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 hindi story - पहाड़ी नदी

hindi story - पहाड़ी नदी



इस कहानी के लेखक डॉ. जॉन चैमर्सहैं । यह कहानी स्कॉटलैंड

 में लिखा गया हैं यह कहानी हमे बताती है की कैसे माता पिता अपने बच्चे के लिए अपनी 

जान की परवाह नहीं करते हैं । तो कहानी  को  शुरू करते  है ।


1868 की हेमन्त में जब दिन ढल रहा था, पर धूप भी काफी तेज थी, मैं दक्षिण टाइरल में 

अपनी छुट्टी बिता रहा था। 

एक पुल पार करते हुए मन देखा कि पास वाली पहाड़ी से रोवेरेडो को सड़क जाती है। 

आज सुबह ही तो मैं ट्रेंट से रवाना हुआ था । 

ट्रेंट शहर इटली के शहरों में अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। इसके चारों और आल्प के जंगल 

हैं। रोवरेडो से यह लगभग बारह मील दूर है। मौसम आज सुबह से ही सूना सूना हो 

रहा था। सुबह से चलते-चलते इस समय मैं इसी पुल पर विश्राम की साँस लेने को ठहर 

गया था। यहाँ से आगे वाली घाटी का सुहावना दृश्य साफ दिखाई पड़ रहा था।

रेपीडलेना के हर ओर से कुछ-न-कुछ नहरें एडिज़ नदी में मिलती थी। उन सभी के

 किनारे पथरीले थे। सूर्य की किरणें उन पर पड़ कर अपूर्व सौन्दर्य उत्पन्न कर रही थी।

पुल पर से उतरते समय प्रकृति की इस सुन्दर शोभा को देखकर हृदय नाच उठता था।

इस स्थान की सुन्दरता, हेमन्त के फूलों को छू कर बहती हुई सुगन्धित वायु , चिङियों का 

चहकना दक्षिणी टाइरल की खास चीज़ थी। नदी के पानी के प्रवाह से उन

होनेवाला मधुर संगीत किनारे के घास के मैदानों के कीड़ों को मस्त बनाने को काफ़ी था। 

इन दृश्यों को देखकर मैं अपने आप से जैसे खोया-ता जा रहा था कि तभी एक 

बूढ़े को देखकर मैं जैसे जाग सा पड़ा। बूढ़ा मेरे बिलकुल पास आ गया था। उसके बाल 

बिलकुल सफ़ेद थे।

उसे देखकर मैंने अपना हाथ उठाकर उसे नमस्कार किया। उत्तर में मुझे एक 

विनीत नमस्कार मिला । मुझ पर उस बूढ़े का कुछ प्रभाव-सा पड़ा और मैंने उससे पूछा 

कि वह कितने दिनों से इस शान्त और सुखदायी घाटी में रह रहा है। 

"मैं महाशय, यहाँ तब से रह रहा हूँ,” उस बूढ़े ने उत्तर दिया, "रेवेरेडो को छोडने  के लिए फ्रांसीसी 

वाध्य हो गए थे। उसे अब सत्तर साल हो गए हैं। 

यह स्थान रहने के  लिए तो बड़ा अच्छा है, लेकिन सदा ही यह ऐसा शान्त और सुखदाई नहीं रहा है। 

अपने इस छोटे से जीवन में कई बार हम लोग अपने पडोसी प्रदेशों के रहने वालों द्वारा लड़ई 

में घसीटे जा चुके हैं। आपने भी शायद 1809 की लड़ाई का हाल पढ़ा होगा।टाइरोलेसे ने 

यूरोप के शासन की बागडोर अपने हाथों में कर ली थी। वह बड़ा बहादुर था? 

"और यह नदी भी" उसने एक क्षण रुककर आगे कहा। उसकी आँखें नीचे नदी के चमकीले जल पर 

गड़ी थीं, "तो अब बहुत बदल गई है। 

पहले से यह अब कुछ कम चौड़ी दिखाई पड़ती है। पहले इसमें बर्फ़ अब से दुगना गला और बहा 

करता था। 

तब इसमें आवाज भी तो खूब होती थी। जानवर तो डर के मारे निकट फटकते भी  नहीं थे। यही 

नहीं, इसकी बाढ़ में न जाने कितने प्राणियों ने अपने प्राण गँवाए हैं।  "

यह कहते-कहते उसके चेहरे पर एक वेदनापूर्ण रेखा खिंच गई जैसे उसे कुछ भूली  बातें याद आ गई 

हों। 

मैंने पूछा, “क्या आपने कभी किसी को इस नदी की बाढ़ में  मरते देखा है?" 

“हाँ महाशय!" उसने कहा और वेदना के भार से सिर हिला दिया, “और इसी स्थान पर। पर वह 

एक बहुत पुरानी कहानी है। शायद आपको अच्छी न लगे।"

 “नहीं, नहीं," मैंने कहा, “यहाँ बैठकर और आपकी कहानी सुनकर मुझे बड़ी खुशी  होगी। आइए 

उस साये में हम लोग बैठे। "

हम लोग साये में बैठ गए। बूढ़े ने सिर से हैट उतार कर नीचे रख दिया, ताकि 

दिमाग में ठंडी हवा लग सके। फिर उसने कहना शुरू किया-

“1813 के अटूबर के अन्त में जब यह ख़बर हम लोगों को मिली कि फ्रांसीसियों   का खून फिर 

लड़ाई के लिए गर्म हो गया है और नेपोलियन उनका सरदार है तो हम  लोगों को यह डर लगा कि 

अवश्य ही फ्रांस का दूसरा हमला होने जा रहा है। 

दूसरे दिन सुबह-सुबह रोवेरेडो में हम सब इकट्ठे हुए। यह सभा रोवेरेडो के क़िले में हुई थी।

हम सभी खुश थे। केवल एक आदमी बरटोलो अनुपस्थित था। वह अपने कैबिन में  बैठा था। 

इस समय वह उदास था, पाइडमाउंट का वह निवासी फ्रांसीसी सेना में भर्ती  हो गया था। और 

हमारे छोटे से शहर पर फ्रांसीसी अधिकार होने में उनका बड़ा हाथ था। 

रोवेरेडो में आने के बाद वह यहाँ की एक किसान कन्या को अपना हृदय दे बैठा। वह किसान 

कन्या अपने शहर में सबसे सुन्दर थी। उनकी शादी हो गई। वे एक झोपड़ी

 बना कर रहने लगे। उस झोपड़ी को तुम अब भी उस सोते के किनारे ठीक किले के 

सामने थोड़ी दूर पर देख सकते हो... । 

"शादी के बाद वह युद्ध से अलग हो गया। अपनी स्त्री के लिए, प्रेम के लिए।

 यही कारण था कि उसे अपने पड़ोसियों से भी अलग ही रहना पड़ा था। तब वह केवल 

मछलियाँ पकड़कर या जंगली जानवरों का शिकार करके अपने परिवार की आवश्यकताओं 

की पूर्ति करता था। वह अब पूर्णतया किसान का जीवन व्यतीत कर रहा था। पहले

 तो उसने बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी थीं और कितनी ही बार पड़ोसियों के गृहयुद्ध में भी  

भाग ले चुका था पर अब उसने यह सब पूर्णतया छोड़ दिया था। एक बार उसने काउंट

 के बेटे को जंगल में एक भयानक भालू के पंजे से भी छुड़ाया था।

"ओह! उसकी स्त्री बेचारी कितनी असन्तुष्ट और दुखपूर्ण जीवन बिता रही होगी?' मेरे मुँह से 

निकला। 

बूढ़ा एक क्षण के लिए चुप हो गया। "नहीं, असन्तुष्ट क्यों? " उसने शीघ्रता से उत्तर दिया, “बरटोलो 

अपनी स्त्री को प्यार करता था, उसके लिए हर कष्ट सहने को तैयार था। वह अपनी स्त्री और

 चमकीली आँखोंवाले अपने इकलौते बच्चे को बहुत प्यार करता था। इन्हीं दोनों प्राणियों

 के मोह ने उसे ऐसा बना दिया था। कायर हो गया था. अब वह, यही कारण था कि  उस क़िलेवाली 

सभा में वह उपस्थित नहीं हुआ। मुँह पर उदासी लादे  हुए अपने कैबिन में ही बैठा रह गया था।

 ‘लेकिन', बूढ़ा कहता ही गया, “पिता की कायरता बेटे को न रोक सकी। उसने बेटे से बड़ी नम्रता 

से कहा। छोटा-सा पेडरो उस किले की सभा में जाना चाहता था। 

वह समझता था कि वहाँ नाच, तमाशे होंगे। पिता ने उसे जाने से रोका। उसका बेटा 

वहाँ जाकर क्या करेगा? पर जब पेडरो ने अपना सिर पिता के कन्धे पर रखकर कहा कि वह 

अवश्य जाएगा तब माँ बोल उठी-

“काउंट तो सदा से ही हम लोगों पर दयालु रहा है। अपने भाई के स्थान पर उसने तुम्हें नौकरी भी 

तो दी थी। वह यह सब बातें भी तो जानता है कि तुम...”

"बरटोलो अपने पैरों पर उछल पड़ा। इतने दिनों से जो बात उसके हृदय में  भीतर-ही-भीतर कुरेद 

रही थी वह उभर कर ऊपर आ गई और उस पर भूत सा सवार हो गया। 

उसने अपनी स्त्री को पकड़कर पृथ्वी पर ढकेल दिया। लेकिन उसके सुन्दर  मुख से निकली हुई 

एक चीख़ ने ही उसे शान्त कर दिया। 

उसका सारा गुस्सा विलीन  हो गया। उसे शर्म मालूम होने लगी। निर्बल सा वह धम् से कुर्सी पर बैठ 

गया और अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया।

"वह औरत उठी-पति से उसने कुछ भी नहीं कहा और दरवाज़ा खोलकर बाहर चली गई। 

पर यहाँ दूसरी मुसीबत उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसका लड़का वहाँ नहीं था, न बाग़ में, न उस 

सड़क पर जो पुल पर जाती थी। उसने चारों ओर देखा पर व्यर्थ।

उसने देखा, नाले में बाढ़ आ गई थी। बाढ़ पुल की ओर तेज़ी से बढ़ रही थी। पीछे की पहाड़ी पर 

धुंधले बादल मँडरा रहे थे। क़िले की ओर काले-काले बादलों का जनसमूह-सा बढ़ रहा था। उसे 

लगा जैसे उसी की घाटी में एक बड़ा तूफ़ान आ रहा है। 

"महाशय, यह आप जान लें," बूढ़ा कहता गया, "कि एक घंटे के भीतर ही मैंने इस पहाड़ी पर 

तूफ़ान आते और साफ़ होते देखा है। लीना नदी में भी बाढ़ आई और नदी गरजने लगी शेर की तरह। 

यह भी बरटोलो की स्त्री ने देखा। 

उसने समझा कि उसका बेटा किले में ही बन्द हो गया होगा। वह खड़ी देखती रही। छोटे-छोटे न 

जाने कितने पत्थर बाढ़ के साथ बहना चाहते पर शीघ्र ही लहरों के थपेड़े खाकर लौट आते। 

“उसका लड़का अपने घर की ओर तेजी से बढ़ रहा था-पर इस तूफ़ान में उसके पाँव बेकार हो गए 

थे। बाढ़ से उसके पाँव ठंडे पड़ गए थे। बेटा भी तो अपने बाप ही जैसा बहादुर था। वह आगे बढ़ा 

पर गिर पड़ा। माँ ने बेटे की आवाज़ सुनी। खुशी और डर से वह काँप उठी।"

जल्दी ही डरावनी आवाज़ में उसने अपने पति को पुकार कर कहा, “पेडरो! पानी में है।" 

"बरटोलो अब तक बैठा था। उसकी स्त्री ने बाँह पकड़कर झकझोरा। पूरी शक्ति लगाकर उसे 

नदी किनारे ले गई, उस समय उसका बेटा तेजी से पानी में बह रहा था।" 

“एक झलक ही काफ़ी थी। बरटोलो का मस्तिष्क साफ़ हो चुका था। लहरों के 

बीच वह कूद ही तो पड़ा। शीघ्र ही बह बच्चे के निकट पहुँच गया। और उसे पकड़ने

 को हाथ बढ़ाया। एक हाथ से उसने पेडरो को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से क्रुद्ध लहरों 

से लड़ने लगा। उसने देखा सामने का पुल लगभग सौ गज दूर है और दाहिना किनारा

 काफ़ी दूर था। "

बच्चे का डूबना सुनकर सभा से सब लोग बाहर आ गए। काउंट भी अपने घोड़े पर था। दौड़ता हुआ 

वह घटना स्थल पर आया। 

एक सौ मोहरे," काउंट ने चिल्लाकर कहा, “जो इन्हें बचा ले। बढ़े चलो-बहादुर बरटोलो। बचा लो 

बच्चे को बहादुर!" 

"लेकिन बारटोलो ने अनुभव किया कि लहरें उसे दबाती ही जा रही हैं। उसने देखा कि उसकी 

हिम्मत टूट रही है। जब तक रस्सी और जाल क़िले से लाए गए तब तक वे पिता-पुत्र नदी के गर्भ में 

विलीन हो चुके थे। उन्हें कोई न बचा सका।"

"डूबते हुए मनुष्य ने एक क्षण की आशा की एक झलक देखी।"

 "बाएँ किनारे के पास पुल की लकड़ियाँ लटक रही थीं। उसके पास ही वहाँ एक जनसमूह भी 

इकट्ठा था। कुछ तैराक कूदे।

"काउंट ने सन्तोष की साँस ली। माँ की आँखें चमकीं, लेकिन एक क्षण भी खोने के लिए न था। माँ ने 

तेजी से पैर बढ़ाया। वह पागल-सी हो रही थी। सामने क्या है यह वह न देख सकी और पानी में कूद 

पड़ी। 

बच्चे को उसने दोनों हाथ बढ़ा कर पकड़कर छाती से लगा लिया। उसे देख बरटोलो ने भी आगे 

आने की कोशिश की। बच्चे को लेकर वह घुटने के बल बैठ गई। उसने दोनों हाथ ऊपर उठाए और 

आँख बन्द करके भगवान से प्रार्थना करने लगी। तभी अररा कर पुल की कुछ लकड़ियाँ गिर पड़ीं।

 बच्चा माँ से अलग हो गया। फिर बरटोलो और उसकी पत्नी को किसी ने न देखा। "

उस बूढ़े की आँखों में आँसू भर आए। उसका गला भर आया। फिर भी साहस करके वह कहता 

गया। 

“सामनेवाले गिरजाघर में आप एक पत्थर लगा देखेंगे। उस पर लिखा है-“बहादुर बरटोलो-" उसकी 

बगल ही में उसकी पत्नी भी दफ़न की गई थी।" इतना कहकर वह उठा और आँसू पोंछते हुए एक 

ओर को चल दिया।

 "रुको!" मैंने कहा और उसका हाथ पकड़ लिया, “एक पिता के बारे में जो इतना जानता है-अवश्य 

ही पुत्र के बारे में भी कुछ बातएगा।" 

"आपने ठीक ही समझा," उसने कहा, "क़िले में रहकर पेडरो ने बड़े आनन्द का जीवन व्यतीत 

किया। अब वह उस दिन की राह देख रहा है जब अपने माता-पिता के बगल में ही वह भी दफनाया 

जाएगा। यह जगह जहाँ यह घटना हुई थी देखकर उसे 

बड़ा दुख होता है, क्योंकि उसके पिता ने उसे पवित्र मृत्यु के हाथ से बचा लिया। और 

वह पेडरो मैं हूँ।"

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