड़ी।

ब्लाडिमीर उस ओर बढ़कर जब उसके निकट आया, तो देखा वह एक जंगल है। उसने मन-ही-मन कहा, 'ईश्वर को धन्यवाद है, कि मैं अब अपनी मंजिल पर आ गया हूँ।' ब्लाडिमीर जंगल के किनारे-किनारे बग्घी बढ़ाने लगा, सोचा कि परिचित सड़क आ पड़ेगी। जद्रीनों गाँव बिलकुल इस जंगल के पीछे है शीघ्र ही वह सड़क मिल गई; उसने उस रास्ते से जाते हुए जंगल के अन्धकार में प्रवेश किया।

यहाँ हवा की तेज़ी नहीं थी। सड़क चौरस थी। घोड़े को तसल्ली हुई। ब्लाडिमीर की घबराहट भी कुछ कम हुई। ब्लाडिमीर घोड़ा बढ़ाता ही जा रहा था, फिर भी जद्रीनों नहीं दिख रहा था। जंगल भी ख़त्म नहीं हो रहा था। फिर उसके मन में एक भयानक डर और घबराहट छा गई। यह क्या? यह तो उसका अपरिचित जंगल है! वह निराश हो गया। घोड़े को कोड़ा मारा। बेचारे घोड़े ने फिर दुलकी चाल से चलना शुरू किया। पर घोड़ा शीघ्र ही थक गया। और बेचारे ब्लाडिमीर के भरसक कोशिश करने पर भी, घोड़ा बहुत धीरे चलने लगा। गाँव नहीं दीखा। उस समय आधी रात थी। उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे। वह क्रमशः जंगल पतला होने लगा, ब्लाडिमीर जंगल से निकल पड़ा। फिर भी जद्रीनों निरुत्साह भाव से घोड़ा बढ़ाने लगा। इस समय तूफ़ान कुछ कम हो गया था, बादल इधर-उधर बिखरे थे; उसके सामने सफ़ेद तरंगित कालीन से ढंका दूर तक फैला हुआ मैदान था।

रात्रि कुछ साफ़ हो गई थी। कुछ दूर पर एक छोटा-सा गाँव दीख पड़ा। चार-पाँच कुटियों से यह गाँव बना था। पहली कुटी आते ही ब्लाडिमीर बग्धी पर से कूद पड़ा, खिड़की के निकट दौड़कर जाकर उसने खिड़की खटखटाई।

कुछ क्षण के बाद वह खिड़की ज़रा-सी खुली और एक बूढ़े की लाल दाढ़ी दीख पड़ी।

"क्या चाहते हो?"

"यहाँ से जद्रीनों कितनी दूर हाँ

“जद्रीनों कितनी दूर ",

हाँ,हाँ जद्रीनों। क्या यहाँ से बहुत दूर है?"

"ज्यादा दूर तो नहीं है; यहाँ से सिर्फ दस मील है।

" यह जवाब पाकर ब्लाडिमीर ने अपने बालों को मुट्ठी के भीतर कस लिया, और मौत की सजा पाए मनुष्य की तरह चुपचाप खड़ा रहा।

उस बूढ़े ने फिर कहा, "तुम कहाँ से आ रहे हो?"

ब्लाडिमीर को जवाब देने का साहस नहीं हुआ। उसने कहा, “जद्रीनों जाने के लिए एक घोड़ा लिवा सकते हो?"

उस किसान ने जवाब दिया, “हम लोगों के पास घोड़ा नहीं है।"

"क्या एक राह दिखाने वाला पा सकता हूँ? चाहे जितना रुपया माँगो, मैं दूंगा।

" बूढ़े ने खिड़की बन्द करके कहा, “ठहरो, तुम्हारे साथ अपने लड़के को भेज दूंगा; वह तुम्हें रास्ता दिखाकर ले जाएगा। "

ब्लाडिमीर प्रतीक्षा करने लगा। एक मिनट के बाद ही वह फिर खिड़की खटखटाने लगा। खिड़की खुल गई फिर वह लाल दाढ़ी दीख पड़ी । "

क्या चाहते हो?"

“भेजो अपने लड़के को!"

“आ रहा है, जूते पहन रहा है। क्या तुम्हें जाड़ा लग रहा है? भीतर आग के पास ज़रा गरम हो लो।"

"धन्यवाद! मुझे जरूरत नहीं है। तुम अपने लड़के को जल्दी भेज दो। " दरवाज़ा खुलने का शब्द हुआ। लाठी हाथ में लिए एक युवक निकलकर उसके सामने आया।

एक बार उसने बड़ी सड़क को उँगली से दिखा दिया और बाईं ओर जहाँ बर्फ़ जमा हुआ था, उस जगह को भी दिखा दिया।

ब्लाडिमीर ने पूछा, "वक्त क्या होगा?"

युवक किसान ने जवाब दिया, “थोड़ी देर में दिन निकल आएगा।"

ब्लाडिमीर ने कुछ नहीं कहा। मुर्गे बोलने लगे। जब वे जद्रीनों में पहुँचे, उस समय सूर्य निकल आया था।

ब्लाडिमीर ने किसान युवक को कुछ बख्शीश देकर पादरी के घर के आँगन में प्रवेश किया। पर आँगन में उसने अपनी दो घोड़ों की ‘स्लेज़' बग्घी नहीं दिखाई दी। न जाने क्या ख़बर उसके लिए प्रतीक्षा कर रही थी!

लेकिन अब हम नेनाब्दोभा में दयालु हृदय जमींदार गैब्रियल के घर में फिर लौटचलें। देखें, वहाँ क्या हो रहा है।

कुछ भी नहीं!

ज़मींदार और उसकी पत्नी ने जागकर बैठक में प्रवेश किया। गैब्रियल के सिर पर रात्रि-टोपी थी और बदन पर फ्लालेन का कुर्ता था; और प्रैसकोविया एक रुई भरा ओवर-कोट पहने हुए थी। चाय बनने लगी। गैब्रियल ने नौकरानी को यह पूछने के लिए भेजा कि रात मारिया को कैसी नींद आई? नौकरानी ने लौटकर कहा, “रात मारिया , को अच्छी तरह नींद आई है। अब वह कुछ स्वस्थ है। अभी बैठक में आएगी।"

मारिया ने कमरे में प्रवेश करके माँ-बाप को नमस्कार किया।

गैब्रियल ने पूछा, “तुम्हारे सिर का दर्द कैसा है, मारिया ?"

मारिया ने उत्तर दिया, “कुछ अच्छा है।"

प्रैसकोविया बोली, “शायद कमरे की आग के धुएँ से और आँच लगने से सिर में दर्द हुआ था।"

मारिया ने उत्तर दिया, “यही बात होगी, अम्माँ !"

यह दिन किसी तरह बीत गया। लेकिन रात को मारिया एकाएक बीमार पड़ गई। शहर से एक डॉक्टर बुलाया गया। डॉक्टर ने सन्ध्या समय आकर देखा कि मारिया प्रलाप कर रही है। बहुत तेज़ बुखार था। दो सप्ताह के भीतर मारिया मृत्यु के निकट आ गई।

मारिया जो घर से भाग गई थी, यह बात घर का कोई भी आदमी नहीं जानता था। भागने के पहले दिन के रात में मारिया ने जो पत्र लिखा था, वह जला दिया गया था। मालिक और मालकिन नाराज़ होंगे, सोचकर नौकरानी ने इस विषय में एक भी बात नहीं कही थी। पादरी और शादी के गवाह भी बहुत सावधान थे। सावधान होने का कारण भी था। कोचवान टेरेस्का अधिक बोलता नहीं था, शराब पीने पर भी नहीं। सबने बात को बहुत गुप्त रखा था।

पर मारिया ने स्वयं अपने लम्बी अवधि के ज्वर के प्रलाप में गुप्त बात को प्रकट कर दिया। लेकिन उस बात को उसने ऐसे टूटे-फूटे भाव से कहा था कि उसकी माता केवल इतना ही समझी कि ब्लाडिमीर के प्रेम से वह एकदम मोहित हो पड़ी है, और यही प्रेम शायद उसकी बीमारी का असली कारण है। पत्नी ने अपने पति से और कुछ पड़ोसियों से सलाह की, और सबने एकमत से राय दी कि मारिया को रोकना ठीक नहीं है। जिस आदमी से किसी नारी ने विवाह करने की इच्छा की है, उस आदमी को उससे दूर हटाना उचित नहीं है। गरीबी तो कोई अपराध नहीं है; नारी को रुपए के साथ तो रहना नहीं है-रहना होगा एक पुरुष के साथ, आदि। ऐसे अवसरों पर, जब अपने

समर्थन के लिए हम लोग कुछ भी सोच नहीं पाते, तब नैतिक कहावतें बहुत काम में आती हैं।

इसी बीच मारिया की तबीयत कुछ सुधरने लगी। पहले के सत्कार से ब्लाडिमीर इतना डर गया था कि वह बहुत अर्से से गैब्रियल के घर नहीं गया था। अब ब्लाडिमीर के निकट यह अच्छी ख़बर भेजना निश्चित हुआ कि मारिया के माँ-बाप मारिया से उसका विवाह करने को राजी हैं। ब्लाडिमीर ने कभी ऐसी ख़बर पाने की आशा नहीं की थी। इस निमन्त्रण के जवाब के रूप में मारिया के माँ-बाप ने जो चिट्ठी पाई, उसे पढ़कर वे बहुत ही विस्मित हुए। ब्लाडिमीर ने उन लोगों को जताया कि वह और कभी उनके घर नहीं जाएगा, उसकी तरह अभागे व्यक्ति को वे सदा के लिए भूल जाएँ। अब मृत्यु ही उसकी एकमात्र आशा और कामना है। इसके कुछ दिनों के बाद उन लोगों ने सुना कि ब्लाडिमीर उस जगह से चला गया और सेना में सम्मिलित हो गया है।

बहुत दिनों के बाद, उन लोगों ने मारिया से यह बात कहने का साहस किया क्योंकि मारिया अब कुछ ठीक हो गई थी। मारिया ने कभी भी ब्लाडिमोर का उल्लेख नहीं किया। खैर, कई महीने के बाद, बरोदिनी के युद्ध में जो लोग सख्त घायल हुए थे और बहुत प्रशंसित हुए थे, उसकी सूची में ब्लाडिमीर का नाम देखकर मारिया बेहोश हो गई थी। सब को डर हुआ कि कहीं फिर बुखार न आ जाए। पर ईश्वर की कृपा से बेहोशी से और कोई बुरा फल नहीं हुआ।

मारिया और एक दुख में डूब गई। उसके पिता की मृत्यु हो गई; वे मारिया को अपनी सारी सम्पत्ति का वारिस कर गए थे। मारिया ने निश्चय किया कि शोक से कातर अपनी माता को छोड़कर वह अब कहीं नहीं जाएगी। इस धनवान सुन्दर युवती को विवाहार्थी लोग आकर घेरे रहते। लेकिन मारिया उनको रत्ती भर भी आशा नहीं देती। एक जीवन-साथी चुन लेने के लिए कभी-कभी उसकी माता ज़ोर देती; किन्तु मारिया केवल सिर हिलाती और बहुत उदास हो पड़ती।

ब्लाडिमीर अब जीवित नहीं है। नेपोलियन के रूस-आक्रमण करने के पहले ही ब्लाडिमीर इस संसार को छोड़कर चला गया था। मारिया ने अब उसकी पवित्र स्मृति को हृदय-मन्दिर में प्रतिष्ठित किया है। ब्लाडिमीर ने जो सब किताबें पढ़ी थीं, जो सब चित्र अंकित किए थे, जो सब गाने गाये थे, जो सब छोटी-छोटी कविताएँ मारिया ने उसके लिए नक़ल कर दी थीं, एक शब्द जो कुछ भी उसकी बातें याद दिलाती हैं, वे सब अमूल्य रत्न की भाँति उसने संचित करके रख ली हैं।

मुहल्ले के लोग ये सब बातें सुनकर, उसके ऐसे प्रेम से विस्मित हुए, और वे कुतूहल के साथ ब्लाडिमीर के वापस आने की प्रतीक्षा करने लगे।

इसी बीच युद्ध ख़त्म हो गया। हमारी विजयी सेना परदेश से लौट रही थी। लोग उन्हें देखने के लिए भागे जा रहे थे। पल्टन का बाजा युद्ध का जय-संगीत बजा रहा था। जो कम उम्र के किशोर युद्ध में गए थे, वे मोटे-ताज़े होकर, सम्मानित होकर लौट आए। सैनिक बहुत आनन्द से आपस में बातचीत कर रहे थे। वे प्रतिक्षण अपनी बातों में फ्रांसीसी और जर्मन शब्द मिला रहे थे। वह समय भूलने का नहीं है, वह गौरव का समय था। 'मेरी जन्मभूमि!' इस बात से रूसी हृदय कितना शीघ्र फड़क उठता है। मिलन के आँसू कितने मीठे होते हैं। हम लोगों ने किस तरह एक हृदय होकर जातीय गर्व का भाव और जार पर भक्ति का भाव इकट्ठा सम्मिलित किया था।

स्त्रियाँ-हमारी रूसी स्त्रियाँ-तब बहुत उत्साहित हो गई थीं। उनकी उदासी गायब हुई थी। विजयी सेना को देखकर उनमें आनन्द की बाढ़ आ गई। वे चिल्लाकर जय-ध्वनि कर उठीं अपनी टोपियाँ आसमान की ओर फेंकने लगीं।

उस समय का ऐसा कौन सैनिक है, जो नहीं स्वीकार करेगा-उनके अच्छे और कीमती पुरस्कारों के लिए वे स्त्रियों के निकट ऋणी हैं। उस गौरव से उज्ज्वल समय में मारिया अपनी माता के साथ एकान्त में दिन काट रही थी। दोनों में से किसी भी नहीं देखा कि रूस की राजधानी में लौटे हुए सैनिकों ने कैसी आदर पाई। पर गाँव और कस्बों में लोगों का उत्साह मानो और अधिक हुआ था। उन जगहों में एक सै दीखने पर सब लोग विजय का उत्सव मनाने लगते। वर्दी पहने एक सैनिक की बग में सादी पोशाक पहने किसी स्त्री का प्रेमी फीका पड़ जाता था।

मारिया उदासीनता में भी विवाहार्थी युवकों के द्वारा घिरी हुई रहती। लेकिन जब 'सेंट जाज ऑर्डर' के खिताब से सम्मानित, पीले रंग का सुन्दर, एक हजार सेनादल क घायल युवक कप्तान, नाम बुसैन, उसके भवन में आ पहुँचा, तब और सब लोगों को पीछे हटना पड़ा। बुर्मीन की उम्र करीब छब्बीस साल की थी। वह छुट्टी लेकर अपनी जमींदारी में आया था। यह ज़मींदारी मारिया के गाँव के घर के पास ही थी। मारिया उसका जितना आदर और अभ्यर्थना करने लगी, वैसा आदर और अभ्यर्थना उसने और किसी की नहीं की थी। बुर्मीन के सामने उसकी स्वाभाविक उदासी और दुखित भाव गायब हो गया। यह बात नहीं कही जा सकती कि मारिया उसके प्रति प्रेम का छल कर रही थी। उसका व्यवहार देखकर कोई कवि कह सकता था-

"यह अगर प्रेम नहीं है, तो क्या है?"

वास्तव में उस युवक को देखने पर सबको अच्छा लगता। उसके व्यवहार में बनावटी भाव नहीं था। वह कुछ परिहास-प्रिय था। पर सोच-विचार कर परिहास नहीं करता था।

मारिया के प्रति उसका व्यवहार सीधा-सादा और सहज ढंग का था। उसे वह शान्त और नम्र स्वभाव का लगता। लेकिन लोग कहते कि किसी समय वह बहुत लम्पट, क्रोधी और उदंड था। पर मारिया के विचार में, उससे कुछ नुकसान नहीं हुआ। मारिया ने (दूसरी युवतियों की भाँति) उसकी ये सब बातें, चित्त के स्वाभाविक आवेग और निडरता का परिणाम कहकर, आनन्द के साथ क्षमा कर दीं।

पर खास कर, उसके प्रेम-संभाषण से अधिक, उसके मनोहर वार्तालाप से भी अधिक-उसके सुन्दर चेहरे से भी अधिक उसकी पट्टी बँधी बाँह से भी अधिक, इस युवक सैनिक की नीरवता ने उसके कुतूहल और कल्पना को उत्तेजित किया था। वह मन-ही-मन स्वीकार किए बिना रह नहीं सकी कि वह सैनिक उसे बहुत अच्छा लगा है। और उस बुद्धिमान और अनुभवी सैनिक ने भी समझा कि वह मारिया को अच्छा लगा है। तब क्यों इतने दिनों तक वह युवती के पैरों पर नहीं पड़ा है? और यह युवती भी क्यों प्रेम प्रकट नहीं कर रही है? तब क्या मारिया का अपना और कोई गुप्त रहस्य है?

अन्त में बुर्मीन ऐसी गहरी चिन्ता में डूब गया, उसकी काली उज्ज्वल आँखें ऐसे प्यासे भाव से मारिया के चेहरे पर लगी रहतीं कि अन्तिम परिणाम में और अधिक देर नहीं है। पड़ोसी आपस में कहने लगे कि अब मारिया की शादी हो जाएगी, इतने समय के बाद लड़की को योग्य वर मिला है। यह जान कर प्रेसकोविया भी बहुत खुश हुई। मारिया की माता एक दिन बैठक में बैठी थी कि बुर्मीन ने कमरे में प्रवेश करके मारिया की बात पूछी। बुढ़िया ने उत्तर दिया, "वह फुलवारी में है, उसके पास जाओ। मैं यहीं तुम्हारे लिए प्रतीक्षा करूँगी।"

बुर्मीन ने जाकर देखा कि तालाब के पास एक कुंज के भीतर मारिया बैठी है। उसके हाथ में एक पुस्तक है। वह एक सादी पोशाक पहने हुए थी। वह बिलकुल उपन्यास की नायिका-सी लग रही थी। प्रथम पूछताछ के बाद, मारिया ने इच्छा करके ही बातें बन्द कर दीं। इस कारण दोनों का संकोच और भी बढ़ गया। अब एकाएक साफ़-साफ़ कुछ न कह डालने पर इससे छुटकारा मिलने का और कोई उपाय नहीं। बात इस तरह शुरू हुई। इस बुरे संकोच की परिस्थिति बदलने के ख्याल से बुर्मीन ने साफ़-साफ़ कहा कि वह मारिया के निकट अपना हृदय खोलने का अवसर बहुत दिनों से ढूँढ़ रहा था और अब अगर ध्यान से सुनाई हो, तो वह अपने हृदय की सब बातें कहे। मारिया ने पुस्तक बन्द करके, ध्यान से सुनने के छल से, आँखें नीची कर ली।

बुर्मीन ने कहा, "मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, हृदय से प्रेम करता हूँ। मेरा व्यवहार तुम्हारी बातें सुनने के लिए बैचेन रहता।"-मारिया को 'ला नावेल होलायेस' नामक उपन्यास के नायक सेंट प्रूक्स का प्रथम पत्र का स्मरण हुआ। “अब मैं अपनी नियति को रोक नहीं सकूँगा, वह समय बीत गया है। तुम्हारी स्मृति, तुम्हारा अतुलनीय सौन्दर्य आज से मृत्यु तक मेरे जीवन का दुख और सांत्वना होगी। अब एक कठोर गुप्त बात प्रकट करूँगा, वह हम लोगों के मिलने में भयानक बाधा होगी..."

मारिया ने बात काटकर कहा, “बाधा तो हमेशा रही। मैं कभी भी तुम्हारी पत्नी नहीं हो सकती थी।"

बुर्मीन ने झट उत्तर दिया, "मैं जानता हूँ कि तुम किसी से प्रेम करती थीं। लेकिन मृत्यु और तीन साल के शोक ने तुम्हारे हृदय में कोई न कोई तो परिवर्तन किया ही होगा। मारिया, मेरे हृदय की देवी! मेरी अन्तिम सांत्वना से मुझे वंचित करने की चेष्टा न करो। तुम मुझे सुखी कर सकतीं, मगर यह बात न बोलो-नहीं, नहीं, परमात्मा के लिए। मुझे बड़ा कष्ट होगा। हाँ, मैं जानता हूँ, मैं मन-ही-मन अच्छी तरह अनुभव कर रहा हूँ कि तुम मेरी हो सकती थीं, लेकिन मैं बहुत ही अभागा हूँ। मेरी शादी पहले ही हो चुकी है।"

मारिया ने चकित होकर उसकी ओर देखा। बुर्मीन बोला, "मैं विवाहित हूँ। तीन साल से अधिक हुआ मेरी शादी हो गई है, पर मैं नहीं जानता कि मेरी पत्नी कौन है? और कहाँ है? और कभी मिलूँगा या नहीं?"

मारिया कह उठी, “यह तुम क्या कह रहे हो? यह कैसी अद्भुत बात है। कहते जाओ, फिर?"

बुर्मीन कहने लगा, “1782 ईस्वी के आरम्भ में, मैं शीघ्रता से विलना जा रहा था। वहाँ हमारी सेना ठहरी थी। एक दिन सन्ध्या समय देर से घोड़ों के स्टेशन पर पहुंच कर, मैंने अपनी बग्घी में शीघ्र नए घोड़े जोत देने के लिए हुक्म दिया। उसी समय एकाएक बड़े जोर का बर्फ़ का तूफ़ान उठा। स्टेशन-मास्टर और एक कोचवान ने तूफ़ान के रुकने तक ठहर जाने के लिए कहा। मैंने उनकी सलाह सुनी, लेकिन एक अ कारण चंचलता ने मुझे घेर लिया। मानो कोई मुझे सामने की ओर ढकेल कर ले जा रहा था। उसी तूफ़ान में चल दिया। कोचवान की इच्छा हुई कि नदी के किनारे-किनारे चले, ' क्योंकि तब तीन मील रास्ता कम हो जाएगा। नदी का तट बर्फ से ढंका था। जिस मोड पर घूम जाने पर विलना शहर की सीधी सड़क मिलती, कोचवान ग़लती से उस मोड पर नहीं घूमा। हम लोग एक अनजान जगह में जा पड़े। उस समय भी वैसे ही जोरों से बर्फ़ का तूफ़ान चल रहा था। एक रोशनी नज़र आई। मैंने कोचवान को उसी रोशनी की ओर चलने के लिए कहा! हम लोगों ने एक गाँव में प्रवेश करके देखा कि एक लकड़ी के बने गिरजाघर से वह रोशनी आ रही थी। गिरजा खुला था। गिरजा के बरामदे के सामने कई 'स्लेज' गाड़ियाँ खड़ी थीं, और कुछ लोग बरामदे पर खड़े थे।

“अनेक स्वर एक साथ कह उठे-'यहाँ! यहाँ!' मैंने कोचवान से कहा- 'वहाँ घोड़े बढ़ा ले चलो।' गिरजा के सामने पहुंचते ही एक आदमी ने कहा-“अब तक तुम कहाँ रहे? दुलहिन को मूर्छा आ गई है। पादरी क्या करे, यह सोच नहीं पा रहा है। हम लोग थोड़ी ही देर में लौटने वाले थे। जल्दी बग्घी से उतर जाओ!"

“मैंने चुपचाप बग्घी से उतरकर गिरजा में प्रवेश किया। गिरजे में दो या तीन मोमबत्तियों की रोशनी टिमटिमा रही थी। देखा कि अँधेरे कोने में एक बेंच पर एक युवती बैठी है और एक युवती उसका माथा दबा रही है। शेषोक्त युवती ने कहा-“ईश्वर को धन्यवाद है कि तुम आखिर आ गए हो! और जरा देर होने पर इस युवती की मृत्यु का कारण होते!"

"बूढ़े पादरी ने कहा, “अब मैं विवाह की तैयारी शुरू कर दूं?"

“मैंने अनमने भाव से कहा-'शुरू कर दो, शुरू कर दो, पादरी बाबा!"

“युवती को खड़ा कर लोग उसे पकड़े रहे। बहुत सुन्दर लग रही थी। ओह! मेरी यह चपलता अक्षम्य है। मैं वेदी पर जाकर उसकी बग़ल में खड़ा हुआ। पादरी झटपट अपना काम खत्म करने लगा। तीन पुरुष और एक युवती दुलहिन को पकड़े हुए थे और सारी देर उसे लेकर वे व्यस्त रहे। हम लोगों की शादी हो गई। पादरी ने कहा, अपनी पत्नी को चुम्बन करो।' मेरी पत्नी ने अपना पीला गाल मेरी ओर बढ़ा दिया। मैं चुम्बन कर ही रहा था कि वह कह उठी, 'आह! यह तो वह नहीं है, वह तो वह नहीं है!' यह कहकर वह बेहोश हो गई। गवाह एक निगाह से मुझे देखने लगे। मैं उसी क्षण गिरजा से निकल पड़ा और कोचवान से कहा, 'बढ़ाओ।"

मारिया कह उठी, “क्या! और अपनी अभागी पली की दशा क्या हुई, यह तुम नहीं जानते हो?"

बुर्मीन ने कहा, “नहीं, मैं नहीं जानता। जिस गाँव में हमारी शादी हुई थी, उस गाँव का नाम तक मैं नहीं जानता हूँ। जिन घोड़ों के स्टेशन से मैंने यात्रा शुरू की थी, उस स्टेशन का नाम भी नहीं जानता हूँ। अपने इस दुष्ट परिहास की बात मैंने कुछ भी नहीं सोची, गिरजा से निकलकर ही मैं बग्घी में सो गया था। जब मेरी बग्घी तीसरे स्टेशन पर आई तब मेरी नींद खुली। जो नौकर मेरे साथ था, वह युद्ध के समय ही मर गया। इसलिए जिस युवती से मैंने यह चालाकी की थी, वह अभागी कौन है, यह अब खोज करने का कोई उपाय नहीं है।

" मारिया ने झट बुर्मीन का हाथ पकड़कर कहा-“आश्चर्य है! तो तुम वही हो! और तुम मुझे पहचान नहीं रहे हो?"

बुर्मीन का चेहरा पीला हो गया। वह मारिया के पैरों पर गिर पड़ा।

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