इस कहानी के लेखक लायम ओ' फ्लैर्टी हैं। यह कहानी हमे बताती है की कैसे एक नौजवान समुद्री
पक्षी अपने परिजनों की सहायता से अपने डर पर काबू पाकर अपना पहला उड़ान भरता है ।
कहानी को शुरू करते है ।
नौजवान समुद्री पक्षी अपने चट्टानी ताक़ में बैठा था। उसके दोनों भाई और बहन पहले ही उड़ चुके
थे। उनके साथ उड़ने में उसे भय लगता था। अपने ताक के द्वार तक किसी प्रकार जाकर जब उसने
उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ाए तो उसे बहुत भय लगा।
सामने विस्तृत समुद्र था। कितना नीचे? मीलों नीचे। उसे लगा कि उसके पंख उसे सँभालने के लिए
काफी मजबूत नहीं हैं और वह फिर लौट कर ताक़ के कोने में जा छिपा जहाँ वह रात सोया करता
था।
उसके भाइयों और बहन के पंख उससे छोटे थे परन्तु जब ताक़ के किनारे पहुँच कर आकाश में
उड़ने के लिए उन्होंने अपने पंख फड़फड़ाए तब भी उन्हें देखकर वह उड़ने का साहस न संचित
कर सका। उसे अपनी यह प्रथम उड़ान बड़ी निराशाजनक प्रतीत हुई।
उसके माँ-बाप उसे पुकारते हुए, डाँटते हुए और यह कहते हुए आए कि यदि वह अपने ताक़ से
बाहर नहीं उड़ेगा तो उसे खाने बिना मरना होगा। परन्तु उसके लिए उड़ना असम्भव था।
यह बात चौबीस घंटे पहले की है। तब से उसके पास कोई नहीं आया। दिन-भर
वह अपने माँ-बाप को अपने बहन-भाइयों के साथ आसमान में उड़ते हुए देखता रहा;
वे उन्हें उड़ना, पानी में फिसलना और मछली के लिए गोता लगाना सिखा रहे थे। उसने
अपने भाई को पहली मछली पकड़कर खाते देखा। वह एक चट्टान पर खड़ा था और
उसके माँ-बाप खुशी से चिल्ला रहे थे। तमाम दिन वे लोग पठार के ऊपर चोटी के दूसरी
ओर उड़ते हुए उसकी कायरता के लिए उस पर व्यंग्य करते रहे।
सूरज ऊपर चढ़ आया था; द्वार दक्षिण की ओर होने के कारण उसका ताक़ धूप
से तपने लगा था। पिछली शाम से खाना न मिलने के कारण उसे और भी गर्मी महसूस
हो रही थी। तभी उसे अपने ताक़ के एक कोने में मछली की दुम का एक टुकड़ा मिल
गया। खाने के लिए अब वहाँ कुछ भी नहीं बचा था। तिनकों के घोंसले का, जिसमें
वह और उसके भाई-बहन पोषित हुए थे, कोना-कोना उसने छान डाला। सूखे हुए अंडे
के छिलकों को भी उसने अपनी चोंच से काट-काटकर खाना चाहा। उसे ऐसा जान पड़ा
जैसे वह अपने को ही खा रहा हो। चट्टान के रंग के अपने भूरे शरीर को हिलाता हुआ
और भूरे पैरों को सफ़ाई के साथ इधर-उधर रखता हुआ वह ताक़ में बिना उड़े हुए
अपने माँ-बाप के पास पहुँचने का उपाय खोजने के लिए टहलता रहा। परन्तु हर तरफ़ उसका ताक एक ढालू
चोटी के रूप में समाप्त हो जाता था, जिसके नीचे विस्तृत समुद्र था। उसके और उसके मां-बाप के
बीच एक खड्ड था।
यदि वह चोटी के सामने उत्तर की ओर चले तो वह उन तक जरूर पहुंच सकता है। पर वह चले
किस वस्तु पर? कोई चट्टानी फर्श था नहीं और वह उड़ सकता नहीं था। ऊपर कुछ दिखाई नहीं
पड़ता था।
चट्टान बहुत ढालू थी और उसकी चोटी शायद समुद्र की निचाई से भी कहीं अधिक ऊँची थी।
अपने चट्टानी ताक के सिरे पर आकर उसने अपने एक पैर को पंखों में छिपा कर दूसरे पैर पर खड़े
होकर एक आँख बन्द कर ली, फिर दूसरी बन्द की, जैसे वह सोने का बहाना कर रहा हो। फिर भी
उन्होंने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।
उसने देखा कि उसके भाई-बहन पठार पर अपने सिर को गर्दन में छिपाए हुए ऊँघ रहे थे।
उसका पिता अपनी सफ़ेद पीठ पर अपने पंखों को चोंच से सँवार रहा था। केवल उसकी माँ उसकी
ओर देख रही थी।
वह पठार पर एक ऊँची जगह पर खड़ी थी; उसका सफ़ेद वक्षस्थल आगे की ओर निकला था। पैरों
के पास पड़ी हुई मछली को वह बीच-बीच में चोंच से नोंच लेती और फिर अपनी चोंच के दोनों सिरों
को चट्टानों में पोंछ लेती।
भोजन को देखकर वह पागल हो उठा। इस तरह भोजन को नोंच लेना और फिर चोंच साफ़ करने
के लिए चट्टान से पोंछ लेना कितना सुखद होगा! उसके मुख से एक धीमी चीख निकल
गई उसकी माँ भी बोली और उसकी ओर देखा।
“गा, गा, गा," उसने माँ से कुछ खाने को लाने के लिए प्रार्थना की। 'गाव-ऊल-अह' माँ उत्तर में
बोली। पर वह पुकारता रहा। फिर कुछ क्षण बाद उसने खुशी के साथ आवाज़ की।
उसकी माँ ने एक मछली पकड़ी और उसे लिए उसकी ओर उड़ी आ रही थी। आगे की ओर झुक
कर अपने पैर को चट्टान पर पटकते हुए वह माँ के निकट पहुँचने का प्रयत्न कर रहा था।
पर जब माँ ठीक उसके सामने घोंसले के पास आ गई तो वह रुक गई; उसके पैर नीचे को झूल रहे
थे; पंख स्थिर थे।
मछली उसके बिलकुल निकट थी। क्षण-भर वह आश्चर्य के साथ सोचता रहा कि माँ उसके निकट
क्यों नहीं आती। फिर भूख से पागल होकर वह मछली पर झपट पड़ा।
एक चीख के साथ वह शून्य में नीचे की ओर गिरने लगा। उसकी माँ ऊपर की ओर उड़ गई। उसने
नीचे से अपनी माँ के पंखों की सरसराहट सुनी। सहसा उसे इतना भय लगा कि उसका रक्त
जम-सा गया।
उसे कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा था। पर वह स्थिति क्षण-भर ही रही।
दूसरे ही क्षण उसने अनुभव किया कि उसके पंख फैल गए। उसके पंख उसके सीने की ओर पेट
तक पहुँचे। उसने अनुभव किया कि उसके पंख हवा को काट रहे हैं। वह नीचे की ओर पर आर्ग
को उड़ रहा था।
उसका भय जाता रहा। उसे चक्कर-सा आता जान पड़ा। फिर उसने अपने पंख फड़फड़ाये और
आसमान की ओर उड़ चला। खुशी की आवाज़ कर वह हवा के विरुद्ध उड़ रहा था। 'गा, गा, गा',
'गाव-ऊल-अह' उसकी माँ उसके निकट आई; उसके पंख उसको छू गए।
उसके पंखों से ज़ोर की आवाज़ हो रही थी; खुशी में वह फिर चिल्लाया तब उसका पिता बोलता
हुआ उसके ऊपर उड़ने लगा।
उसने देखा, उसके दोनों भाई और बहन उसके चारों ओर उड़ते हुए कभी ऊपर, कभी नीचे
जाते; कभी ठहर जाते हैं।
सहसा वह यह भूल गया कि इसके पहले वह उड़ना नहीं जानता था। खुशी से
चीखते हुए वह भी ऊपर-नीचे उड़ने लगा।
अब वह समुद्र के निकट था, समुद्र के ठीक सामने वह उड़ रहा था। नीचे विस्तृत नीला समुद्र था;
जिसमें लहरें नहीं उठ रही थीं। उसने अपनी चोंच इधर-उधर घुमाई और चीखा।
उसके भाई-बहन इस नीले फ़र्श पर उतर चुके थे। चिल्लाते हुए आने का इशारा कर रहे थे। समुद्र
पर खड़े होने के लिए उसने अपने पैर गिरा दिए।
उसके पैर पानी में डूब गए। डर से चीखकर उसने ऊपर उड़ने का प्रयत्न किया। पर
भूख और थकान के मारे वह कमज़ोर हो गया था। उससे ऊपर न उड़ा गया। इस विचित्र परिश्रम ने
उसे थका दिया था। उसके पैर पानी में डूब गए और उसका पेटपानी से छू गया; फिर आगे वह न
डूबा ।
वह पानी पर तैर रहा था। उसके चारों ओर उसके परिवार वाले उसकी प्रशंसा करते हुए चीख रहे
थे। उनकी चोंचें उसे मछली के टुकड़े दे रही थीं। उसने अपनी पहली उड़ान पूरी की।
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