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महाशय! मैं आपसे क्षमा माँगती हूँ। मैं उसकी माँ हूँ। महाशय! हाँ, उसकी माँ। अपने बेटे की माँ। धोखे से मार डाला गया है।

मैं आपसे क्षमा माँगती हूँ। मुझे कुछ कम सुनाई पड़ता है। क्या वे इसके लिए दुखी हैं। महाशय! उनके तो दिमाग़ में ही नहीं आया कि यह सब कैसे हुआ। उन्होंने मुझे माफ़ कर दिया है और कहा है कि भविष्य में ऐसी बात न होगी।

महाशय! क्या आपको वह याद नहीं है।

महाशय, आप बुरा तो न मानेंगे अगर मैं बैठ जाऊँ। मैं बिलकुल थक गई हूँ। नौ बजे से यों ही चल रही हूँ। आधा शहर का चक्कर मैंने लगा डाला है। मैं थाने पर गई। वहाँ से लोगों ने मुझे बड़े थाने पर भेजा। वहाँ मुझे एक सज्जन मिले जिन्होंने वकील की राय से मुकदमा लड़ने को कहा। उनका नाम मैं भूल गई। उनका क्लर्क भी बड़ा भला आदमी था। उसने मुझे मजिस्ट्रेट के पास दरख्वास्त देने को कहा। इसलिए मैं यहाँ आई हूँ।

वह घटना! महाशय, मैं उसके सम्बन्ध में सब जानती हूँ। कुछ शैतान जिनकी पुलिस तलाश कर रही थी, एक घर में घुसे। वहाँ पुलिस पहले से ही मौजूद थी। पुलिस को देखकर वे छत पर चढ़ कर भाग गए। पुलिस ने उनका पीछा किया पर वे साफ़ निकल गए। मेरा बेटा हेनरी एक बनिए के यहाँ काम करता था। वहीं छत पर वह काम कर रहा था। पुलिस ने पीछे से देखा। समझा, यह भी उन्हीं शैतानों में से है। और बिना सोचे-समझे गोली चला दी जो सन्न् करती आकर मेरे बेटे के सिर में लगी।

महाशय! ओह! वह कितना भयानक दृश्य था।

पीछे जब लोग उसे उठाकर मेरे पास लाए तब भी उसके कोट की जेब में एक गोली पड़ी थी। महाशय! वह मर गया।

महाशय! हेनरी मेरा बेटा था। वह बड़ा भला लड़का था। दिन भर कमाता था, शाम को भी मेरे ही पास रहता था। मैंने उसे खुश करने के लिए काले और लाल चारखाने के पैन्ट और कमीज़ बनवा दी थी। पर उसे देखने के पहले ही वह... ।

मेरे दुख से सभी को दुख हुआ था। एक भले आदमी ने मेरे लिए दरख्वास्त लिखी थी। उसने ही उसे भेजा भी था। और थोड़ी देर बाद एक दूत आकर मुझे प्रेसीडेंट के पास ले गया था। ओह, वे कितने दयालु थे! मैं सीधे उनके कमरे के दरवाजे के पास चली गई।

मुझे देखते ही वह उठ खड़े हुए और ज्योंहि मैंने कहना शुरू किया, उन्होंने बीच में ही कहा, "बूढ़ी स्त्री, मैं सब जानता हूँ। मैं वचन देता हूँ, तुम्हें हर प्रकार की सहायता दी जाएगी, तुम्हें आजीवन पेंशन मिलेगी।" यही उनके शब्द थे। मैं कमरे में, एक मिनट से अधिक नहीं रुकी। तब से मैं आसरा देखती रही पर एक साल बीत गया और कुछ न हुआ।

बाद में उस घटना की जाँच की गई थी। इधर-उधर के जाने कितने प्रश्न पूछ गए। और अन्त में यह तय हुआ कि पुलिस को निरपराध पर गोली नहीं चलानी चाहिए थी।अपराधी का पता लगाया जा रहा था।

चार हफ्ते हुए, पता लगा है। एक विक्टर है, दूसरा कोई और दोनों को जेल भेज दिया गया। उन्हीं के लिए मैं आई हूँ। उन्हें बड़ा कष्ट होगा। मेरे भीतर माँ का हृदय धड़कता है; इसलिए जानती हूँ, मेरे मुहल्ले के भी सब आदमी जानते हैं कि प्रेसीडेंट ने कहा था, “बूढ़ी औरत तेरी सहायता की जाएगी, तू जो चाहेगी होगा। वे सब यह जानते हैं। मैं यहाँ चालीस साल से रह रही हूँ। और पिछले कई महीनों से तो वे बड़े ही दयालु रहे हैं। गली में जब मैं चलती हूँ तो दुकानदार ऐसा व्यवहार करते हैं मानो मैं कोई अमीर महिला होऊँ।

विक्टर की पत्नी बड़ी भली स्त्री है। मेरे पास आकर उसने विक्टर के लिए मैं जो कुछ भी कर सकती हूँ करने के लिए प्रार्थना की। मैंने इस सम्बन्ध में सोचा, बहुत सोचा। अब आप ही बताइए मैं उसकी कैसे सहायता करूँ। महाशय!

महाशय! मैं एक प्रतिकार करना चाहती हूँ, यदि आप मुझे करने दें। मुझे वह पेंशन मत दीजिए जिसको प्रेसीडेंट ने वचन दिया था, बदले में विक्टर को क्षमा कर दीजिए। मैं एक बूढ़ी स्त्री हूँ। मेरी उम्र साठ साल से अधिक है। अब मुझे रुपयों की क्या आवश्यकता? मैं रुपयों का क्या करूँगी। मैं जैसी हूँ-ठीक हूँ। तीन घंटे सुबह और पाँच घंटे शाम काम करके मैं काफ़ी पैदा कर लेती हूँ। जब कभी दावत वगैरह में तश्तरियाँ साफ़ करने के लिए बुला ली जाती हूँ तो कुछ फ़ालतू रुपया मिल जाता है। आप देखते ही हैं कि मेरे पास आवश्यकता की हर वस्तु है।

मेरे मुहल्ले के लोग यह सुनकर बड़े खुश होंगे कि मेरे पेंशन न लेने से विक्टर क्षमा कर दिया गया।

और विक्टर! वह बुरा आदमी भी तो नहीं है। यह तो उसकी नादानी थी। उसने तो कचहरी में सब सच-सच कह दिया। औरों की तरह वह झूठ नहीं बोला और यही कारण है कि उसे सज़ा भी मिली। उसे इसका दुख है, वास्तविक दुख है। बाहर आकर वह शीघ्र ही लड़की की शादी करेगा। विक्टर भी मेरे बेटे जैसा ही है।

महाशय! अरे क्या आप अब बाहर जा रहे हैं? आफ़िस का समय समाप्त हो गया क्या? आपको मैं धन्यवाद देती हूँ कि आपने अपना समय मेरी बातें सुनने में नष्ट किया। मैं आज सुबह नौ बजे से अपने पैरों पर ही दौड़ रही हूँ। इसलिए थकान के कारण समय का अन्दाज़ा न लगा सकी।

महाशय! तो आपने लिख लिया न? मैंने तो सब कुछ बतला दिया है? मैं जानती हूँ कि आप अपने भरसक पूरी कोशिश करेंगे। मेरे अब दुबारा आने की तो आवश्यकता नहीं है? मैं घर ही पर आपके उत्तर की आशा करूँगी। आपकी दयालुता के लिए मैं कैसे धन्यवाद दूँ। आपको हज़ारों लाखों बार धन्यवाद हैं।

महाशय! कौन से दरवाजे से मैं आई हूँ। आते समय मुझे इतने सारे दरवाजे और दालाने पार करनी पड़ी हैं कि मैं सब भूल गई हूँ। और मेरी आँखें भी अब कमजोर हो गई हैं।

आप महाशय! क्या यहाँ क्लर्क हैं? मेरे काम में देर।... मेरा काम अवश्य कर दीजिएगा। मैं अब जा रही हूँ। यह मैं इसलिए कहने आई थी कि मेरे पास माँ का हृदय है।

- ल्योन इयूजीन फ्रेपी

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