इस कहानी के लेखक सर चार्ल्स जी डी रॉबर्ट्स है ।
यह कहानी हमे बताती है की जानवर हमारे उपकार को नहीं भूलते । तो कहानी को शुरू करते है ।
पुराने निवासियों की याद में भी कभी इतनी सर्दी नहीं पड़ी। ओटेनूसिस और क्वाहडेविस के
आसपास के देश बर्फ से ढक गए थे। कहते हैं, इतनी सर्दी पहले कभी नहीं हुई।
तूफ़ान के बाद तूफ़ानों ने सीमा-चिह्नों को मिटा दिया और लकड़ी के केबिन मिट्टी में मिल गए।
आधा जाड़ा समाप्त होने के पहले ही बिखरे हुए निवासियों ने सड़क को खुली रखने की आशा त्याग
दी।
जो आवश्यक यात्राएँ उन्हें करनी पड़ती थीं वह वे बर्फ पर ही करते थे। जिस रास्ते पर वे चला
करते थे अब वह बर्फ सात, आठ, नौ और दस फुट नीचे था। छोटे-छोटे पेड़ छिप गए थे। ऊँचे-ऊँचे
पेड़ जैसे देवदार आदि बर्फ की झाड़ियों की तरह बन गए थे।
केवल जहाँ पर हवा ने उनकी शाखाओं को हिला झिझोंड़ कर मुक्त कर दिया वहाँ वे विस्तृत श्वेत
बर्फ में काले धब्बे से खड़े थे।
जंगल के जानवरों के लिए यह चिरकालीन विपत्ति थी। केवल वही जानवर मजे में थे जो इस कठिन
समय में बर्फ़ के नीचे अपनी कंदराओं में छिपे सोते रहते हैं, जहाँ कठिन शीत की पहुँच नहीं हो
पाती।
सबसे अधिक कष्ट हिरनों को था। यह लोग जाड़े के लिए वन में कोई छायादार स्थान चुन कर
अपने पैरों से उसके चारों ओर कुचलकर एक रास्ता बना लेते हैं जिससे वे झाड़ियों तक जाते हैं।
यही झाड़ियाँ उनका भोजन हैं। परन्तु उन्हें अपना रास्ता साफ़ बनाए रखना कठिन था।
ज्यों-ज्यों जाड़ा बढ़ा उन्होंने अपने आसपास की झाड़ियों की टहनियाँ खा लीं, यहाँ तक की अधिक
कड़ी टहनियाँ भी उन्होंने न छोड़ी।
इनके समाप्त होने पर वे बर्फ का दुखद मार्ग तय करने के बाद ही दूसरी झाड़ियों तक पहुँच सकते
थे और वह भी काफ़ी नहीं थीं। हिरन के इन कुछ बन्दी परिवारों को जीवित रहने के लिए काफ़ी
चारा मिल गया। शेष भूखों मर गए।
इस प्रकार जाड़ा धीरे-धीरे बसन्त की ओर बढ़ रहा था।
स्थिम स्टोर के बाहर ब्रिन्स कॉर्नर्स, जहाँ यहाँ का डाक खाना भी था, में रस्टी जोन्स (यह नाम
उसके बालों के कारण पड़ा था) ओट बैग, पत्थर का एक घड़ा और मिट्टी के तेल की एक टीन का
पारसल बना रहा था।
यह कर चुकने के बाद उसने घर का बुना हुआ विना उँगुलियों वाला दस्ताना पहना और हिरन के
चमड़े के बने बर्फ से ढके खेतों में चार मील की यात्रा के लिए रवाना हो गया। सूरज डूबने को था।
उसकी आशा के विपरीत एक घंटे की देरी हो गई थी।
उसे डाक की प्रतीक्षा थी क्योंकि पिछले सप्ताह के पत्र में एक धारावाहिक कहानी प्रकाशित हुई थी
जिसका आगे का अंश वह नए अंक में पढ़ना चाहता था। उसे ध्यान आया कि घर पहुँच कर खाना
खाने के बाद उसे क्या-क्या काम करना होगा तब कहीं उसे पढ़ने का अवकाश मिलेगा।
सड़क पर आधा मील चल चुकने के बाद उसे एक बात सूझी।
सड़क छोड़कर घाटी से जाने से उसे एक मील कम चलना पड़ेगा। साधारण मौसम में इस मार्ग से
जाने में कोई बचत न होती, क्योंकि रास्ते में दलदल, खड्डे और स्थान-स्थान पर फैली हुई झाड़ियों
से राह नहीं रहती थी। पर उसने सोचा आजकल तो जैसे सड़क से जाना वैसे इधर से।
वह कितना मूर्ख है कि यह बात उसे पहले न सूझी।
अपने बोझ को खींचते हुए वह जंगल की ओर मुड़ चला। यद्यपि वह अभी लड़का था पर आसपास
के स्थानों के ज्ञान और लकड़हारे के सहज-ज्ञान के कारण उसे विश्वास था कि वह ठीक स्थान पर
पहुँच जाएगा।
ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के बीच से, सफ़ेद बर्फ़ के ढेरों के बीच रास्ता बनाए हुए और फूली तथा टेर बनी
बर्फ को बचाते हुए, जिन्हें वह जानता था कि बर्फ पर चलने वाले उसके जूतों के लिए जाल थी, वह
आगे बढ़ रहा था।
अपने पिता के एकाकी फ़ार्म से वह एक मील से कम दूर रह गया था। तब ठंडी नीली, भूरी गोधूलि
में वह बर्फ के एक गढ़े के किनारे रुक गया। आधे भाग पर पेड़ की छाया पड़ रही थी। उसने देखा
हिरणों का एक झुंड नीचे गढ़े में है।
उसे कभी यह आशा भी नहीं थी कि यहाँ से बारह मील के भीतर कहीं यह हिरन होंगे। परन्तु घाटी
के इस स्थान में एक हिरन परिवार ने जाड़े के लिए अपना बसेरा किया था।
गढ़े के अन्धकार में उसने उनके आकार-प्रकार का अनुमान किया, एक विशालकाय भूरा नर, एक
गहरे रंग की छोटे कद की मादा और दो बच्चे थे। वे लेटे थे।
परन्तु एक बच्चा एक करवट किए, विचित्र प्रकार से लेटा था। अवश्य ही वह मर कर अकड़ गया
था। शेष उसकी ओर करुणा की दृष्टि से देख रहे थे, जैसे निराशा के कारण उन्हें भय न रह गया हो।
परन्तु सहसा नर उठकर खड़ा हो गया, उसकी आकृति धमकाने वाली थी जैसे वह अपने सबसे बड़े
शत्रु मनुष्य से अपने परिवार को बचाने के लिए लड़ने को तैयार हो।
रस्टी ने देखा कि वह बहुत दुर्बल हो गया; उसके पुढे की चर्बी सूख गई है। रस्टी की आँखों में दया
आ गई और उसने कहा, "बेचारो, तुम भूखों मर रहे हो।
अपना बोझा उसने वहीं डाल दिया और चढ़ाई की ओर भागा। कुछ गज़ पीछे ही उसे एक टहनी
दिखाई पड़ी थी।
अपने कमर में बँधी छुरी की सहायता से उसने अंकवार भर मुलायम डालें काटीं। हिरनों को यह
टहनियाँ बहुत प्रिय हैं।
उसने टहनियों को गड्ढ़े में डाल दिया; नर हिरन प्रसन्नता से चिल्लाया और मादा और बच्चा हिरन
उठकर खड़े हो गए। जैसे उनकी नसों में नए जीवन का संचार हो गया हो।
तीनों जोर कर टूट पड़े। रस्टी उनके लिए और पत्तियाँ लेने के लिए भागा।पत्तियाँ गड्ढे में डाल कर
अपना बोझा उठाते हुए उसने कहा, “आज रात-भर के लिए यह तुम्हें पर्याप्त होगा। कल सुबह मैं
तुम्हारे लिए अच्छी घास लाऊँगा। "
लड़के को घर पहुँचने में देर हो गई। पर जब उसने अपनी कहानी उन्हें सुनाई तो उन्हें भी देर होने
के कारण से सहानुभूति हुई, परन्तु उन्होंने घास पहुँचाने की उसकी प्रतिज्ञा को पसन्द न किया।
माँ ने निश्चय के साथ कहा, "हमारे पास अपने जानवर के लिए ही काफ़ी चारा नहीं है पर हो सकता
है पिता तुम्हें कुछ चारा दे दें। उनके लिए बहुत अच्छा होगा। "
बाब जोन्स हट्टा-कट्टा कद्दावर आदमी था, बस्ती भर में उसे लोग विशेष कारणवश 'लाल बाब' कहते
थे। वह हँसा । उसने कहा, "तुम्हें वर्च और पापलर पेड़ों की टहनियाँ काटनी होंगी। वही उनका
स्वाभाविक भोजन है। पर यदि तुम्हें सभी भूखे हिरनों को खिलाना है तो तुम्हें अपने काम कम करने
होंगे। "
रस्टी ने अपने सामने रखे भोजन को खाते हुए प्रसन्नतापूर्वक कहा-"यह ठीक रहा। सुबह मैं उनके
लिए एक गट्ठर ले जाऊँगा। और उसके बाद मैं काट लिया करूँगा।
चिन्ता न करें। मैं उनको जीवित रखने का ध्यान रखूगा। यदि आप दोनों ने उनकी करुणा मूर्ति देखी
होती तो आपको भी वैसा ही लगता जैसा मुझे लग रहा है। पर घर के सम्बन्ध में आपकी राय ठीक
है। हमारे पास अपने जानवरों के लिए काफ़ी नहीं है। "
उसके बाद कुछ सप्ताह तक रस्टी कुल्हाड़ी लेकर अपने बोझ को खींचता हुआ उस गढ़े तक जाता
और उनके लिए दो दिन का चारा डाल आता। उसने देखा कि वे इस नीचे दर्जे के चारे को अच्छी
घास से अधिक पसन्द करते हैं जिसे उसने उनके सहारे के लिए दिया था।
तीन बार चारा देने के बाद हिरन के छोटे बच्चे उसे इतना परच गए कि जब वह वहाँ पहुंचता तो वे
उसके पास आ जाते और उसके हाथ से चारा छीन लेते थे।
मादा संदे ही ईर्ष्यालु प्रकृति की थी, उस पर विजय देर में मिल सकी। परन्तु परच जाने के बाद वह
औरों से अधिक लोभी दिखाई दी। वह सब को बुरी तरह धकेलती हुई आगे बढ़ती और रस्टी द्वारा
लाए चारे का अधिक भाग अपना लेने की कोशिश करती रहती।
रस्टी प्रकृति-निरीक्षक था, उसे प्राकृतिक कहानियों की जो भी पुस्तक मिल जाती उसे वह अवश्य
पढ़ता। उसने हिरनों की रुचि पर प्रयोग करने का निश्चय किया। उसने देखा कि वह सूखी, वासी
और कड़ी रोटियाँ अधिक पसन्द करते हैं। उन्हें गेहूँ की ठंडी रोटियाँ भी पसन्द थीं। चीनी उन्हें
पसन्द नहीं थी, पर नमक को तो वे बड़े शौक़ के साथ चाटते थे। और अधिक नमक के लिए वह
उसके पीछे लगे रहते थे। उन्हें दाना खिलाने का निश्चय किया।
एक टीन के बर्तन में ओट रखकर उसने उनके सामने रखा परन्तु उनके साँस की हवा में दाने चारों
ओर उड़ गए। ओट महंगा था और कम मिलता था। इसलिए उसने उनका प्रयोग दुबारा नहीं किया।
परन्तु दाने बेकार नहीं गए क्योंकि एक पक्षी, जो हिरनों के आसपास अधिक रहता है, ने दाने चुग
लिए। उनकी छोटी किन्तु चमकदार आँखों से एक भी दाना बचना असम्भव था। इस बीच मरे हुए
हिरन का शव गढ़े के बीच में जकड़ा हुआ बिना देखभाल के पड़ा था।
अन्त में रस्टी ने निश्चय किया कि दयालुता के लिए यह दृश्य एक कलंक है। उसने उससे छुटकारा
पाने का निश्चय किया। उसके पिछले पैर पकड़कर उस शव को गढ़े के बाहर निकालने का प्रयत्न
करने लगा।
परन्तु यह स्मरण करके कि यह उसका बच्चा था हिरनी उसकी ओर क्रोध के साथ दौड़ी। घृणा के
साथ रस्टी ने उसकी नाक पर चोट की और उसे ठीक उसी तरह ललकार कर डाँटा जिस तरह वह
अपने खेत में बैलों को ललकारता था।
हिरनी प्रहार और चिल्लाहट से घबड़ा कर पीछे हट गई।
सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह हुई कि हिरन जो कि रस्टी को कुत्ते की भाँति परच गया था।
हिरनी पर अपने सिर को झुका कर झपटा और उसने इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि वह गढ़े में गिर
गई। वहाँ वह विचित्र परेशानी में अपने कान हिलाती रही।
इस बीच रस्टी ने शव को खींच कर गढ़े के बाहर बर्फ पर डाला और फिर उसे खींच
कर थोड़ी दूर पर एक घनी झाड़ी की आड़ में डाल दिया जहाँ उस शव पर किसी की
दृष्टि पड़ने की सम्भावना नहीं थी। तब फिर वह गढ़े में गया; हिरन की नाक पर उसने
थपथपाया और कान खुजलाया।
अन्त में उसकी वफ़ादारी के पुरस्कार स्वरूप रस्टी ने उसे थोड़ा- सा नमक दिया। बछड़ा रस्टी के
निकट आग्रहपूर्वक आ गया तो उसने उसे भी थोड़ा नमक दे हिरनी भी क्रोध भूल कर उसके पास
अपना भाग लेने के लिए आ गई।
परन्तु रस्टी को हिरनी के प्रति अब भी घृणा थी इसलिए उसने उसे केवल अपनी हथेली चाटने दिया।
"इससे तुझे शिक्षा मिल जाएगी कि जल्दी क्रोधित न होना चाहिए।" उसने कहा।
दूसरी बार जब वह वहाँ गया तो उसे बर्फ पर जानवरों के चलने के चारों ओर निशान दिखाई पड़े।
उनमें लोमड़ियों के पैर के निशान प्रमुख थे, चिड़ियों के पंख वहाँ थे। परन्तु बीच में बनविलाव के
बड़े पदचिन्ह भी थे।
रस्टी ने ध्यानपूर्वक उन चिह्नों को देखा फिर झाड़ी के पीछे रखी हिरन के बच्चे की लाश को देखने
को गया। भूखी लोमड़ियों को जैसे दावत का समाचार मिल गया हो। लाश आधी खाई जा चुकी थी।
उसने मत्थे को हाथ से सहलाते हुए यह देखने के लिए दृष्टि दौड़ाई कि शायद दावत
खाने वालों में कोई दिखाई पड़ जाए। तीस-चालीस क़दम पर ढके हुए पेड़ के ऊपर
के बर्फ़ को खोद कर साफ़ कर दिया गया था। रस्टी सोचने लगा, तभी एक लाल लोमड़ी
उसमें से निकली और चुपके-चुपके आगे की ओर बढ़ने लगी।
शीघ्र ही जब लोमड़ी ने देखा कि वह पकड़ी गई तो वह खड़ी हो गई और उसने रस्टी की ओर इस
प्रकार देखा जैसे उसका इस सबसे कोई सम्बन्ध ही न हो। जम्हाई लेकर अपने पिछले पैरों से उसने
अपने कान खुजलाए, अपनी बालदार दुम हिलाई और फिर भाग गई जैसे कह रही हो, शेष तुम्हारे
लिए है।
अपने मन में उसने सोचा, 'इसकी पीठ पर एक अच्छा दाग़ है। कितने डॉलर का मला यह होगा।'
उसने बनविलावों के पदचिह्नों पर भी ध्यान दिया कि उसके दागों का कितना मूल्य होगा। उसने मृत
हिरन के बच्चों की लाश के चारों ओर जाल लगाने को सोचा।
लेकिन इस योजना को उसने अरुचिपूर्वक त्याग दिया। जाल में फंसाने के विचार को उसने सदैव
नापसन्द किया है। तब उसे अपनी बन्दूक का ख्याल आया, जिसका प्रयोग वह अपनी मुर्गियों के
निकट आनेवाले बाज़ों के लिए करता है।
उसने सोचा, 'इस लोमड़ी पर निशाना लगाना बहुत आसान होगा। वह बड़ी ही हिम्मती है।
उसका ध्यान अब भी लोमड़ी के दाग़ की ओर था। उस लोमड़ी की हिम्मत और चालाकी पर भी
ध्यान गया, शत्रु की आँखों पर लोमड़ी का ऐसा पर्दा डालना कितना आश्चर्यजनक है।
अपने में ही बुदबुदा कर उसने कहा, 'मैं समझता हूँ मुझे व्यर्थ ही परेशान न होना चाहिए। यह ठीक
नही जँचता कि जब वे बेचारी इतनी भूखी हैं तब यह शव यहाँ रखकर मैं उनको फँसाने का प्रयत्न
करूँ।
जब तक यह रहे तब तक तो उन्हें आनन्द मना लेने देना चाहिए और फिर यदि मैं यह बन्दूक
चलाऊँगा तो मेरे हिरन भी बेचारे डर जाएंगे। यह निश्चय करके वह हिरनों के गढ़े की ओर जाते
हुए सोचने लगा, 'पर यदि नर हिरन को पता लगा तो वह मुझे कितना दोषी समझेगा। हो सकता है
यह ठीक भी हो। '
अन्त में जाड़ा समाप्त हुआ। वर्षा में बर्फ सिकुड़ कर बह गई। सूरज रहस्यपूर्ण रूप से बाहर
निकला। बर्फ़ में ढके हुए पेड़-पौधे फिर निकलने लगे। अब घाटी में चलना और भी कठिन हो गया।
हिरन अपने खाने के लिए स्वयं पत्तियाँ काट लेते और रस्टी का वहाँ आना-जाना भी अब कम होने
लगा।
अब उन्हें उसकी आवश्यकता नहीं रह गई थी परन्तु उसे उनसे इतना प्रेम हो गया था और
विशेषकर नर हिरन से उसे इतना प्रेम था कि उनको अपने जीवन से एकाएक लुप्त हो जाने देना
उसे पसन्द नहीं था।
पर यह तो होना ही था और वह यों हुआ !एक दिन बहुत कठिनाई उठाने के बाद वह गढ़े के पास
पहुँचा तो देखा कि हिरनी और बच्चा चले गए हैं। वफ़ादार हिरन अब भी वहीं था; वह जानता था कि
रस्टी इसी समय आता है।
रस्टी अपनी जेबों में दाने की रोटी और नमक ले आया था। इसे हिरन
ने बड़े स्वाद से खाया। बीच-बीच में वह लड़के को प्यार के साथ अपने ऊपरी होंठ
से चाट लेता।
अन्त में रस्टी ने हिरन के गले में बाँहें डालकर कहा, “विदा, मेरे मित्र,
अब तुम अपनी फिक्र स्वयं करना और शिकारियों की आँख से बचे रहना! ओह, तुम्हारे
सिर में कैसी अच्छी सींगें हैं! "
वह तुरन्त ही मुड़ा और घर की ओर शीघ्रता के साथ पर लम्बे मार्ग से चल पड़ा।
वह अधिक दूर नहीं गया होगा कि कन्धे पर थूथन का स्पर्श अनुभव किया।
बिल्ली की भाँति हिरन चुपचाप उसके पीछे-पीछे आ रहा था। रस्टी ने प्रेम के साथ उसे पुचकारा
पर वह उसको क्या करता यह निश्चय न कर पाकर आगे चलता रहा।
हिरन उसकेसाथ-साथ खुले स्थान के सिरे तक आया जहाँ से रस्टी के खेत दिखाई पड़ रहे थे।
मजदूर बाल्टी को लटका रहे थे, और उनकी खनखनाहट बसन्त की हवा में सुनाई पड़ रही थी।
खेत का बड़ा काला कुत्ता भौंकता हुआ रस्टी से मिलने के लिए दौड़ा आया।
हिरन अपने लम्बे कानों को हिलाता हुआ खड़ा रहा। रस्टी ने कहा, “अब अच्छा है कि तुम चले
जाओ और अपनी फिक्र रखना। "
बिना पीछे की ओर देखे हुए वह कुत्ते से मिलने के लिए आगे बढ़ा और हिरन का गहरा भूरा आकार
निःशब्द पेड़ों के बीच धुंधला होता गया।
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