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William Shakespeare story in hindi - Hamlet 

किसी वक्त डेनमार्क के दूर देश में हैमलेट नाम का राजा राज करता था। उसकी एक परम सुंदर रानी थी। राजा रानी को तथा रानी राजा को हृदय से प्यार करते थे और  दोनों एक-दूसरे पर कुर्बान होने को तैयार रहते थे। उनके एकमात्र लड़के का नाम कुमार हैमलेट था, जो माता की अपेक्षा पिता का ही ज्यादा लाड़ला और प्यारा था।
 
एक दिन अनायास ही महाराज हैमलेट की मृत्यु हो गई और उसके छोटे भाई क्लेदियस ने आंखों में आंसू भरकर बड़े खेद से प्रजा को यह खबर सुनाई कि विषैले सांप के काटने से राजा की तत्काल मौत हो गई है। लोग राजा को अपने पिता के समान समझते थे इसलिए उसकी मौत पर सारी प्रजा में गहरा शोक छा गया। महाराज की मृत्यु पर अगर किसी को सबसे अधिक आघात पहुंचा तो वह था कुमार हैमलेट।

पिता के वियोग में रो-रोकर उसने अपनी आंखें सुजा लीं। रात को सोते वक्त पिता का नाम लेकर वह हड़बड़ाकर उठ बैठता। अभी उसकी आंखों से अपने प्रिय पिता के वियोग के आंसू भी न सूख पाए थे कि दो माह के थोड़े समय के बाद ही उसने एक और दुखद खबर सुनी कि उसकी माताने दूसरा विवाह कर लिया है। विवाह भी किससे, स्वर्गीय महाराज के छोटे भाई क्लेदियस से, जो रूप, रंग तथा गुणों में अप्रशंसनीय तो क्या, प्रत्युत रानी का पति बनने तथा राजा कहलाने के भी बिल्कुल अयोग्य था। इससे भी खराब बात, जो कुमार हैमलेट को लगी, वह थी उसकी मां की इस विवाह को करने में जल्दबाजी। 

कहां तो वह स्वर्गीय महाराज को अपने तन-मन से ज्यादा प्यार करती थी और कहां उसकी मृत्यु के केवल दो महीने के पश्चात ही उन्हें बिल्कुल भुलाकर दूसरा पति भी कर बैठी। यह देखकर कुमार हैमलेट के मन पर गहरी चोट लगी तथा मारे शर्म के उसका दिल डूब मरने को चाहने लगा।

एक दिन वह इसी चिंता में बैठा सोच रहा था कि इतनी जल्दी उसकी मां क्यों बदल गई कि सहसा उसके ध्यान में आया कि हो न हो, इस विवाह में भी कोई रहस्य है। हो सकता है कि मेरे चाचा तथा मेरी मां ने जान-बूझकर मेरे पिता की हत्या करवाई हो और झूठमूठ ही प्रजा में सांप के काटने का समाचार फैला दिया हो। 

मेरे पिता को डसने वाला विषैला सांप अन्य कोई नहीं, वह यही क्लेदियस है। राज्य के लोभ से उसने मेरे पिता को मरवा दिया है तथा मेरी माता को वश में करके अब मेरे राज्याधिकार पर भी फन फैलाए बैठा है। इन्हीं चिंताओं के कारण वह दिनोंदिन दुबला होने लगा। उसका फूल-सा चेहरा कुम्हलाकर पीला पड़ गया तथा वह बच्चों वाली चुलबुलाहट भूलकर बूढ़ों की भांति दिन-रात चिंताग्रस्त रहने लगा। 

इसी बीच एक दिन महल के पहरेदारों ने उसे बताया कि उन्होंने स्वर्गीय महाराज की प्रेतात्मा को महल के सामने हाजिर होते देखा है। वह तीन दिन लगातार हाजिर होती रही और हर बार वह चुपचाप आई और जुबान से बिना एक भी शब्द बोले चुपचाप चली गई, मगर उसकी चाल-ढाल से यही पता चलता था कि वह किसी को ढूंढ रही है तथा कुछ बात कहन यह सुनकर कुमार हैमलेट को विश्वास हो गया कि वह उसी के पिता की भटकती आत्मा है।

उसने आत्मा से भेंट करने का निश्चय किया तथा दूसरी ही रात को पहरेदारों के साथ उस जगह पर जा बैठा, जहां उन्होंने पिछली रातों में उसके पिता की प्रेतात्मा को देखा था। जब रात का अंधकार छा गया तथा महल की घड़ी ने दस बजाए तो एक पहरेदार ने महल के समक्ष वाले चबूतरे की तरफ इशारा करते हुए हैमलेट के कान में धीरे से
कहा--"भूत।"

कुमार को चांद की चांदनी में साफ दिखाई दिया कि उसके पिता की छाया लगभग साठ कदम की दूरी पर खड़ी उसी की तरफ टकटकी लगाकर देख रही है और जैसे कुछ कहना चाहती है। वही चाल, वही ढाल तथा वही वेश था, जो महाराज ने अपने अंतिम पलों में धारण किया हुआ था। उसे देखकर एकदम कुमार के मुंह से
निकल पड़ा--"पिताजी!" और वह पहरेदारों की चेतावनी की परवाह किए बिना ही पिता की प्रेतात्मा की तरफ लपका। 

वह छाया मुंह से एक शब्द भी न बोली तथा हाथों के इशारों ही इशारों से उसने कुमार को ऐसे अकेले स्थान पर चलने को कहा, जहां कोई भी उनकी बात को न सुन सके। यह देखकर एक पल के लिए कुमार के
मन में संदेह हुआ कि कहीं यह कोई मायावी प्रेतात्मा न हो तथा मेरे पिता के रूप में प्रकट होकर कहीं मुझे छलना न चाहती हो, दूसरे ही क्षण उसकी अंतरात्मा ने अंदर से गवाही दी कि यह तेरे पिता की ही भटकती आत्मा है और कुमार निडर होकर उसी तरफ चलने लगा, जिस तरफ छाया उसे ले जाना चाहती थी। 

जब वे एक बिल्कुल एकांत स्थल में पहुंचे तो छाया ने एक बार चारों तरफ नजर घुमाकर देखा कि कोई उनकी बातें सुन तो नहीं रहा और फिर कुमार की तरफ झुककर बोली 'कुमार!' कुमार ने देखा कि स्नेह तथा लाड़ से भरा यह वही स्वर और संबोधन था, जिसके जरिए उसके स्वर्गीय पिता जब बहुत उदास होते तो उसे पुकारा करते थे। 

इससे कुमार का हौसला बढ़ा तथा उसने साहस करके पूछा- पिताजी! मैं जानना चाहता हूं कि किस बात ने आपको परलोक के खामोश वातावरण से लौटकर फिर इस दुनिया में आने को मजबूर किया है? आपके मन की उस अशांति तथा इस भटकने की क्या वजह है?"

छाया ने फुसफुसाते लहजे में कहा"मेरी रहस्यमयी हत्या।" कुमार को जिसका शक था, उसी की पुष्टि सुनते हुए उसने एकाएक चौंककर "क्या, हत्या?

छाया--"हां, हत्या। अपनी हत्या के इसी रहस्य को बताने के लिए तब से मेरी आत्मा भटक रही है। आज वह रहस्य तुम्हें बताकर मेरी आत्मा को थोड़ी शांति कुमार ने सहसा आवेश में आकर कहा"किस दुष्ट ने आपकी..."
छाया ने उसकी बात काटकर कहा 'कुमार, जोश में मत आओ। 

धैर्य से सुनो-अपनी मौत के दिन प्रातःकाल मैं उसी स्फूर्ति से जागा था, जिससे कि बसंत के ऊषाकाल में गुलाब की एक कली खिला करती है। उठकर मैं प्रतिदिन की भांति नहाया-धोया और दरबार के कार्य से निबटकर महल के उसी बाग में सुस्ताने के लिए जालेटा, जिसमें अभी मेरी तुमसे भेंट हुई थी। वहां के झोंकों के ठंडे स्पर्श से पलभर में मेरी आंख लग गई और मैं स्वप्नलोक में विहार करने लगा था। 

तभी तुम्हारा चाचा अर्थात् मेरा छोटा भाई क्लेदियस दबे पैर उसी बाग में आया तथा चुपके से उसने मेरे कान में किसी विषैले तेल की सिर्फ दो बूंद टपका दीं। बूंद के कान में टपकते ही मेरी नस-नस जल उठी और मेरा मन एक बार में ही सौ बार धड़ककर गतिहीन हो गया। 

इस तरह एक क्षण में ही उस जालिम ने मुझे अपने राज्य, अपनी पत्नी तथा अपने प्यारे पुत्र से छीनकर अंधकार की दुनिया में जा धकेला, जहां मेरी आत्मा को गति नहीं और मेरे दिल को शांति नहीं।

कुमार! तुम्हें मुझसे तनिक भी स्नेह है तो..। 
'कुमार- "तो मैं इसका बदला लेकर ही छोडूंगा।
छाया--"हां। तभी मेरी आत्मा को शांति मिलेंगी, मगर एक बात याद रखना कि अपनी माता के अपराधों को क्षमा करके उसे भगवान के इंसाफ पर छोड़ देना।" यह कहकर महाराज की प्रेतात्मा अंतर्धान हो गई।

उसी पल से कुमार हैमलेट अपने चाचा से बदला लेने की फिराक में रहने लगा। हैमलेट जैसे सरल हृदय कुमार के लिए किसी की हत्या जैसा जाल रचना कोई आसान बात न थी। फिर, क्लेदियस के गुप्तचर हर वक्त और हर जगह उसका पीछा किया करते तथा उसकी छोटी से छोटी बात को क्लेदियस तक पहुंचा दिया करते थे। शक की इस चारदीवारी से बचने के लिए कुमार को एक उपाय सूझा-वह जान-बूझकर पागल बन बैठा। चाल-ढाल, वशभूषा तथा बातचीत में उसने पागलपन का अभिनय (नाटक) इस निपुणता से किया कि स्वयं क्लेदियस तथा रानी को भी पूरा विश्वास हो गया कि कुमार का दिमाग ठिकाने पर नहीं रहा और क्लेदियस ने उसकी जासूसी कराना भी छोड़ दिया था। 

क्लेदियस के दरबार में एक वजीर था, जिसकी पुत्री ओफीलिया से कुमार प्यार करता था। सबने यही समझा कि प्रेम के आवेश ने ही कुमार को पागल बना दिया है। उनकी इसी समझ की ओट में और क्लेदियस को चकमा देने के विचार से कुमार ने एक ऊट-पटांग खत ओफीलिया के नाम लिखा, जिसकी उल्टी-सीधी भाषा से यही जाहिर होता था कि वह अब भी ओफीलिया को दिल से प्रेम करता है और प्यार की बीमारी ने उसे पागल बना दिया है। ओफीलिया ने यह खत अपने पिता को दिखाया और उसके पिता ने क्लेदियसको। खत की भाषा को पढ़कर क्लेदियसका कुमार के लिए रहा-सहा संदेह भी जाता रहा और उसने उसकी चौकसी कराना बिल्कुल छोड़
दिया। अब कुमार सब कहीं जाने तथा सब कुछ करने को स्वतंत्र था। 

उसने छिपे-छिपे क्लेदियस की मौत का जाल रचना आरंभ किया। संयोगवश उन्हीं दिनों एक ड्रामा मंडली वहां आई। कुमार ने भी मंडली का एक ड्रामा देखा, जिसमें एक राजा की हत्या का मंजर दिखाया गया था। हत्या का वह दृश्य इतना स्वाभाविक बन गया था तथा नटों ने उसे इस निपुणता से खेला था कि राजा की हत्या होते वक्त दर्शक लोग 'त्राहि-त्राहि' चिल्ला उठे थे तथा कई तो बेहोश तक हो गए थे। 

उस नजारे को देखकर कुमार अपने पिता की हत्या स्मरण हो आई तथा साथ ही उसे यह भी विचार आया कि इसी नाटक की कथा में कुछ परिवर्तन करके स्वर्गीय महाराज हैमलेट की मौत का दृश्य रंगमंच पर दिखाया जाए तथा उसे देखने के लिए क्लेदियस को भी बुलाया जाए। देखें नाटक का उस पर क्या असर होता है। 

अगर वह बिल्कुल पत्थरदिल न हुआ और उसमें थोड़ी-सी सहृदयता शेष हुई तो अपने हाथों से किए गए कांड का अभिनय अपनी आंखों के सामने देखकर वह अपने आपको संभाल न सकेगा तथा इससे उसके हत्यारा होने का मुझे आंखों देखा सुबूत मिल जाएगा। यही सोचकर उसने तीसरे ही दिन ड्रामा मंडली को राजभवन में एक नाटक खेलने के लिए कहा, जिसकी कथा संक्षेप में इस तरह थीवियना नगरी में एक गुंजाक नाम का राजा था। उसकी रानी बेपतिस्ता उसे प्राणों से भी ज्यादा प्यार करती थी। राजा का एक चचेरा भाई भी था, जिसका नाम था लोशियन। 

वह मन ही मन राजा के ऐश्वर्य तथा उसकी रूपवती रानी को देखकर जला करता था। एक दिन राजा गुंजाक अपने महल की एक फुलवारी में सोया हुआ था कि लोशियन ने दबे पैर जाकर राजा के कान में विषैले तेल की दो बूंदें टपका दी, जिसके फलस्वरूप राजा ने उसी पल तड़पकर प्राण दे दिए और लोशियन ने राजा की पत्नी को काबू में करके उसके सिंहासन पर अधिकार जमा लिया। वस्तुत: यह क्लेदियस के अपने गुनाह की सच्ची कहानी थी। 

केवल व्यक्तियों के नाम बदल दिए गए थे। जब नाटक आरंभ हुआ और रानी बेपतिस्ता ने गुंजाक के समक्षक अपने प्यार की सौगंध उठानी शुरू की तो इस वार्तालाप को सुनकर रानी के चेहरे का रंग उड़ने लगा था। 

आगे चलकर जब नाटक में एक फुलवारी का नजारा दिखाया गया, जिसमें एक ओर राजा गहरी नींद में सोया था और दूसरी तरफ से लोशियन हाथ में विषैले तेल की शीशी लेकर राजा के कान के पास पहुंचा तो इस नजारे को देखकर क्लेदियसका मन डांवाडोल हो गया, जिसे वह अब तक एक छिपा रहस्य मान रहा था, उसी रहस्यभरी हत्या का खुलेआम ड्रामा देख देर तक न बैठ रह सका और बीमारी का बहाना करके आधे ड्रामे से ही उठकर चला गया। 

कुमार हैमलेट ने इसी अभिप्राय से यह नाटक खिलवाया था और नाटक के से ही वह टकटकी लगाकर क्लेदियस के मुंह पर आते-जाते भावों को भांपता रहा इसलिए जब उसने क्लेदियसको बेचैनी की हालत में अधूरे नाटक से ही उठकर जाते देखा तो पास बैठे अपने एक दोस्त के कान में कहा- "देखा, क्लेदियस के दिल का चोर।"
 दोस्त ने कहा- "यही हत्यारा है।

"कुमार ने कहा - 'चुप रहो। यहां कुछ कहने का अथवा करने का समय नहीं। जब वक्त आएगा तो मैं तुम्हें कहूंगा।"

नाटक खत्म हुआ तो रातोंरात ही रानी ने कुमार को एक जरूरी संदेश भेजकर अपने पास बुलवा भेजा। कुमार को यह समझते देर न लगी कि इसमें भी क्लेदियस की ही साजिश है। उसे मां पर भी क्रोध आ रहा था, मगर शीघ्र ही उसे पिता की प्रेतात्मा के ये शब्द याद हो आए कि माता के अपराध को माफ कर देना। कुमार यह सोचकर उसी क्षण मां से मिलने के लिए चल दिया। जिस बात का उसे पहले से ही अंदाजा था, 

मां ने उसे ही कहा- "कुमार, अपने पिता के लिए तुम्हारा यह व्यवहार ठीक नहीं।'
 
कुमार ने कड़ककर पूछा- “किस पिता के लिए?" 

मां- "महाराज क्लेदियस के लिए। अब वे ही तुम्हारे पिता हैं।" ये अल्फाज सुनकर कुमार की आंखों से क्रोध की चिंगारियां निकलने लगीं। 

उसने क्रोध से होंठ चबाते हुए कहा- "मां, तुम्हारे मुंह से उस पुरुष के लिए, जो स्वर्गीय महाराज का हत्यारा है, ये शब्द सुनकर मेरा सिर लज्जा से झुका जा रहा है। पिता' जैसा पवित्र नाम क्लेदियस जैसे नीच आदमी को देने से पहले मैं तलवार से उसके टुकड़े क्यों न कर दूं।" 

कुमार को गुस्से में आया देखकर रानी को कुछ और कहने का साहस न हुआ तथा वह वहां से उठकर जाने लगी। कुमार ने उसका हाथ पकड़कर उसे बैठा लिया और कहा-"मां, मैं तब तक तुम्हें जाने नहीं दूंगा, जब तक तुम मेरे एक सवाल का उत्तर न दे दो।"

रानी ने हाथ छुड़ाकर भागना चाहा, मगर कुमार ने उसे दृढ़ हाथों से पकड़कर बैठा लिया। रानी ने भय से 'बचाओ बचाओ' चिल्लाना शुरू कर दिया। रानी की चिल्लाहटसुनकर पर्दे के पीछे से, बाहर की तरफ से भी किसी पुरुष ने बचाओ-बचाओ' काशार मचाया। कुमार को लगा कि हमारी बातें छिपकर सुनने के लिए क्लेदियस ही पर्दे के पीछे बैठा होगा और अब रानी को चिल्लाते देखकर वह भी चिल्लाने लगा है। 

यह सोचकर कुमार रानी को कमरे के एक कोने में धकेलकर बिजली की फुर्ती से तलवार लेकर पर्दे की ओर झपटा। तलवार के पड़ते ही किसी के 'हाय' कहने तथा धड़ाम से नीचे गिरने का अल्फाज सुनाई दिया। 

कुमार ने झटपट आगे बढ़कर देखा तो वह क्लेदियसन था अपितु उसकी प्रियतमा ओफीलिया का पिता था, जो क्लेदियस की खुशामद करने के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर छिपकर कुमार की बात सुनने "इस अपराध के लिए पोंछते के लिए आया था। कुमार के मुंह से सिर्फ इतना निकला- ओफीलिया मुझे कभी माफ न करेगी। ईश्वर उसके पिता की आत्मा को सद्गति दे। यह कहकर कुमार रानी की तरफ बढ़ा। 

मारे भय के रानी की बोलती बंद हो चुकी थी और वह अचेत होकर जमीन पर गिरना ही चाहती थी कि कुमार ने अपने हाथ का सहारा देकर उससे कहा- "मां, डरो नहीं। मैं तुम्हारा पुत्र कुमार हैमलेट हूं और स्वर्ग की देवी के समान तुम्हारी पूजा करता हूं। डरावना आदमी तो स्वयं क्लेदियस है, जिससे तुम्हें डरना चाहिए। वह स्वर्गीय महाराज का हत्यारा है। उसने उनके लहू से हाथ रंगकर डेनमार्क के सिंहासन पर हक जमा लिया है और अब हमारे पुरखों की इज्जत के साथ अठखेलियां करना चाहता है।

" रानी मूक होकर सुनती रही। सामने ही एक दीवार पर महाराज हैमलेट का फोटो टंगा था। कुमार ने उसी ओर संकेत करके कहा-"वह देखो मां, पिताजी हमारी तरफ देखकर मुस्करा रहे हैं। मानो मां तथा बेटे के इस मिलन पर वे भी गद्गद् होकर
हमें गले लगा लेना चाहते हों।" ये अल्फाज कुमार ने इस दर्द-भरे स्वर में कहे कि रानी का मन मोम की तरह पिछल गया और उसकी आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे। कुमार ने उसके आंसू हुए कहा-"मां, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। तुम आशीर्वाद दो..." कुमार ने अभी इतना ही कहा था कि कमरे के दूसरे कोने से गंभीर स्वर में सुनाई दिया- '...कि मैं अपने पिता के हत्यारे से बदला ले सकू।"

कुमार ने हैरान होकर उस ओर देखा तो उसके पिता की प्रेतात्मा शोकभरी मुद्रा मेंउसके समक्ष खड़ी थी। उसे देखकर कुमार के मुंह से एक चीख निकल गई तथा उसने उसी तरफटकटकी लगाते हुए कहा- "पिताजी!"
इसके जवाब में प्रेतात्मा ने उसी धैर्य के साथ कहा- की याद दिलाने आया हूं। तुम उसे कहीं भूल तो नहीं गए?"
कुमार ने कहा- "नहीं पिताजी।जान रहते मैं आपकी आज्ञा को कभी भूल नहीं। मैं उस हत्यारे से बदला लेकर रहूंगा।
" प्रेतात्मा--"मैं फिर तुम्हें याद दिलाता हूं कि बदला लिए बिना मेरी आत्मा भटकती रहेगी। क्लेदियस की मौत से ही मेरी आत्मा को सजी शांति हासिल हो सकती है।" यह कहकर प्रेतात्मा गायब हो गई। 

रानी ने कुमार को कांपते तथा दीवार की ओर टकटकी लगाए देखा किंतु इसके अतिरिक्त उसे कुछ न दिखाई दिया। हां, जितने समय प्रेतात्मा कमरे में रही, उतनी देर उसे अपने चारों तरफ सर्दी की एक लहर के साथ-साथ कंपकंपी का गुमान होता रहा। कुमार ने महाराज की प्रेतात्मा के विषय में रानी को कुछ न बताया, सिर्फ उसे क्लेदियस से होशियार रहने की चेतावनी देकर गली के अंधकार में कहीं गुम हो गया।

"कुमार! मैं तुम्हें तुम्हारे फर्ज सकता। पल पल की खबर गुप्तचरों के जरिए क्लेदियस के पास पहुंच रही थी। उसने दूसरे दिन कुमार को विदेश भेजने का इंतजाम कर लिया और बहाना बनाया कि राजपुरुष की हत्या करने के कारण प्रजा के लोग कुमार से बहुत चिढ़े हुए हैं और डेनमार्क में रहते हुए उसके प्राणों का डर है। उसने प्रातःकाल ही कुमार को अपने दो अफसरों के साथ जहाज पर चढ़ाकर विदेश भेज दिया तथा गुप्त रूप से अफसरों को समझा दिया कि वक्त पाकर वे समुद्र में ही कुमार की हत्या कर दें। 

जाको राखे साइयां, मार सके न कोय। कुमार का जीवन अभी शेष था इसलिए कुछ ऐसी बात बनी कि किनारे से कुछ दूर जाते ही उस जहाज पर समुद्री डाकुओं ने हमला कर दिया। इसी मुठभेड़ में वे दोनों अफसर मारे गए तथा डाकुओं ने कुमार को पहचान कर उसे बड़े सम्मान के साथ वापस डेनमार्क पहुंचा दिया। 

जहाज से नीचे पैर रखते ही कुमार ने जो पहली खबर सुनी, वह यह कि उसकी प्रियतमा ओफीलिया अपने पिता के वियोग को न सहकर इस विश्व से चल बसी है और उसकी अंत्येष्टि क्रिया की जा रही है। कुमार पागलों की भांति बेतहाशा भागता हुआ वहां जा पहुंचा, जहां ओफीलिया की अर्थी रखी थी तथा उसका भाई उसे दफनाने ही वाला था। क्लेदियस, रानी तथा दूसरे दरबारी भी वहां उपस्थित थे। 

उस भीड़ को चीरता हुआ कुमार अर्थी के पास पहुंचा तथा बेसुध-सा होकर अर्थी पर गिर पड़ा। ओफीलिया के भाई ने देखा कि यही वह कुमार है, जिसने मेरे पिता का खून किया और मेरी बहन की मृत्यु की भी यही वजह है तो वह बदला लेने के लिए कुमार पर झपट पड़ा। यह देखकर क्लेदियस मन ही मन बड़ा खुश हुआ। उसने उस वक्त तो उन दोनों को छुड़ा दिया किंतु बाद में उन दोनों का द्वंद्व युद्ध होना निश्चित करवा लिया। यह भी क्लेदियस का एक नीचता-भरा जाल था। 

उसने ओफीलिया के भाई को भड़काकर उसे इस बात पर राजी कर लिया कि द्वंद्व युद्ध में नियम के मुताबिक कुमार तो नकली तलवार से लड़ने आएगा मगर वह विष में बुझी हुई असली तलवार लेकर जाए और मौका पाते ही कुमार का वध कर दे। द्वंद्व का वक्त निश्चित हो गया और नगर के सहस्रों नागरिक इस युद्ध को देखने के लिए इकट्ठे हुए। 

ओफीलिया के भाई ने शुरू-शुरू में जान-बूझकर अपने वार खाली दिए तथा कुमार अपनी जीत होती देखकर मारे प्रसन्नता से उछल रहा था तो अपनी विषैली तलवार से कुमार पर उसने भयानक वार किया। कुमार अपनी ओर से संभला बहुत संभला, फिर भी तलवार की एक खुरचन उसके जिस्म पर लग गई। 

विष ने अपना असर दिखाना शुरू किया और कुमार की देह आग की तरह जलने लगी। यह देखकर कुमार क्रोध से पागल हो उठा और उसने अपने दुश्मन के हाथ से उसी की तलवार लेकर उसकी छाती में घुसेड़ दी। यह देखकर रानी बुरी तरह घबरा गई और उसने अपनी घबराहट मिटाने के लिए पास पड़े शरबत के प्याले को मुंह से लगा लिया। 

वास्तव में यह प्याला क्लेदियस ने खास तौर से कुमार के लिए तैयार करवाया था और उसमें वही विष घोला गया था, जिसकी दो बूंदें उसने महाराज हैमलेट के कान और  में टपकाई थीं। उसने सोचा था कि अगर दुर्भाग्यवश कुमार उस जंग से जीवित बच निकला तो उसे यह प्याला पिलाकर हमेशा के लिए अपने रास्ते के कांटे को निकाल
फेंकूगा। 

इसी अभिप्राय से उसने वह प्याला अपने पास रखा था तथा रानी को यह बात कहनी उसे याद न रही थी। प्याले को मुंह से लगाते ही रानी ने दो बार 'हाय जहर, हाय जहर' कहा और निर्जीव होकर वहीं लुढ़क गई।
कुमार ने अपनी आंखों से पिता की अर्थी देखी थी तथा अब अपनी आंखों से माता को भी तड़पते देखा। 

उसके अपने शरीर में भी विष फैल चुका था और उसे यकीन हो गया था कि अब वह कुछ क्षणों का ही मेहमान है, फिर वह अपने कुल के हत्यारे को जीवित क्यों छोड़े? वह बिजली के वेग से क्लेदियस पर झपटा तथा वही विषैली
तलवार उसने उसकी भी छाती में चुभो दी। तड़पने से पहले ही क्लेदियस मरकर वहीं ढेर हो गया था। 

उसके कुछ ही पलों के बाद कुमार ने भी प्राण त्याग दिए, मगर तब तक उसके मन में इस बात की आरजू न रही थी कि उसने अपने पिता के हत्यारे से बदला नहीं लिया। वह उसकी आंखों के समक्ष लहू से लथपथ पड़ा धरती को चूम रहा था। इस दृश्य से कुमार के दिल को असीम शांति मिली तथा महाराज हैमलेट की भटकती आत्मा को भी।

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